भोजपुरी रचनात्मक आन्दोलन के माने-मतलब

केहू दिवंगत हो जाला त आमतौर पर कहल जाला कि भगवान उनुका आत्मा के शांति देसु। हमार एगो कवि-मित्र कहेले कि बाकी लोग के त पता ना, बाकिर कवनो रचनाकार खातिर अइसन बात ना कहे के चाहीं। शान्त आत्मा से कवनो रचना त हो ना पाई आ ना हो पाई त बेचारा दुबारा मर जाई। कहे के अतने बा कि रचना अपना आपे में एगो उदबेग ह, आन्दोलन ह, कुछ उदबेगेला त ऊ आवेला आ आवेला त उदबेगेला। रचनात्मकता, चाहीं त कह लीं, कि आन्दोलित भइले-कइला के एगो आउर नाँव…

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