झऊँसत बा देंहि सगरो झऊँसत बा मनवाँ करीं त का करीं। जरे धरती असमनवाँ सजनवा का करीं ।। गुम सुम भइल नाहीं बहेला पवनवाँ। छितरी प छितरी छूटे उग बुग मनवाँ।। बेनिया डोलावत चुनुकल हाथे के कङनवाँ सजनवा का करीं ।। दिनवाँ कटेला कइसो कटे नाहीं रतिया। अन्हारे धुन्हारे होला बहुते ससतिया।। छतवा तवेला अउसे घरवा अङनवाँ सजनवा का करीं।। धान के बेहन सूखल, खेत ना जोताइल। होला धूरिबावग लोग बाटे अगुताइल।। परल छितराह बहुते मिलें नाहीं जनवाँ सजनवा का करीं।। माया शर्मा, पंचदेवरी, गोपालगंज (बिहार)
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