सात पुहुत के उखड़ गइल खूँटा बेंचा गइलें स बैल दुआर कुछ दिन रहल उदास बाकिर सन्तोषो ई कम ना रहल कि अतना जोतइला के बादो निकल गइल दाम गहँकी अइलें स तय भइल दाम धरा देल गइल पगहा पगहा धरावत दाम धरत माथ पर गमछा धइल ना परल भोर रिटायर होत समय चाचा सोचलें आ सोचल आपन सगरो गवलें कि रहब गाँवे खेत-बधार घूमब रिटायर भइला के साले-दू साल बाद बँटा गइल घर चूल्हा-चउका फरिया गइल गुमसुम रहे लगलें चाचा एह गुमसुमी के लागल कतने माने-मतलब कबो अन्हारें कबो…
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जनगीत आ भोजपुरी जनगीत
जनगीत में जन आ गीत एक साथे बा।एह में जन पहिले बा आ गीत बाद में।एह पहिले आ बाद के जवन मतलब ह तवन ई ह कि जन के कंठ में गीत बसेला,ओकर हिया से गीत फूटेला।जन आ गीत के जुगलबन्दी में पूरा जीवन धड़केला।राग-रंग के साथे विरह-बिछोह,दुख-तकलीफ आ जीवन-संघर्ष।सज्जी समाज मय नाता-रिश्ता के साथे।जनगीत कवनो एगो भाषा आ देश के चीज ना ह।हर देश हर भाषा में पावल जाला।हँ, ओकर रूप आ अभिव्यक्ति अलग -अलग होला आ बहुत कुछ आश्चर्यजनक रूप से मिलतो जुलत होला।जनगीत के हालाँकि एगो खास…
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