सिकुरत सिकुरत बचला मुट्ठी भर अब ना जगबा, त ओरा जइबा। पुरबुजन के नाँव हँसा जइबा॥ जे जे कांपत रहल नाँव से ओहन से अब कांपत हउवा। बीपत जब सोझा घहराइल भागत भागत हांफत हउवा॥ कतों बिलइला आ भाग परइला साँच बाति के कब पतिअइबा॥ अब … कवन डर पइसल बा भीतरी जवना से घबराइल हउवा। लालच के लत लागल तहरा बेगर बाति क घाहिल हउवा। जहाँ धरइला आ उहें छंटइला केकरा सोझा दुखड़ा गइबा॥ अब… ईरान क, का हाल छिपल बा अफगानिस्तान पुरा सफाया। दहाई में…
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