बिला रहल थाती के संवारत एगो यथार्थ परक कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान “

मनईन के समाज आउर समय के चाल के संगे- संगे  कवि मन के भाव , पीड़ा , अवसाद आउर क्रोध के जब शब्दन मे बान्हेला , त उहे कविता बन जाला । आजु के समय मे जहवाँ दूनों बेरा के खइका जोगाड़ल पहाड़ भइल बा , उहवें साहित्य के रचल , उहो भोजपुरी साहित्य के ,बुझीं  लोहा के रहिला के दांते से तूरे के लमहर कोशिस बा । जवने भोजपुरी भाषा के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सुनल भा बोलल ना चाहेला , उहवें  भोजपुरी  के कवि / लेखक के देखल ,…

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ऑक्सीजन से भरपूर ‘पीपर के पतई’

कहल जाला कि प्रकृति सबके कुछ-ना-कुछ गुण देले आ जब ऊहे गुण धरम बन जाला त लोग खातिर आदर्श गढ़े लागेला। बात साहित्य के कइल जाव त ई धरम के बात अउरी साफ हो जाला। ‘स्वांतः सुखाय’ के अंतर में जबले साहित्यकार के साहित्य में लोक-कल्याण के भाव ना भरल रही, तबले ऊ साहित्य खाली कागज के गँठरी होला। बात ई बा कि अबहीने भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के पहिलकी कविता के किताब ‘पीपर के पतई’ आइल ह। ई किताब कवि के पहिलकी प्रकाशित कृति बा बाकिर ऊहाँ…

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लोक संस्कृति के अजब नजीर – जबरी पहुना भइल जिनगी

भोजपुरी भाषा आज देश दुनिया में आपन परचम लहरावे मे काफी आगे बा। एह करी में रोज नया-नया लेखक लोग के कविता आ कहानी के संकलन खूब बाजार में पाठक खातिर आवता। हाल फिलहाल में भोजपुरी के लेखक मंच पर एगो नया नाम उभरल ह जोकर नाम ह- जे.पी. दिवेदी। दिवेदी जी के ई खासियत बा कि उहां के ठेठ भोजपुरी में ही कविता आ कहानी लिखेनी।इनकर पिछला साल एगो कवित संगरह पीपर के पतई आइल रहे ओकरा बाद एह साल के शुरु में आइल ह- जबरी पहुना भइल जिनगी।ई…

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हर रंग में रंगाइल : ‘फगुआ के पहरा’

एगो किताब के भूमिका में रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ऊर्फ जुगानी भाई लिखले बाड़े कि ‘भाषा आ भोजन के सवाल एक-दोसरा से हमेशा जुड़ल रहेला। जवने जगही क भाषा गरीब हो जाले, अपनहीं लोग के आँखि में हीन हो जाले, ओह क लोग हीन आ गरीब हो जालंऽ।’ ओही के झरोखा से देखत आज बड़ा सीना चकराऽ के कहल जा सकत बा कि भोजपुरी समृद्ध बा, भोजपुरिया मनई समृद्ध बा। हमरा ई बात कहला के बहाना श्रेष्ठ शिक्षक, सुलझल मनई आ सरस मन के मालिक कवि-साहित्यकार डाॅ. रामरक्षा मिश्र विमल जी के किताब ‘फगुआ के पहरा’ बा। एह किताब के…

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गाँव-गिरांव के मड़ई से आध्यात्म के शिखर का अनूठा कवि- अनिरुद्ध

पुरूबी बेयार से रसगर भइल गँवई सुघरई के सँवारत, ओकरे छटा के उज्जर अंजोरिया में छींटत-बिदहत कविवर अनिरुद्ध के गीत आ कवितई अपना तेज धार में सभे पाठक आ श्रोता लोगन के बहा ले जाये के कूबत राखेले। अनिरुद्ध जी के गीत आ कवितई अपना स्पर्श मात्र से पथरो पर दूब उगावे लागेले। फेर कतनों नीरस मनई काहें ना होखों, ओकरा के सरस होखे में देर ना लागे।जवने घरी भोजपुरी गीत भा कविता मंच पर ले जाइल, उपहास करावत रहे, ओही घरी अनिरुद्ध जी अपने गीतन से हिन्दी काव्य मंचन…

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भोजपुरी साहित्य के आधी आबादी

हाल के कुछ बड़ घटना में एक बात इहो बा कि लेखन के दुनिया में औरतन के हिस्सेदारी पर बातचीत कइल जाता। शहर-शहरात से लेके गांव-जवार के दूर-दराज़ इलाका में जइसे-जइसे सामाज आ राजनीति में महिला लोगन के भागीदारी बढ़ल जाता, ओह पर चर्चा भी खूब होता। बाकिर आपन जिनगी के मूल समस्या के लेके हिन्दी या हिन्दी के इलाकाई बोली में जेतना ढेर संख्या में महिला रचनाकारन के उभार भइल बा, ओकर एक चौथाई हिस्सा पर भी लिखल-पढ़ल, बोलल-बतियावल अभी नइखे गइल। एह में कउनो शक-शुबहा नइखे कि महिला…

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