शराबबंदी

प्रदेश में शराबबंदी बा, शराब खरीदल-बेचल आ पियल प्रतिबंधित बा। बाकिर, एहि बंदी के आड़ में नया रोजगार खूब फरत-फुलात बा। पड़ोसी प्रदेश से शराब के तस्करी शबाब पर बा, पूरा के पूरा एगो रैकेट लागल बा। काल्ह फजीरहीं एगो शराब से भरल ट्रक सीमावर्ती थाना में जब्त भईल रहे, दिनभर खूब गहमागहमी रहे। आज थानेदार के हवाले से अखबार में खबर छपल कि एक हजार शराब के बोतल बरामद भईल बा। अब चर्चा ईहो बा कि पड़ोसी प्रदेश के सीमावर्ती जिला में शराब व्यवसायी के सदमा लाग गईल बा,…

Read More

भोजपुरी साहित्य : प्रकाशन अउर विपणन एगो गंभीर समस्या

भोजपुरी साहित्य के माध्यम लोक भाषा ह,जे समाज के देन ह।राजाश्रय के आभाव मे भी अपना भाषायी संस्कृति अउर लोक जुड़ाव के आधार पर साहित्य के क्षेत्र मे दमदार उपस्थिति दर्ज कर रहल बा।आज के ऐह आर्थिक अउर डीजीटल युगो मे प्रकाशन अउर विपणन के अभाव मे  भोजपुरी साहित्यकार घर के आटा गील कके आपन रचना समाज के आगा परोस साहित्य भंडार भर रहल बाड़न।ई सही बा कि कैलिग्राफी भारत के देन ना ह। ई त श्रुति अउर स्मृति के देश रहल हा।आपन याद के लेखनी मे बदलला पर अदभुत…

Read More

बड़ा बेआबरू भइनी ऐ गोरिया तोहरे खातिर

छठ के चार दिन पहिले इंदरासना के विदा करा के उनकरा भैया ले अइले, मय लइकिन के हुजूम रामचनर काका के घर में भीड़वाड़ कइ देली सन, केहू उनकर हाल पूछत बा, केहू मीठा पानी ले आवता त छोटकी भउजी परात में पानी भर के उनकर गोड़ धोवे लगली त केहू ससुरा से आइल  छोरा छापी, खुरमी लड्डू टिकरी  रामचरन काकी से पूछ पूछ के जगहा प  सरिहावे लागल। अजब रिवाज होला गांव गिरान के , कवनो भेद ना कि के केकरा घरे कब जाइ कब ना जाइ कवनो टाइम…

Read More

गीत

लाले ओठवा ए नन्हकु सूरूज देव ,लाले  तोहरे गालवा .. खेलत कूदत तुहो रहल बाबू सगरी अकासवा .. नील रंग आकासवा  से झांके ल  अजगुत बाड़े तोहर रुपवा .. कबहुँ  झांकेल केरवा के पतवा ,कबहूँ झाकेल नरियरवा . कबहुँ खेलल बबुआ सरोवरवा  कूदि -कूदि देखावेल रूपवा .. जब हम पकरिना तोहरा ए बचवा  भागल  हमरा से दूरवा .. तोहरे रूपवा से भइनी अभिभूतवा ठानेनी छठ वरतिया .. आपन बाल रूप के दिह दरसनवा खोलेनी मन के केवरिया .. खेलल पनिया में दौरेनी हम नाही तू आवेले पकड़वा बरष भर से…

Read More

गजल

बात जब बेबात के तब बात का? कटल जड़ तऽ भला बांची पात का?   ऊ मोटाइल बा रहस्ये ई अभी, का पता ऊ रहे छिपके खात का?   छली कपटी जब होई दुश्मन होई, मीत ऊ कइसे होई? हित-नात का?   कथ्थ आ करनी में जेकरा भेद बा, ठीक केवन वंश के भा जात का?   झूठ के महिमा रही दुइये घरी, एह से बेसी हो सकी औकात का?   अशोक कुमार तिवारी

Read More

गजल

ई बीमारी बड़का भारी। सनमुख डंणवत, पीछे गारी।।   काटे भीतर घात लगाके, राम राम ई कइसन यारी?   कवन भरोसा केन्ने काटी? जेहके भइल सुभाव दुधारी।   ढेला भर औकात न जेकर, ऊहो मुँह से लादे लारी।   छेड़के ओके नीक न कइलऽ, बहुत पड़ी तोहरा के भारी।   कबहूँ जे सोझा आ गइलऽ, सात पुश्त ले ऊहो तारी।   निकलल बाटे फन त काढ़ी? राखल बाटे लाठी – कारी।   अशोक कुमार तिवारी

Read More

करियवा कोट

कचहरी में वोकील मिलेलन टरेन में टी टी चलेलन बरहों महीना कोट काहें पहिरेलन ? अगर नइखी जानत राज त जान जाईं आज। कोट पहिरला से खलित्तन के संख्या हो जाले जियादा राउर सुरक्षा अउर संरक्षा के पक्का वादा। जे केहु थाकल-हारल, मजबूरी के मारल धाकड़ भा बेचारा इनका भीरी आ जाला मुँह मांगल रकम थमा जाला समन्दर लेखा करियवा कोट में सभे कुछ … समा जाला।     मूल रचना- काली कोट मूल रचनाकार- मोहन द्विवेदी भोजपुरी भावानुवाद- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Read More

आन्हर गुरु, बहिर चेला

समय लोगन का संगे साँप-सीढ़ी के खेल हर काल-खंड में खेलले बा,अजुवो खेल रहल बा। चाल-चरित्र-चेहरा के बात करे वाला लो होखें भा सेकुलर भा खाली एक के हक-हूकूक मार के दोसरा के तोस देवे वाला लो होखे,समय के चकरी के दूनों पाट का बीचे फंसिये जाला। एहमें कुछो अलगा नइखे। कुरसी मनई के आँखि पर मोटगर परदा टाँग देले, बोल आ चाल दूनों बदल देले। नाही त जेकरा लगे ठीक-ठाक मनई उनुका कुरसी रहते ना चहुंप पावेला, कुरसी जाते खीस निपोरले उहे दुअरे-दुअरे सभे से मिले ला डोलत देखा…

Read More