चान अब त जहर तकले,निगलि जाता मानि लीं। रोज सूरुज एक रत्ती,पिघलि जाता मानि लीं।। हमरा जिनिगी में केहू के प्यार, शायद ना रहे। हरेक पल सभके मुखौटा,बदलि जाता मानि लीं।। एह शहर के आदिमिन्हि के,चाल कइसन हो गइल? बहिनि-बेटिन्हि के करेजा,दहलि जाता मानि लीं।। जहां हर रिश्ता के एगो,मोल- मरजादा रहे। नेह-नाता ऊ पुरनका,ढहल जाता मानि लीं।। जाति पर,कुछु धरम पर,सभ आपुसे में बंटल बा। राष्ट्र सर्वोपरि के भावे,मिटल जाता मानि लीं।। चाह दिल में रहे हरदम,हम जिहीं,हंसि के जिहीं। अब त मन,बस रोइये के,बहलि जाता मानि लीं।। रोज…
Read MoreTag: अनिल ओझा ‘नीरद’
निमिया के पात पर
निमिया के पात पर सुतेली मयरिया,ए गुंइया। कइसे करीं हम पुजनियां,ए गुंइया।। धुपवा जराइ हम गइनीं जगावे,ए गुंइया। मइया का ना मन भावे, ए गुंइया।। गंगा जल छींटि छींटि,लगनी जगावे,ए गुंइया। मइया करो ना घुमावे,ए गुंइया।। अछत,चनन,छाक,गइनी चढ़ावे,ए गुंइया। मइया का ना इहो भावे,ए गुंइया।। मालिनि बोला के कहनीं,मलवा ले आवे,ए गुंइया। मइया मूड़ी ना उठावे,ए गुंइया।। पूआ-पूरी ले के गइनीं,भोगवा लगावे,ए गुंइया। मइया तबो ना लोभावे,ए गुंइया।। पुतवा बोला के कहनी,झुलुहा लगावे,ए गुंइया। मइया झट उठि आवे,ए गुंइया।। अनिल ओझा ‘नीरद’
Read More