भोजपुरी समीक्षा के संकट

भोजपुरी के साहित्यिक इतिहास मोटामोटी डेढ़ सौ साल के पूरा होखे जा रहल बा. एह में सब विधा के रचना भइल, बाकिर समीक्षा के लेके कुछ विचार हमरा सामने उठ रहल बा. किताबन के समीक्षा के नांव पर ओकर परिचय लिखे आ छापे के काम भोजपुरी आ हिंदी के अखबारन के संगे-संगे पत्रिकन में भी लगभग आठ-दस दशक से चल रहल बा. बाकिर भोजपुरी में समीक्षा के विधात्मक स्वरुप अबे साफ नइखे भइल. समीक्षा आ आलोचना के एके मान के चलल ठीक नइखे. दुनो के भेद जानल जरुरी बा. किताबन…

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गाँव आ गोधन पूजा

असों सुजोग से देवारी पर हम गाँवे बानी। त ढेर कुछ भुलल–बिसरल मन परल।ओही में से एगो गोवर्धन पूजो बा। देवारी के एक दिन बाद भोजपुरिया समाज में गोवर्धन पूजा जवना के गोधना कहल जाला, बड़ सरधा का संगे मनावल जाला। आजु के गाँवन से सामुहिकता त बिला रहल बा, बाक़िर अबो ढेर कुछ बाचल बा। पहिले एक टोला में एगो गोधन बाबा बनावल जात रहलें आ पूजात रहलें। मय टोला के लइकी, मेहरारू लो जुटत रहे आ अपना-अपना भाई लोग सरापत रहे।अब कई जगह गोधन बने लागल बाड़न बाक़िर…

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भोजपुरी कविता के अतीत आ वर्तमान

भोजपुरी कविताई के सुरूआती दौर भोजपुरी कविता के प्रारम्भिक दौर के पड़ताल करत खा हमरा सोझा ओकर तीन गो रूप आवत बा – एगो बा सिद्ध, नाथ आ सन्त कबियन क रचल, दूसर लोकजिह्वा आ कंठ से जनमल, हजारन मील ले पहुँचल, मरम छुवे आ बिभोर करे वाला लोकगीतन के थाती आ तिसरका भोजपुरी के सैकड़न परिचित-अपरिचित छपल-अनछपल कबियन क सिरजल कविताई. साँच पूछीं त भोजपुरी कबिता सुरूए से लोकभाषा आ जीवन के कविता रहल बा. एही से ओमें सहजता आ जीवंतता बा. भोजपुड़ी कविता का अतीत के देखला से…

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कजली मंजू मल्हार

भोजपुरी लोक में तरह-तरह के गीतन के विधा बा। एहि लोक के कंठ में रचल-बसल एगो विधा के नांव बा कजली अथवा कजरी। भोजपुरी लोक जीवन खेती बारी प आधारित बेवस्था ह, आ खेतीबारी के चक्र आधारित बा मौसम बा रितुअन प। सुरूज़ जब उत्तरायन होखला के बाद आपन ताप से एह क्षेत्र के दहकावत रहेले त मानव से ले के हर जीव जन्तु के मन में इहे रहेला कि कब आसाढ़ के महीना आवे आ सुरूज़ के ताप कम होखे। कब बरखा के फुहार से कब धरती सराबोर होखस,…

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सावन मास पावन आ मनभावन

सावन शिव के मास ह।पूरा लोक शिवमय हो जाला सावन में। चहुंओर बोल-बम, हर-हर महादेव के गूंज वातावरण में गूंजत रहेला। प्रकृति पार्थिव शिव पर जलाभिषेक करे खातिर बारिश के रूप में बरिसत रहेला।सावन चढ़ते हवा आपन रूख बदल देला। धूप आपन ताप प्रभाव कम कर देला। वातावरण में धूल उड़ल बंद हो जाला।सूखल जलाशय पनिया – पनिया हो जाला।धरती के पियास बुझा जाला। चहुंओर हरियरी दिखाई पड़े लागला। जंगल मनोहारी हो जाला। मोर नाचे लागेला।मनई के मन ई देख कइसे नियंत्रित रहित।सावन आवते झूम उठेला। कहीं कजरी सुनाला त…

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आइल चइत उतपतिया हो रामा!

चइत के उतपाती महीना मस्ती के आलम लेले आ धमकल बा। कली-फूल के खिलावे के बहाना से बसंत अपना जोबन के गमक फइलावत चलल जा रहल बा। आम के मोजर में टिकोढ़ा लागि गइल बा आ सउंसे अमराई में टप-टप मधुरस टपकि रहल बा। कोइलरि के कुहू-कुहू के कूक माहौल में एगो अनूठा मोहक रस घोरत बा। अइसना मदमस्त महीना में जदी मन के सपनन के सजीला राजकुमार परदेस के रोटी कमाए चलि गइल होखे, त बिरहिन हमजोली के वेदना पराकाष्ठा पर जा पहुंचेले। अंगइठी लेत रस से भरल देह,…

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बिरहिनि के बेजोड़ भावाभिव्यक्ति हवे चैता

चइत महीना चढ़ते चारु ओर तनी चटक रंग लउके लागेला। एह तरे कहल जाव त चइता परेम के पराकाष्ठा के प्रस्तुति हऽ। परेम में मिलन, बिछुड़न, टीस, खीस के प्रस्तुति ह। जिनगी के अनोखा पल के अनोखा भावन के अभिव्यक्ति के प्रस्तुति ह। बिहार आ उत्तर-प्रदेश में चइत महीना में गावे वाला गीतन के चइता, चइती चाहे चइतावर कहल जाला। चइता में मुख्य रूप से चइत माह के वर्णन त रहबे करेला, ई शृंगार रस में वियोग के अधिकता वाला लोकगीत हवे। गायिकी में चइता के ‘दीपचंदी’ चाहे ‘रागताल’ में गावल जाला। कई जने एहके ‘सितारवानी’ चाहें ‘जलद त्रिताल’ में गावेले। भले आधुनिकता के डिजिटल लाइट में चइता के चमक मद्धिम हो गइल बा, बाकिर आजुओ भोजपुर, औरंगाबाद, बक्सर, रोहतास, गया, छपरा, सिवान, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर…

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जिनिगी के छंद में आनंद भरि आइल रामा,चइत महीनवा

अइसे साल के बारहो महीना के आपन महत्व होला बाकिर साल के अंतिम महीना फागुन आ पहिला महीना चइत के रंग – राग आ महातम अनोखा बा।इहे देखि कहल जाला कि साल में से ई दूगो महीना फागुन आ चइत के निकाल देल जाय त साल में कुछ बचबे ना करी। फागुन आ चइत ना रहित त लोक जीवन में रस रहबे ना करित। फागुन के होली, फगुआ आ चौताल आ चइत के चइता,चैती आ घाटों के गूंज से भक्ति आ भौतिक दूनों रस के संचार लोक में होला। रस…

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गाछि ना बिरिछ आ सुझेला हरियरी

पहिले चलीं जा गाँव घूम आईंजा।खेत – बधार के छोड़ीं महाराज घरे – दुआरे, आरे – पगारे, नदी – नाला के किनारे, मंदिर के अंगनइया, ताल – तलैया – नहर के पीड़ प,सड़कि के दूनों ओरि, कहे के माने जेने नजर दउराईं गाछि – बिरिछ, बाग – बगइचा लउकत रहे गँउवा में, धान- गेहूं- बूंट- खेसारी से भरल हरियर खेतन के त छोडीं। हरियरी के माने ई होला।गाँव से सटलको टोला ना लउकत रहे बगइचन के कारण।गँउवा आजुवो ओहिजे बा बाकिर गाछि – बिरिछ – बगइचा गायब। रसोइयो में साग…

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आपन भाषा, आपन सम्मान

“अरे सुनतानी देर होता, जाइना स्टेशन, ना त गाड़ी आ जाई,” कमला देवी कहली। “काहे हल्ला कइले बारू, जात त बानी, बुझाता की तहार बबुआ घर देखलही नईखन, गाड़ी से उतर जइहन त भूला जइहन,” रामेश्वर जी तंज कसलन। “हम उ सब नइखी जानत, रउआ जाई जल्दी,” खिसिया के कमला देवी कहली। “तहार बबुआ इंजीनियरिंग के पढ़ाई पढ़तारन, पचीस साल के हो गईल बारन अउर तू त ऐतना चिंता करतारू की जेगनी अभी गोदी में बारन,” रामेश्वर जी हंसते हुए कहले। “अरे रउआ का जानेम माई के ममता, अब जाइ…

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