धक् से लागल बात बावरी’: लोकजीवन में गहिराहे धंसल कविताई

‘धक् से लागल बात बावरी’ भोजपुरी के चर्चित कवि-गीतकार आ ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ मासिक पत्रिका के संपादक जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के कुल जमा पैंसठ गो कविता अवरू गीत के संकलन ह जेकर प्रकाशन सन् २०२२ में सर्व भाषा ट्रस्ट, नयी दिल्ली से भइल रहे । एह संकलन में छंदबद्ध आ मुक्तछंद दूनों के हुनर देखल जा सकेला । एह संकलन के मए कविता आ गीतन से गुजरला प ई महसूसल जा सकेला कि एह सब में गंवई लोक जीवन के गाढ़ आ चटक रंग पसरल बा । कवि के कविता में जेवन काव्यानुभव बेअक्त भइल बा ऊ बहुते पोढ़ बा आ आपन अभिव्यंजना में पाठक आ श्रोता के मरम के भेदे वाला बा । जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के काव्य भाषा में जेवन बिम्ब, प्रतीक, मुहावरा आ लोकोक्तियन के बरतल गइल बा ऊ सब सीधे आपन गांव -जवार के सामान्य जन के जिनगी से लिहल गइल बा । एह संकलन के कवितन के पहिल पाठ में केवनो पाठक,रसिक भा सहृदय के ई भ्रम हो सकेला कि एहनी में कवि के काव्य भाषा में अभिधा के कमाल बा बाकिर थोरिका धेयान से पढ़ला प बुझाई कि कहन में लक्षणा आ व्यंजना के भरपूर सौन्दर्य समाइल बा । कवि हर कविता में आपन कथ्य आ शिल्प के ले के सजग -सचेत बा । एह कवितवन के रचे वाला रचनाकार आपन निजी घर -परिवार, आस-पड़ोस, देश -दुनिया के भीतर पसरल सच्चाइयन,जथारथ के ले के एगो ‘क्रिटिकल एप्रोच’ राखत बा । कविता ओकरा खातिर लोग बाग से एगो बेहतर संवाद के माध्यम बा । ऊ कविता से सामाजिक विसंगतियन प,बेवस्था जन्य दुर्बलता प गहिरारे चोट करत बा । ऊ लोकतंत्रात्मक खामियन के उभारे में वक्रोक्ति आ व्यंग्य के इस्तेमाल करि रहल बा । कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी आपन एगो कविता -‘तबहूं चलत बिया सरकार’ में लिख रहल बानी -”जोगियन से मठ भइल उजार । तबहूं चलत बिया सरकार ।। अझुरा के सझुरा ना पावे,लम्मा बइठल मुंह बिचकावे ,भारी काम देखि अस कँउचे,जइसे होखे बहुत बेमार ।। लिख लोढ़ा पढ़ पाथर बाटे, झुट्ठे रोज बकैती छांटे,सरके गाड़ी राम भरोसे,बनल बेवस्था डग्गामार।।” उपरोक्त बंद में अभिधा के सरलता, सादगी के संगे -संगे लक्षणा आ व्यंजनो के मारक क्षमता के असर देखल जा सकेला । डग्गामार, बकैती,लिख लोढ़ा पढ़ पाथर आदि शब्दन आ लोकोक्तियन के ऊहे कवि बरत सकेला जे भोजपुरी गंवई लोक जीवन में गहिरारे धँसल बा । जयशंकर प्रसाद द्विवेदी ओइसे त विज्ञान के पढ़ाई पढ़ के बड़हन शहर में रोज़गार के चलते रहि रहल बाड़न बाकिर उन्हुकर दिल-दिमाग त बसल बा अबहियो यूपी में ज़िला चंदौली के आपन पैतृक गांव बरहुआँ में । ऊ आपन गांव -जवार में आइल ढेर सारा नकारात्मक बदलाव से व्यथित दिखाई दे रहल बाड़न । ऊ आपन एगो कविता में लिखत बाड़न – “तिरपित खेत सिवान न बहरा,भूलल बिसरल जगरम पहरा,पहिल बेर जब गइल बहुरिया,ठमकल,ठनकल पांव, गांव अब ऊसर लागे।।”
एगो दोसर कविता में ऊ लिखत बाड़न – “सोझबक मनई लउकत नाही,बिना बंद के बहर हो गइल,गँउवों देख शहर हो गइल।।”
कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के निगाह गांव के एक -एक बदलाव प बा । ओकर कविताई से गुजरला प आजु के गँवई समाज आ लोक में आइल नकारात्मक बदलाव के समुझल जा सकेला । आजु के गांवन में शहरी जिनगी के जटिलता, छल-कपट आ बनावटीपन समा रहल बा । गांधी बाबा कहले बाड़न कि भारत के आत्मा गांवन में बसेला । जब गांव ना बांची त देसवो का बांची ? ई एगो गंभीर बहस आ विमर्श के विषय बा । हमरा बुझाला कि जब से सन् १९९० के बाद से हमनी के देश में ग्लोबलाइज़ेशन शुरू भइल आ ग्लोबल विलेज के अवधारणा सामने आइल,सांचो के गांव बिलाए लगले सन ।
अगर बारीक नजर से कवि जयशंकरप्रसाद द्विवेदी के कविताई के पड़ताल कइल जाय त ईहे पता चली कि ऊ भोजपुरी अंचल के गंवई लोक जीवन के जथारथ के कवि बाड़न आ राजनीतिक चेतना से लैस भी । उन्हुकर कविता पढ़त -गुनत ई बुझाई कि ऊ भोजपुरी के समकालीन कविता -गीत में आपन चाचा पंडित हरिराम द्विवेदी जी (अब स्मृति शेष) आ रामजी सिंह मुखिया के परंपरा के नीक तरीका से आगे बढ़ावे के जतन करि रहल बाड़न । मुखिया जी आरा के रहन जे अब हमनी के बीच नइखन ।
कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी आपन कविता आ गीतन में सामाजिक जथारथ, राजनीतिक चेतना के साथ आपन गँवई लोक संस्कृति के संस्कार आ परंपरा के भी भुलाइल नइखन । कवि आपन कवित्त विवेक के गढ़े आ रचे-बुने में केवनो आधुनिक विचारधारा के फैशन के रूप में नइखे अपनावत बलुक सहजता से प्राप्त भइल लोक अनुभव से ओकरा के संवारत -संस्कारित करत बा । ऊ एगो आदर्श आ नैतिकता के ज़मीन प मज़बूती से ठाढ़ हो के कविता के ज़रिए सामान्य जन के बोली -बानी में संवाद क़ायम करि रहल बा । ऊ जेहवां किछु गड़बड़ी देखत बा समाज भा बेवस्था में ओकरा प निर्भय हो के बिना लाग-लपेट के आपन बात कर रहल बा आ पाठक समुदाय के एगो दिशा देखावत बा । हमरा उमेद बा कि ई संकलन लोग बहुत पसंद करी। हमार शुभकामना कवि के साथ बा ।
  • प्रोफेसर डॉ  चंद्रेश्वर
लखनऊ

Related posts

Leave a Comment