सजि गइल सगरो दोकान, चुनाव नगिचाइल बा। लउकsता निमने समान, चुनाव नगिचाइल बा। केहू बेचे सस्ता आ केहू देता घालू, केहू कहे दोसरा के सिरमिट में बालू, केहू के बिकाता खनदान, चुनाव नगिचाइल बा। केहू बेचे लसगर, केहू बेचे मयगर, केहू बेचे तरिगर, केहू बेचे जदुगर, केहू बेचे धरम-इमान, चुनाव नगिचाइल बा। केहू पासे धनबल, केहू पासे जनबल, केहू डेरवावे, केहू बोलsताटे अलबल, केहू बाटे बकता सेयान, चुनाव नगिचाइल बा। दलदल छोट-बड़ तोड़-जोड़ मेल बा, नीति ना नीयते बा, बड़-बड़ खेल बा, अपने से अपने महान,…
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एगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’
सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी। जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने…
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