जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा कउअन के काँव-काँव बगइचा में भर गइल कोइल के कूक ना कबो कतहीं सुनात बा अर्थी के साथ बाज रहल धुन बिआह के अब एह अनेति पर केहू कहँवाँ सिहात बा भूखे टटात आदमी का आँख के जबान केहू से आज कहँवाँ, ए यारे, पढ़ात बा संवेदना के लाश प कुर्सी के गोड़ बा मालूम ना, ई लोग का कइसे सहात बा ‘भावुक’ ना बा हुनर कि लिखीं…
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कुँवर सिंह के आखिरी रात
26 अप्रैल 1858 के रात कुँवर सिंह के आखिरी रात रहे. तीन दिन पहिले 23 अप्रैल के 80 बरिस के एह घायल शेर के कटल हाथ पर कपड़ा बन्हाइल, ओकरा ऊपर से चमड़ा के पट्टा से ढ़ाल के बान्हल गइल, तिलक लगावल गइल. फेर त ई राजपूती तलवार अंगरेजन के गाजर-मूली के तरह काटल शुरू कइलस. ली ग्राण्ड के जान गइल आ बाकी बाँचल अंग्रेज सैनिक जान बचा के भगलन सन. जगदीशपुर आजाद हो गइल. यूनियन जैक के झंडा उतार के परमार वंश के भगवा पताका लहरावल गइल. लोग खुशी…
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बचपन के हमरा याद के दरपन कहाँ गइल माई रे, अपना घर के ऊ आँगन कहाँ गइल खुशबू भरल सनेह के उपवन कहाँ गइल भउजी हो, तहरा गाँव के मधुवन कहाँ गइल खुलके मिले-जुले के लकम अब त ना रहल विश्वास, नेह, प्रेम-भरल मन कहाँ गइल हर बात पर जे रोज कहे दोस्त हम हईं हमके डुबाके आज ऊ आपन कहाँ गइल बरिसत रहे जे आँख से हमरा बदे कबो आखिर ऊ इन्तजार के सावन कहाँ गइल मनोज भावुक
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मुहब्बत खेल ह अइसन कि हारो जीत लागेला भुला जाला सभे कुछ आदमी , जब प्रीत लागेला अगर जो प्यार मे मिल जा त माँड़ो-भात खा लीले मगर जो भाव ना होखे , मिठाई तीत लागेला । पड़े जब डांट बाबू के , छिपीं माई के कोरा मे अजी ई बात बचपन के मधुर संगीत लागेला कबों आपन ना आपन हो सकल मतलब का दुनिया मे डुबावत नाव उहे बा , जे आपन हीत लागेला कहानी के तरे पूरा करीं, रउवे बताईं ना बनाईं के तारे…
Read Moreसाठ बरिस के भइया
भउजी सोरह के बाड़ी आ साठ बरिस के भइया बाज के चोंच में देखीं अंटकल बिया एक गौरइया भिखमंगा जी बेंच के बेटी, दारू पीके कहलें बाबू बड़ा ना भइया साला सबसे बड़ा रूपइया “पराम्ब्यूलेटर” में घूमत बाड़े अब डैडी के सन ऊ का जनिहें का होला ई “पिठइयां अउर कन्हइया” पूजा में भोंपू बाजत बा “दिल देबू कि ना हो” और बीच में जय जयकारा “जय सुरसती मइया” मत पूछीं हमरा से कि हम कब से भटकत बानी हमरा त लागत बाटे इ जिनगी भूलभुलइया…
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