पंडित हरिराम द्विवेदी होखला के माने मतलब

पंडित हरिराम द्विवेदी से हमार रिस्ता 12 पीढ़ी पुरान ह। कांतिथ के परवा गाँव से आइल कश्यप गोत्रीय  3 भाइन के एगो परिवार में से एक भाई के खानदान से उहाँ के बानी आ दोसरा भाई के खानदान से हमनी बानी। उहाँ के 11 वीं पीढ़ी में बाड़ें आ हम 12वीं पीढ़ी में। माने ठसक के संगे दयादी बा आ उ अजुवो जियल जा रहल बा।

लोकजीवन आउर लोक संस्कृति के कतौ जब बात होखे लागेला, त चाहे-अनचाहे लोककवि लोगन के भुलाइल संभव ना हो पवेला।भोजपुरिया जगत मे अनगिनत लोककवि भइल बाड़ें, जेकर कहल-सुनल गीत-कविता लोककंठ मे रचल-बसल बाटे। पीढ़ी दर पीढ़ी चलल आवत संस्कार गीत एही के उदाहरण बाड़ी सन। भोजपुरिया समाज मे एह घरी लोककवि के बात करल जाव त कुछ नाँव तेजी से सोझा उपरि आवेलन। अइसने एगो नाँव पं. हरिराम द्विवेदी जी के बाटे। आजु के समय के जीयत-जागत, बोलत-बतियावत,सबके दुख से दुखी आउर दोसरा के सुख मे आपन सुख महसूसे वाला लोककवि बानी पं. हरिराम द्विवेदी जी। लइकइयेँ से खेती-किसानी वाले रेडियो प्रसारन मे सुनल-जानल नाँव “हरि भइया” कई पीढ़ी के “हरि भइया” बानी। भोजपुरी के गीत ऋषि आ करीब 4 पीढ़ी के हरि भइया मने  पंडित हरिराम द्विवेदी भोजपुरी लोक के,लोक परंपरा के, लोक धुन के जवन ग्यान राखेलें, तवन अउर कतों भेंटल मोसकिल ह। अपना वोही ग्यान के पूरे मनोयोग से भोजपुरी जगत के सोझा परोसे के जवन ललक पंडित हरीराम द्विवेदी भीरी बा, सराहे जोग बा। भोजपुरी के सभेले बड़हन थाती भोजपुरी लोकगीत बाड़ी स। ओही लोकगीतन के लोक जीवन के अयना माने वाला पंडित हरिराम द्विवेदी जी के जनम मिरजापुर जिला के शेरवाँ गाँव में  पंडित शुकदेव जी के इहाँ 12 मार्च 1936 भइल रहल। प्रारम्भिक शिक्षा चकिया से भइल। सेरवाँ से पैदले रोज चकिया आ के पढ़ाई कइल आ फेरु पैदले गावें गइल, इहे लइकइयाँ के शगल रहल। ओह घरी गांवन में  मनोरंजन के साधन गीत-गवनई, रमायन बांचल आ गावल रहे। माई के दुलरूआ रहला का वजह से कवनों बार-बरात,छठी-बरही भा गाँव के मेहरारून के कवनों जुटान में माई के संगे जात-जात लोक संगीत के जवान घुट्टी पियलें ओही के अभियो ले लोक के लउटा रहल बाड़ें।   फिर स्नातक आ बी एड काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से आ स्नाकोत्तर काशी विद्यापीठ से भइल। 1965 में आकाशवाणी इलाहाबाद में नोकरी शुरू भइल। जवन 30 बरिस तक चलल। 1994 में आकाशवाणी से सेवा निवृत्ति का बाद बनारस मोतीझील इलाका के अजमल गढ़ पैलेस एह घरी रहेलन। देश विदेश के काव्य मंचन काव्य पाठ क चुकल पंडित हरिराम द्विवेदी बहुत सहज सोभाव के मनई हउवन। एही से अपना एगो आलेख में उनुका के डॉ बलभद्र मोह के कवि कहले बाड़न।  डॉ बलभद्र कह रहल बाड़े –

“द्विवेदी जी ‘मोह’ की तरफदारी के कवि हैं। आसक्ति के कवि हैं, बंधन के स्वीकार के कवि हैं। यह नेह-नातों का बंधन है। अपने ‘आत्म’ को सदा मुक्त रखने के हिमायती हैं। आसरा की ज्योति जिन नयनों में बसती है वह नयन न भींगे और यदि नयन जो भींग भी जाए तो नयनों में पलने वाले सपने न भींगे। किसको बचाए भीगने से इस द्वंद्व के बीच एक निवेदन-

“बसै जहवाँ असरवा के जोति नयनवाँ न भींजइ हो
चाहे भींजै त भींजै नयनवाँ सपनवां न भींजइ हो।

हरिराम जी से यह गीत सुनने का अपना आनंद है। आज की तारीख में जब आदमी-आदमी के बीच नेह-नातों के लिए जगह कम होती जा रही है, हरिराम जी के गीतों को सुनते हुए हृदय प्रभावित हुए बिना नहीं रहता। हम केवल स्मृतियों में ही नहीं जाते, अपने वर्तमान को भी टटोलते हैं। इन गीतों को सुनना, गुनगुनाना खोये को पाने और पाये को बचाने को सोचने जैसा है। खुद को गुनगुनाने जैसा। ‘मोह’ को स्पेस देने जैसा।”

भोजपुरी साहित्य सरिता उहाँ के ऊपर 2018 में एगो विशेषांक लेके आ चुकल बा, जवना के अतिथि सम्पादन प्रो सदानंद शाही आ डॉ प्रकाश उदय  रहलें। अपने ओही संपादकीय में प्रो सदानंद शाही  पंडित हरिराम द्विवेदी के भोजपुरी के हीरामन बतवले बाड़न। ऊहवें डॉ प्रकाश उदय कह रहल बाड़ें कि हरिराम द्विवेदी के बात होखे आ नाको घुसावे के मोका भेंटा जाव , त हम उ मोका ना छोडल चाहीले, फिर भोजपुरी साहित्य सरिता के हरिराम द्विवेदी विशेषांक के अतिथि संपादक होखला के सुख कइसे छोड़ देहित।  डॉ प्रकाश उदय  उहाँ के चर्चित किताबि ‘ हे देखा हो’ के अपने भूमिका में कहले बाड़न-

“हरि भइया के ई जवन बहुवस्तुपरसी प्रतिभा बा तवन इहाँ-उहाँ-जहाँ-तहाँ त बड़ले बा, तहँवा त जइसे उपट परत बा जहँवा ऊ अपना अगल-बगल के बिलोप भइल चीजन के चिंता में परत बाड़े! अंबार लेखा लाग जाता अइसन चित्रन के जवनन के बुला अब चित्रने में रह जाय के बा- सारी, घोड़सारी, चरनी, अहरी, नाद, नाधा, जुआ, हरिस, हर, पलिहर, खराई, कोठिला, कुंडा, छोण,……।”(हे देखा हो!)।

पंडित हरिराम द्विवेदी से हमार पहिल भेंट 2017 में बनारस के एगो कवि गोष्ठी में भइल रहे, जहवाँ उनके सुने आ कुछ आपन सुनावे के सुखद पल भेंटल रहल। ओकरा बाद त कई बेर उनकर नेह आ आशीष पावे के पल भेंटाइल। हर बेर पहिले से जेयादा आपन लगले पंडित हरिराम द्विवेदी। सुरुवे में हम दयादी के बात बतवनी ह, उहाँ के हमार बड़का बाबूजी बानी बाकि हम उहाँ के बाबूजी कहि के बोलीले।

उहाँ के भोजपुरी कृतियन के बात कइल जाव त पानी कहै कहानी,नदियो गइल दुबराय,जीवन दायिनी गंगा,बैन फकीरा, पातरि पीर, हे देखा हो,लोक गीतिका, अँगनइया, साँई भजनावली आदि बाड़ी सन।

पंडित हरिराम द्विवेदी साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान, विश्व भोजपुरी सम्मेलन से ‘सेतु सम्मान’ हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश से राहुल सांस्कृत्यायन सम्मान, बांकेराम तिवारी समाज रत्न पुरस्कार, साहित्य सारस्वत,संबोधि सम्मान ,लोक पुरुष सम्मान, विद्या निवास मिश्र लोक कवि सम्मान, साहित्य भूषण , पुरबिया गौरव लोक ऋषि,यू पी रत्न सम्मान, डॉ मोहन लाल तिवारी स्मृति सम्मान,निगार ए बनारस  जइसन अनेकन सम्मानन से  आ अनेकन  मंचन से सम्मानित भइल बानी।

उनुकर एगो गीत जवन हमरा मन के झकझोरेले,उ भोजपुरियत आ लोक संस्कार के बचावे के खाति बा,संजोग से पहिल बेर हमारा उनुही से सुने के मिलल-

 

“अयना मे अंजोरिया बसाय रखिह

ओके सगरी उमिरिया जोगाय रखिह

रहि न पावे अन्हरिया कतौ मितवा

अंगनइया मे दीयना जराय रखिह”

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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