बरम बाबा

तू त देखतअ हउअ सब दिन-रात बरम बाबा

नाहीं बा अब पहिले जइसन बात बरम बाबा

 

सुक्खू अपने अँगने में भी नल लगवा लेहलेन

कुँआ पाट के रामधनि बइठका बना देहलेन

बुधनी के दुआर पर खम्भा घर में लाइट बा

बालकिशुन बिल देवे लगलेन जेबा टाइट बा

 

घरे-घरे पैखाना बा ,लोटा क जुग बिसरल

केहू नाही अब जंगल में जात बरम बाबा ||

 

घर घर में टीवी बा ,डिश बा,इंटरनेट भी बा

सबके पल्ले मोबाईल क बढ़िया सेट भी बा

बर्गर,पिज़्ज़ा,चाउमीन सब मिलय लगल अब त

केक, पेस्ट्री ,काफी,कुल्फी दिखय लगल अब त

 

बइठल घुरहू सोचत हउवन अपने गुमटी में

चना-चबैना अब के बाटै खात बरम बाबा ||

 

आठ बजे तक एही गाँव में सब सुत जात रहल

चार बजे तक बुढ़वा-लड़का सब उठ जात रहल

अब रतिया-रतिया भर चैटिंग-वैटिंग चलय लगल

अस बुझाय मुँह से बोलय में पइसा लगय लगल

 

सँझा के चौपाल कभौ तब लगत रहल

सात बजे अब हो ला सुपरभात बरम बाबा ||

 

पहिले रहलेन टिकत बराती अँगने अउर दलान में

अब लड़किन क शादी देखअ होय लगल बा लॉन में

कंधे पर ले जात रहेन तब केहू मरत रहल

लाश उठावे खातिर के तब गाड़ी करत रहल

 

पहिले जइसन अब सहजोग देखाला नाही

घरे-घरे बा एतना झंझाबात बरम बाबा ||

 

कच्चा सड़क रहल कभौ अब सड़क भइल पक्की

पैकेट का आटा आवत बा बंद भइल चक्की

चापाकल क पानी अब सबके बीमार कर देला

केहू -केहू अब पियअ खातिर बिसलेरी भी लेला

 

बिना बदलले एक तू ही बाबा जी डटल हयअ

गर्मी ,ठंडी ,हो चाहे बरसात बरम बाबा ||

 

 

विनोद पाण्डेय

गाजियाबाद

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