उरुआ के लभ मैरेज

एक बेरी के बात ह कि कैलाश मानसरोवर के एगो हंस के बियाह भइल त ऊ अपना मेहरारू हंसिनी से कहलस कि चले के बिहार घूमे. हंसिनी पुछलस कि ओहिजा देखे जुगुत का बा? तब हंस कहलन कि जवने बा तवने देखल जाई! फेर कहलस कि ओहिजा हिमालय नियन पहाड़ त नइखे, बाकिर कैमूर पहाड़ी बा, रोहतासगढ़ के किला बा. गंगा नदी नइखे त का भइल, दुर्गावती आ करमनासा नदी बाड़ी सन. भगवान भोलेनाथ नइखन त का भइल, उनके रूप गुप्तेश्वर नाथ के गुप्ताधाम बा. हंसिनी खुश हो गइली आ…

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हमार भउजी !

हमार भउजी शहर से आइल रही, गांव के रीत-रिवाज ना जानत रही. सब कुछ उनका खातिर नया रहे. एक से एक सवाल करटी रही. गांव के लइकी उनका के पटनहिया भउजी कहत रही सन. भउजी खाये-पीये के बड़ी सवखीन रही. भोजपुरी में अइसन अदिमी के खबूचड कहल जाला. भउजी ना जानत रही कि अनाज कइसे उपजे ला. फागुन के महीना रहे, होरहा-कचरी के दिन. आजी कहली की कनेऊआं के कचरी खियाव लोग, का जाने खइले बिया कि ना ! बनिहार एक पंजा कचरी लेया के अंगना में पटक देलस . भउजी देखली त चिहा के कहली कि के त चना के फेंड उखाड़ के…

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