विध्वंस आ सिरजन एह सृष्टि रूपी सिक्का के दू गो पहलू लेखा बा। एक के दोसरा अलगा राख़ के देखल मोसकिल ह। मने अलगा-अलगा राखल भा देखल संभव नइखे। अब जवन कुछ संभवे नइखे,ओह पर कवनो बतकही बेमानी बा। बाक़िर एह घरी त पत्थर पर दूब्बा उगावे के पुरजोर परयास हो रहल बा। परयास देखउकी भर के बा भा साँचों ओकर छाया जमीन पर उतर रहल बा, ई त समय के ऊपर छोडल जा सकेला। एह छोड़लको पर लोगन के नजरिया अलग-अलग हो सकेले,बाक़िर दोसर कवनो रासतो त नइखे। दुनिया…
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