बरहुआँ के श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर

संसार मे अइसन कमे लोग होले, जेकरा हाथे नीमन काम होला, जवना से कीर्ति बढ़ेले। ईनार ,पोखरा, मंदिर, ईस्कूलन के बनवावल सभे के कल्यान खातिर होला।भगवान जेकरा हाथे ई सब करावल चाहेलन, उहे अइसन कुल्हि काम करे खाति अगराला। ओकरा जिनगी में ख्याति त  मिलबे करेले, ओकर लोक आउर परलोको  संवर जाला। धन- दउलत  त  ढेर लोगन के लग्गे होला, बाकिर  अइसन कुल्हि कामन खातिर  भुलाइयो के ना सोंच पावेला।

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला मे एगो चकिया तहसील बा। सुरम्य वनस्थली जहाँ प्रकृतिं मनोरम छटा बिखेर रहल बा,अइसने सुघर उपत्यका में गाँव बरहुआँ जवने क नाम ब्रह्मपुर बाटे ,बसल ह। चकिया से इलिया तक पक्की सड़क बनल बा,जवन बिहार तक गइल बा,चकिया से पूरब 4 कि0मी0 दूर पर लबे रोड पर ई गाँव पड़ेला। इहां से रचिके दूर कर्मनासा  नदी पर  लतीफशाह बांध बनल बाटे,जवना से नहर क जाल बिछल बा।इहाँ के धरती शस्य स्यामला बाटे।कर्मनासा नदी एही क्षेत्र से बहत आगु जाले ,जवने से लाख लाख आबादी क भरण पोषण हो रहल बा,एसे एकर पौराणिक नाम कुकर्मनासा बाटे। गाँव का दखिन में  गोलवा अउर देवरी पहाड़ खड़ा बा, जवन विंध्य पर्वत सृंखला के भाग हवे। इहाँ हमनी क पुरखा पुरनिया पवनी परजुनियाँ  का संगे कांतिथ मिर्जापुर जहवाँ परवा गॉंव बाटे उहवें से आके बसलन,एही से हमनी के परवा दूबे कहल जाला। बरहुआँ गाँव में सरयुपारीय कश्यप गोत्रीय दुबे लोग बसल बा। एही कुल में  श्रीमान बद्री दूबे भइलन,उनका पुत्र श्री रामसकल दूबे क दुइगो संतान रहलें ।जेठरा श्री नन्हकू दूबे,लहुरा श्री पुरुषोत्तम दूबे। जेठरा  पुत्र बचपन से  साधु स्वभाव वाला, पूजा पाठ मे  विशेष रुचि रखे वाला रहलें।आपन  बिआह ना कइलें। आजु से 85 बरीस पहिला दूनों भाई लोगन के मन में एगो मंदिर बनवावे के भाव जागल। ई भाव जब जागल त दूनों भाई लो नवहा रहे। बाकि अपना कुल-परिवार के मान-सनमान खाति हुलास से भरल रहे। मंदिर बनवावे के जग ठानल आ मन-प्रान लगा के पूरा कइलस। जवना बरीस में  श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर क निर्माण आ पंच देवन क स्थापना भइल, उ साल रहे 1928 ई0। एकर तसदीक मंदिर में लागल शिलापट्ट अजुवों करि रहल बा।  नवहे उमिर में दूनों भाई मिलके एगो लमहर कारज कर दीहलें। तबे से आजु ले  भोरे आ साँझ खानि पूजा ,भोग आरती आ साल भर में होखे वाला भगवदीय उत्सवन के मनावल उ लोग के  दिनचर्या बन गइल।

मंदिर के जब बनवावे के जग फनाइल, ओह घरी के एगो घटना के जिकिर कइल जरूरी बुझाता। जब नन्हकू दुबे मने हमार बड़का बाबूजी पत्थर क परमिट करावे जांय त अधिकारी लोग कहें कि पंडित जी खूब ढोई आपके कौनो रोक ना बाटे।कोई पकड़े त कह देईं ,जवन हनुमान जी कहले रहलें।

*मोहि नाही बाँधे कर लाजा। कीन्ह चहउँ मैं प्रभु कर काजा।।*

मेहनत अइसन रंग लियाइल कि मंदिर के चारो ओरी ओसारी आगे  सुन्नर चउतरा बनकर तैयार हो गइल। फेर  मूर्ति मंगावल गइल,हनुमान जी क मूर्ति बड़ सा शिलाखंड में गढ़ल गइल।ओह जमाने मे बनारस से कारीगर मूर्ति उकेरे खातिर आइल रहलें। गरभ गृह में  षट्कोणीय अरघा बनल जवना में  शिव लिंग स्थापित भइल। ऊंच गो  चउकी पर सिंहासन में शालिग्राम, श्री हनुमान जी, पार्वती, अम्बा आउर गणेशजी क मूर्ति राखल  गइल। अरघा के सामने नंदी जी बइठावल गइलन।दूर-दूर से कर्मकांड के प्रकांड विद्वान  लोग के बोलवा के विधिवत षोड्सोपचार आ  पूजन क संकल्प दुनो भाई लिहलें ,फेरु  बिधि-बिधान से स्थापना सम्पन्न भइल।प्राण प्रतिष्ठा का बाद कुल गुरू महाराज रुद्राष्टक क स्तुति कइलें,आउर नित्य इहे स्तुति गावे क गुरु मंत्र दीहलन।

बंश क कीरति बढावे वाली, नीमन संस्कार देवे वाली,सुख समृद्धि,आरोग्यता देवे वाली करनी क भर-पूर परभाव हमरा जिनगी पर पड़ल।जिनगी चलावे खातिर, धन-दउलत देवे वाली पद- प्रतिष्ठा हमरा के मिलल, एकरा   बादो  भगवान हमका अइसन गुन दीहलें  जवना  से  अपना सुख में रहि  के  दोसरे  लोगनो  के सुख दे रहल बानी।  ई माई सरसती क महान किरपा बा। माई सुरसती के किरपा हमरा के संस्कार में मिलल बा। जेकरा चलते श्री ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर क स्थापना आउर बरीस के अंत में होवे वाला उत्सवन पर प्रकाश डाले वाली रचना हमरा मानस पटल में समाइल आ ऊ उभर के एक लघु पुस्तक क रूप ले लीहलस। एकरा  प्रकाशित करावे क मुख्य उद्देश्य बस अतने रहे कि हमरा बाद आवे वाली पीढ़ी में एकर  अनुकरण होत रहे।अगली पीढ़ी एके जाने,संस्कार में उतारे, आ आजीवन निर्वाह करत रहे, इहे हमार प्रयास बा।एही में अपनो जीवन क सफलता बाटे।

चौपाई:–ब्रह्मपुरी यह मंदिर सोहा।नाथ ब्रह्मेश्वर छबि मन मोहा।।

अरघा अति सुंदर पाषाना। षष्ठपहल षटकोण विधना।।

बाम भाग गिरिजा गृह सोहा।मूरति मधुर लेत मन मोहा।।

जय जय जय जगदम्ब भवानी।महिमा जासु न जाई बखानी।।

श्री गणेश तेहि निकट विराजें।मंगल मूरति सिन्धुर साजें।।

अरघा मध्य सोह शिव लिंगा।जल टपकत तब उठत तरंगा।।

डमरू और त्रिशूल सुहावा।नंदी नित शिव दर्शन पावा।।

सिंहासन अति दिव्य मनोहर।शालिग्राम प्रभु राजत ऊपर।।

तेहि समीप ठाढ़े हनुमाना। रुद्र रूप शंकर भगवाना।।

दोहा:-

प्रनवउँ पवनकुमार प्रभु इष्टदेव हनुमान।

करहुँ सदा मंगल सबहि” लालदास “के प्रान।।

बाबूजी क दृढ़ संकल्प पूरा भइल।भगवान शिव क नाम श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जइसन आख्या से संबोधित कइल गइल।ओहि समय संबत 1995 चलत रहल।बैसाख महीना क शुक्ल पक्ष सप्तमी दिन शुक्रवार रहल।येहि शुभ मुहूर्त में स्थापना महोत्सव सम्पन्न भइल।आज  संबत 2078 चल रहल बा।एकर मतलब मंदिर बनले कुल 83 बरिश बीत गइल। बाबूजी लोगन के स्वर्गवासी भइलें भी लगभग 42- 43 साल हो गइल।मंदिर क ओसारी मा शिलालेख लगल बा।दो पत्थर जवना पर संस्कृत भाषा आउर हिंदी मे लिखावट बाटे।संस्कृत क श्लोक हमनी क पूर्वज रामस्वरूप  दूबे जी रचले  रहलें, अइसन सुने में आवेला।।

आईं सभे अब हम रउरा सभे के मंदिर के बनला आ एह चित्त में बइठल बाति के सभे के सोझा परोसे क कारन बतावे जा रहल बानी। बैसाख शुक्ल सप्तमी दिन शनिवार,तदनुसार दिनांक 25 अप्रैल 2015, दोपहर क समय रहल, मन में ई भाव जागल कि श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर स्थापना आ उत्सव क चित्रण अपना सिरजना से कइल जाय। जैसही  कलम उठल आ श्री गणेशाय नमः लिखाइल, ठीक ओहि समय 11: 45 बजत रहल कि भूकंप आ गइल। मन कांप उठल, तन सिहर गइल।मन में अनेक भाव उठै लागल। भगवान शिव क कृपा मानके लिखल शुरू कइली।कुछ प्रारंभिक अंश इहां उद्धृत कइल जात बा, जवना से रउवा सभे के जानकारी होई।आईं देखीं —

उन्नीस सौ पंचानबे संबत माधव मास।

शुक्ल पक्ष तिथि सप्तमी,भृगुवासर दिन खास।।1।।

पार्वती शिव साथ मे श्री गणेश हनुमान।

सिंहासन पर राजते शालिग्राम भगवान।।2।।

प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण कर,नन्हकू जोड़े हाथ।

मंदिर की स्थापना श्री ब्रह्मेश्वरनाथ।।3।।

ग्राम बरहुंआ में बसा दूबे बंश महान।

है चकिया तहसील में जिला चंदौली जान।।4।।

नन्हकू पुरुसोत्तम  हुये, रामसकल सुत श्रेष्ठ।

दूबे पुरुषोत्तम अनुज नन्हकू भ्राता ज्येष्ठ।।5।।

पूर्ण हुई मनकामना दोनों के हिय हर्ष।

सदा मनाते आ रहे यह उत्सव प्रतिवर्ष।।6।।

नित्य नियम से अर्चना, सुबह शाम का भोग।

संध्या वंदन आरती करती सदा निरोग।।7।।

धन्य हुआ कुल आपका कीर्ति हुई ललाम।

पूज्य पिता के चरण को छूकर करूँ  प्रणाम।।8।।

अकस्मात इच्छा हुई मन मै उठा तरंग।

कांप उठी धरती सकळ, फड़क उठे सब अंग।।9।।

यह कैसा संकेत है मन मे प्रश्न अनेक।

अंदर से उत्तर मिला,शिव का शुभ  अभिषेक।।10।।

पुलक प्रकट धरती समझ,शारद का वरदान।

लाल भाल में चल पड़ी,रचना यह अनजान।।11।।

छंद:–अनजान यह रचना सुखद,शुभ कीर्ति मंगलदायिनी।

प्रभु आशुतोष भरोस करि,पायो भगति अनपायिनी।।

शिव भजन सेवा यजन में,बचपन से मन रमता रहा।

कुल कीर्ति का यह विशद यश,यह दास कछु गायन चहा।।

सोरठा:—

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर यह सुंदर सुखद।

करौं विशद गुन गाथ,माथ नाइ कर जोरि करि।।

तबे से आज ले मंदिर क स्थापना दिवस वार्षिकोत्सव का रूप में मनावल जात बा।जब ले बाबूजी लोग रहलें, धूम-धाम से मनावत रहेलें, उनका बाद हमनी के  मना रहल बानी स।ब्रह्मेश्वरनाथ क कृपा बाबूजी क पूण्य दूनों मिलल आ हम इंजीनियर पद पर सरकारी सेवा में लाग गइली।  मंदिर क जीर्णोद्धार करवा के एगो लमहर हाल बनववली। श्री हनुमानजी क जन्मोत्सव कार्तिक महीना में दीपावली पर बड़े धूम धाम से मनल। मानस पाठ, प्रवचन,संगीत आउर कवि सम्मेलन तीन दिन क लमहर कार्यक्रम भइल।दूर दूर से आके नामचीन कलाकार लोग भाग लिहलें।कई साल ले ई आयोजन  खूब सुघर भइल।”उत्सव प्रकाश” में  एकर एक झलक देखी सभे:—

छंद :–

कार्तिक चतुर्दशी कृष्ण की,प्रतिबर्ष जब जब आवहीँ।

अति हर्ष अरु उल्लास से हनुमज्जयन्ति मना वहीं।।

करि विविध भाँती सृंगार पूजा भोर आरति गावहीं।

संगीतमय मानस परायण करहिं पाठ सुनावहीं।।

दोहा :—-मानस पाठ अखंड करि गावहिं मंगल साज।

अहो रात्रि का जागरण करता विप्र समाज।।

चौपाई

प्रति संबत अस होइ अनंदा।जूटहिं  बहु गायक कवि वृंदा।।

गायक दिन संगीत सुनावहि।सकल ग्राम बासी सुख पावहिं।।

रात होइ जब कवि सम्मेलन।कवि रचना सुनि सुनि विहँसे जन।।

हास्य व्यंग के छंद सुनाते।गीत गजल सबके मन भाते।।

मुक्तक चार चारू कवि देता।भोजपुरी पुनि मन हर लेता।।

जन्म महोत्सव सोहर गावहि।प्रभु पद पंकज शीस नवावहि।।

जिन्ह कर रचना अधिक सराही।बार बार ते अवसर पाहीं।।

संतत बहइ काव्य के धारा।कहत सुनत होइहिं भिनुसारा।।

दोहा:—

त्रय दिवसी यह कार्यक्रम होइ रहे हर साल।

“लालदास “को सुख मिले, पुरजन होत निहाल।।

शिव रात क पर्व जब आवेला त ब्रह्मेश्वरनाथ क खूब प्राकृतिक श्रृंगार कइल जाला। बाबा क विवाह होखेला,रामायण गवाला।”उत्सव प्रकाश” से एगो सुघर छंद मा चित्रण देखीं:–

छंद :—

माथे महामनि मौर राजत, बौर जौ बाली भली।

बिच बीच कुसुम धतूर के,मंदार कुसुमंन के कली।।

भस्मी विराजत अंग पर,सिर सोह गंगा निर्मली।

शिव बाम भाग विराज गौरी हिम सहित मैना लली।।

करि धूप दीप अनेक विधि,नैवेद्य विविध लगावहीँ।

आरति एकादश वर्तिका सजि करत अति सुख पावहीं।।

एहि भाँति पाणिग्रहण के शुभ साज सकल जुटावहीँ।

शंकर विवाह सजाई मंदिर,”लालदास” रचावहीँ।।

दोहा:–

फागुन कृष्ण त्रयोदशी कहें जिसे शिव रात।

प्रति संबत उत्सव करहिं,हर्षित पुलकित गात।।

हमार अगिली पीढ़ी के इहे संस्कार मिलल बा।उहो लोग अपने कमाई से मंदिर क गर्भ गृह सुघर सङ्गमर्मर क पत्थर लगवा के  खूब सुन्नर बनवा दिहलें। साथे-साथे लागि के सब त्यौहार पर गाँव जालें ,बड़का लड़िका क खूब मन लागेला। हमार उत्साह बढ़ावत रहेंलन।मन लगा के मेहनत कइके हमार लिखल रचना भी प्रकाशित करावत रहेलन। नित्य नियम से पूजा  करे खातिर एगो पुजारी नियुक्त कइल बाटे, जवन सुबह शाम पूजन-अर्चन कर रहल बाटें। कुलिये तेवहार पर टोला क बड़ छोट सबही शामिल होला,आ मिलजुल के गाई बजाई,भरपूर आनंद उठावेला।।

अबकी बेर मंदिर क वार्षिक श्रृंगार करइ खातिर जब गॉंव गइली त उत्सव प्रकाश से स्थापना के विषय मे कुछ रचना फेसबुक पर डाल दिहलीं, जवना के पढ़ि  के हमरे परिवार के छोट भाई जवन भोजपुरी साहित्य में लब्ध प्रतिष्ठित बाटें, हाले में उनुका  भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान से सम्मानित कइल गइल ह,जयशंकर बाबू बहुत खुश भइलें। ऊ हमरा के ई बिचार दिहलें कि भैया श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर के संस्मरण प्रकाशित होखे के चाही, रउवा एकरा के विस्तार देहीं। आज जे पी द्विवेदी के ,के नइखे जानत,उनके सत्प्रेरणा से हम ई संस्मरण लिखली ह ताकि अगली पीढ़ी ओके पढ़े  जाने समझे आ परिवार में इ संस्कार बनल रहे। एह विषय मे हम से उनका घंटा भर फोन पर बात बिचार भइल,अपना  धरोहर के उजागर करे क बड़ ललक उनका मन मे भरल बा। हम उनके एह भावना क कदर करत बानी आ बहुत बहुत धन्यबाद देत बानी।

हमरे कुल में एक से बढ़िके एक विद्वान कर्मकांडी कथाकार संगीतकार, कवि आलोचक रहल बाड़ें,आज भी बाटें।ई माटी विद्वान, कवि कोविद कलाकारन के जननी बा।हमका विश्वास बा कि अगिलियो पीढ़ी अपना धरोहर उजागर करी, पुरखन के कीर्ति में चार चाँद लगाई।संतान उहे धन्य होले जवन अपने कुल के कीरति के आगे बढ़ावत रहे।अइसने कुछ बाबा तुलसीदास अपना  “रामचरितमानस ‘”के उत्तर कांड में लिखले बाड़ें:–

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्री रघुबीर परायन ,जेहि कुल उपज विनीत।। दोहा संख्या:127

गीतो  में भगवान श्री कृष्ण कहले बानी:–

“स जातो येन जातेन जाति बंशः समुन्नति

अब  अंत में श्रुति फल के रूप में भगवान श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जी से प्रार्थना कइले बानी कि अइसही  हमरे परिवार क सब लोग उनका सेवा में लागिके निरंतर सुखी रहसु।।

दोहा:–

सम्मिलित संध्या आरती,नित्य चरन चित देहिं।

चरनामृत का पान करि बाल भोग जे लेहिं।।

तिन्ह के गृह सुख संपदा ,सदा होहि शुभ कर्म।

रहित ताप संताप से,सहित सबहिं सदधर्म।।

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ के मंदिर उत्सव गान।

“लालदास “रचना सुखद करहिं श्रवन पुट पान।।

गृह परिसर में “लाल” के शिव मंदिर विख्यात।

नारी सुत बांधव सहित भजन करौं दिनरात।।

 

  • हीरालाल द्विवेदी “लाल”

ग्राम -बरहूँआ  पो0- सैदुपुर ,

चकिया,चन्दौली।उ0प्र0

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