टीस

“महतारी की कोखि से का जाने का भागि ले के जनमल रहनीं। नइहर में नाहीं ढेर त कुच्छु कम्मों त ना रहे। हमार बाबूजी कवनों चीज के कमी ना होखे देत रहलें। बड़ी देखि सुनि के भरल-पुरल घर में बिअहले रहलें कि हमार बबुनिया सुख से रही, बाकिर भागि के लेखा कि छौ भाइन में बर-बँटवारा के बाद जवन खेती-पाती मिलल ओसे गुजर-बसर भर हो जाउ, ऊहे ढेर!” बुधिया खेते की मेंड़े पर बइठि के घास छोलत मनेमन अपनी भागि के कोसत रहे। “अरी बुधिया!” सुनि के हाथ रुकि गइल…

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