गजल

पहिले रSहे सरल आ सहज आदमी

आज नफरत से बाटे भराल आदमी ॥

 

गीत जिनगी के गावत – सुनावत रहे

अब तs जिनगी के पीछे पर्ल आदमी ॥

 

आदमी जे रहित तs करित कुछ सही

आदमी के जगह बा मरल आदमी  ॥

 

अपना वइभव के तिल भर खुसी ना भइल

देख अनकर खुसी के जरल आदमी ॥

 

राण – बेवा भइल अब त इंसानियत

माँग मे पाप कोइला दरल आदमी ॥

 

कब ले ढोइत वजन नीति के ज्ञान के

फायदा जेने देखलस ढरल आदमी ॥

 

  • अशोक कुमार तिवारी

बलिया

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