कब दरक गइल जियरा उधियाइल भिनुसहरा अब टोवत बेवाई सभे अहमक़ कहाई । साटल पेवना भइल जिनगी ॥ घाव बाटे जियतार टकटोरत बार बार उहाँ उजार खोरिया देखीं जवने ओरिया काँच खेलवना भइल जिनगी ॥ बड़की बिटिया सयान सभे उझिलत गियान दाना ला मोहताज कइसे चली राज काज ओद लगवना भइल जिनगी ॥ माँग बहोरि आंखि नम पायल बाजल छमाछम केहरो मन के खटास टूटि बिखरल बा आस बिसरल चूवना भइल जिनगी ॥ घरे खलिहा सिकउती इचिको नइखे बपउती कहवाँ बाटे चउपाल भर गउवाँ बा बेहाल…
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लोक संस्कृति के अजब नजीर – जबरी पहुना भइल जिनगी
भोजपुरी भाषा आज देश दुनिया में आपन परचम लहरावे मे काफी आगे बा। एह करी में रोज नया-नया लेखक लोग के कविता आ कहानी के संकलन खूब बाजार में पाठक खातिर आवता। हाल फिलहाल में भोजपुरी के लेखक मंच पर एगो नया नाम उभरल ह जोकर नाम ह- जे.पी. दिवेदी। दिवेदी जी के ई खासियत बा कि उहां के ठेठ भोजपुरी में ही कविता आ कहानी लिखेनी।इनकर पिछला साल एगो कवित संगरह पीपर के पतई आइल रहे ओकरा बाद एह साल के शुरु में आइल ह- जबरी पहुना भइल जिनगी।ई…
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