सावन शिव के मास ह।पूरा लोक शिवमय हो जाला सावन में। चहुंओर बोल-बम, हर-हर महादेव के गूंज वातावरण में गूंजत रहेला। प्रकृति पार्थिव शिव पर जलाभिषेक करे खातिर बारिश के रूप में बरिसत रहेला।सावन चढ़ते हवा आपन रूख बदल देला। धूप आपन ताप प्रभाव कम कर देला। वातावरण में धूल उड़ल बंद हो जाला।सूखल जलाशय पनिया – पनिया हो जाला।धरती के पियास बुझा जाला। चहुंओर हरियरी दिखाई पड़े लागला। जंगल मनोहारी हो जाला। मोर नाचे लागेला।मनई के मन ई देख कइसे नियंत्रित रहित।सावन आवते झूम उठेला। कहीं कजरी सुनाला त…
Read MoreTag: कनक किशोर
परिवार के देल पगड़ी: खानदान के इज्जत
बाप – दादा के नांव के आगे सिंह लागल रहे। सिंह के आपन एगो अलगे पहचान होला आपन एरिया में। आगे अउर बनल बाबू कुंवर सिंह नवाज देलन एगो अउर टाइटिल,नाम के आगे चौधरी लगाके काहे कि एक जंगल में दूगो सिंह ना रहे। अउर बनल चौधराहट के जोमे मातल खानदान धन के किनारे करि रईसी आ इज्जत बढ़ावे में लागि गइल।रईसी एह परिवार में ऊ ना रहे जेवन रईस परिवार में रहेला। इज्जत ढोये खातिर रईसी कान्हे ढोआत रहे। जेकर पहचान ओह घरी के बिहार के सतरहो जिला में…
Read Moreजिनिगी के छंद में आनंद भरि आइल रामा,चइत महीनवा
अइसे साल के बारहो महीना के आपन महत्व होला बाकिर साल के अंतिम महीना फागुन आ पहिला महीना चइत के रंग – राग आ महातम अनोखा बा।इहे देखि कहल जाला कि साल में से ई दूगो महीना फागुन आ चइत के निकाल देल जाय त साल में कुछ बचबे ना करी। फागुन आ चइत ना रहित त लोक जीवन में रस रहबे ना करित। फागुन के होली, फगुआ आ चौताल आ चइत के चइता,चैती आ घाटों के गूंज से भक्ति आ भौतिक दूनों रस के संचार लोक में होला। रस…
Read Moreतीन गो कविता
१ कारगर हथियार कोर्ट – कचहरी कानून थाना – पंचायत कर्मकांड के आडम्बर धर्म आजुओ बनल बा आमजन के तबाही के कारगर हथियार सबसे बिगड़ल रूप में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिक तानाशाह के दरवाजे बइठ आपन चमकत रूप निरख रहल बिया कारगर हथियारन के बल बढ़ल आपन सौंदर्य के। २ छलवा विकास जमीनी स्तर पर कम कागज पर चुनावी दंगल में अधिका लउकत बा बाजारवाद, भूमंडलीकरण उदारीकरण के पेट से उपजल विकास के देन ह दलित, स्त्री, आदिवासी आ पर्यावरण समस्या विकास के गोड़ तऽ कुचलल जा रहल बा गरीब, दलित मजदूर,…
Read Moreगाछि ना बिरिछ आ सुझेला हरियरी
पहिले चलीं जा गाँव घूम आईंजा।खेत – बधार के छोड़ीं महाराज घरे – दुआरे, आरे – पगारे, नदी – नाला के किनारे, मंदिर के अंगनइया, ताल – तलैया – नहर के पीड़ प,सड़कि के दूनों ओरि, कहे के माने जेने नजर दउराईं गाछि – बिरिछ, बाग – बगइचा लउकत रहे गँउवा में, धान- गेहूं- बूंट- खेसारी से भरल हरियर खेतन के त छोडीं। हरियरी के माने ई होला।गाँव से सटलको टोला ना लउकत रहे बगइचन के कारण।गँउवा आजुवो ओहिजे बा बाकिर गाछि – बिरिछ – बगइचा गायब। रसोइयो में साग…
Read Moreसामाजिक संबन्धन के सघनता से जनमल साहित्य के सिरिजना करेवाला साधक द्विवेदी जी
लोक संस्कृति किताब में लिखल बात ना होखे, जिनिगी के ऊंच – खाल राह में अविरल बहत रहेला। अपना परिवेश खातिर बोलल – लिखल – दरद के अनुभव कइल लोक के बात कइल ह। सामाजिक संबन्धन के सघनता के गर्भ से लोकवार्ता के जन्म होला जे अपना में घर, परिवार, समाज, गांव, जनपद, राज्य आ देश समेटले रहेला। व्यष्टि के ना समष्टि के बात करेला। भोजपुरिया समाज ‘ मैं ‘ ना जाने।, हम जानेला, लोक जियला, , समष्टि बुझेला। भगवती प्रसाद द्विवेदी लोक…
Read Moreस्मृति में बसल गाँव के कहानी के बहाने लोक-संस्कृति आ जिनिगी के बयान
दो पल अतीत के ( मेरा भी एक गाँव है) हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के हिन्दी में सद्य प्रकाशित पुस्तक जब हाथे आइल त ई जान के खुशी भइल कि एह संस्मरणात्मक कथेतर गद्य के माध्यम से एगो विद्वान भोजपुरिया आ उनुकर गाँव के नजदीक से समझे बूझे के मिली।दू दिन में किताब एक लगातार पढ़ गइला के बाद ई देखे के मिलल कि किताब भले ई हिन्दी में बा बाकिर पन्ना – पन्ना में भोजपुरी के सुगंध बिखरल बा।ई किताब अगर भोजपुरी में रहित त भोजपुरी साहित्य खातिर…
Read Moreसामाजिक आ राजनीतिक विद्रूपता के खिलाफ के स्वर: गोरख के गीत
गोरख यानी गोरख पाण्डेय।हँ, उहे गोरख पाण्डेय जेकर गीत ‘ समाजवाद बबुआ, धीरे – धीरे आई ‘ आ ‘ नक्सलबाड़ी के तुफनवा जमनवा बदली ‘ गाँव के गली से दिल्ली के गलियारा तक अस्सी के दसक में गूंजत रहे। उहे गोरख पाण्डेय के गीतन पर हम इहाँ बात कइल चाहतानी। गोरख पाण्डेय के जीवन काल में उनुकर रचल गीत संग्रह’ भोजपुरी के नौ गीत ‘ प्रकासित भइल रहे।एकरा अलावा जहाँ – तहाँ उहाँ के भोजपुरी रचना छपल रहे। श्री जीतेन्द्र वर्मा ‘ गोरख पाण्डेय के भोजपुरी गीत ‘ नाम से…
Read Moreचन्द्रेश्वर के ‘हमार गाँव’: हमरो गाँव
भोजपुरिया माटी उहो गंगा के किनार के पलल बढ़ल हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चन्द्रेश्वर के भोजपुरी के कथेतर गद्य ‘हमार गाँव’ पढ़ के लागल कि रोजी- रोटी के तलाश में शौक भा मजबूरी में भले गाँव छूट जाला ,देह से भले दूर चल जाला बाकिर मन में गाँव मुए ना,मन से ऊ गाँवे के रहेला। माटी से जुड़ल साहित्यकार चाहे भा ना चाहे ओकर साहित्य गाँव, माटी आ खेत के सौंध महक से सनाईल रहेला। एगो विशेष बात ‘हमार गाँव’ में चन्द्रेश्वर जी खाली गाँव -घर , टोला- परोसा,खेत –…
Read Moreवेलेंटाइन
उठ ना अब ले सुतल बाड़ू। जाड़ा पाला में का तंग कइले बानी ।बेर बिहान होखे ना दीं। सुरसतिया के माई जल्दी उठ आज हमार वेलेंटाइन ना बनबूं। रउवो आपन उमीर ना देखीं ।एह उमर में कबो रेखा तो कबो हेमा मालिनी के शौख जाग जाता।ई वेलेंटाइन कवन भूतनी के नाम ह ? कवनो नया हिरोइन पर नजर पड़ल ह का ?काल सुरसतियो कह तहे कि माई काल एक सौ रूपिया दिहे वेलेंटाइन दिन ह। आज कल के लइकन कहियो माई दिवस, कहियो बाप दिवस मनावते बाड़न सं बाकिर एह…
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