(1) अकरुणत्वमकारणविग्रहः,परधने परयोषिति च स्पृहा। सुजनबन्धुजनेष्वसहिष्णुता, प्रकृतिसिद्धमिदं हि दुरात्मनाम्।। – भर्तृहरि गसल निठुरता हद गहिरोर पोरे-पोर। पोंछ उठवले हरदम सगरी, सींघ लड़ावे के तत्पर। सकल उधामत चाहे करि लऽ जीति ना पइब कबो समर। अनकर माल-मवेसी, धनि पऽ निरलज आँखि उठावे, सुजन बंधु सन इरिखा पारे, दुरजन जान सुभावे। (2) दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्ययाऽलङकृतोऽपि सन्। मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः।। – भर्तृहरि पढ़ल-लिखल भल सुकराचारी, ताने रहे। कतो बिछंछल मनियारा के कवन गहे? (3) जाड्यं ह्रीमति गण्यते व्रतरुचौ दम्भः शुचौ कैतवं शूरे निर्घृनता मुनौ विमतिता दैन्यं…
Read MoreDay: February 17, 2022
कहानी का सुनायीं
गांव के परिवेश के कहानी का सुनायीं सभे बा मतलबी केकरा के समझायीं घर के पड़ोसिया लगावे दरहीं कूड़ा कहले पे हमके दिखावे लमहर हुरा धमकी त देत बा कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……। संस्कार घर-घर के स्वाहा भईल जाला ईर्ष्या के आग में सबे जरते देखाला सुनि के अनसुनी करे माने नाहीं बतिया अंखिया में धूल झोके संझिये के रतिया अइसने मतलबियन के कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……..। ऐश आ फिजूल में करेला सभे खरचा मुहवा से कब्भो नाहीं धरम के चरचा मतलब परेला त…
Read Moreअन्हरिया में अंजोरिया
केतना दिन जमाना के बाद आज ए पेड़ा से सुरसती के जाए के मउका मिलल बा।बगईचा के झिहिर-झिहिर बेयार बड़ा सोहावन लागत रहे।बरियारी गडि़वान के रोकवाए के मन रहे।बाकिर अन्हार हो जाइत त बाटे ना बुझाईत।लइकाई के सगरी बात मन परे लागल।अमवारी के झुलुआ..भईंस के सवारी..पतहर झोंक के मछरी पकावल..डडे़र पर के दउराई..गड़ही में गरई मछरी के पकडा़ई..पुअरा के पूंज पर के चढ़ाई..फेन धब-धब गिराई.. लरिकाईं के एकह गो बात मन के छापे लागल।उहो का दिन रहे।मन के राजा रहनी सन। जइसही बैलगाड़ी सतरोहन भईया के दुआरी पर चहुंपल रोअना-…
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