‘धक् से लागल बात बावरी’ भोजपुरी के चर्चित कवि-गीतकार आ ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ मासिक पत्रिका के संपादक जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के कुल जमा पैंसठ गो कविता अवरू गीत के संकलन ह जेकर प्रकाशन सन् २०२२ में सर्व भाषा ट्रस्ट, नयी दिल्ली से भइल रहे । एह संकलन में छंदबद्ध आ मुक्तछंद दूनों के हुनर देखल जा सकेला । एह संकलन के मए कविता आ गीतन से गुजरला प ई महसूसल जा सकेला कि एह सब में गंवई लोक जीवन के गाढ़ आ चटक रंग पसरल बा । कवि के कविता…
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अइसन गारी के गारी जनि जानी के बहाने लोक के बतकही
भोजपुरी भाषा के मधुरता आ मिठास से सभे सुपरिचित बाटे। भोजपुरिया लोक के विशिष्ट पहिचानो बाटे। कहल जाला कि विविधता जहां के पहिचान आ परिभाषा होखे,अइसन लोक के बाति बरबस मन के मोह लेवेले। लोक जवन अपने संगे अपने संस्कृति के संवारत आ संइहारत आगु बढ़ेला। ओकर बढ़न्ति ओकरे जीवंतता के पहिचान होले।ओह पहिचान के जोगावे क श्रमसाध्य काम भोजपुरिया समाज के मेहरारू लोगन के कान्ही दर कान्ही चलत चलल आ रहल बा। अपने सुघरई आ मिठास के जोगवले सनकिरवा लेखा जुगजुगा रहल बा। भोजपुरिया समाज के समुझे आ जाने…
Read Moreसामाजिक संबन्धन के सघनता से जनमल साहित्य के सिरिजना करेवाला साधक द्विवेदी जी
लोक संस्कृति किताब में लिखल बात ना होखे, जिनिगी के ऊंच – खाल राह में अविरल बहत रहेला। अपना परिवेश खातिर बोलल – लिखल – दरद के अनुभव कइल लोक के बात कइल ह। सामाजिक संबन्धन के सघनता के गर्भ से लोकवार्ता के जन्म होला जे अपना में घर, परिवार, समाज, गांव, जनपद, राज्य आ देश समेटले रहेला। व्यष्टि के ना समष्टि के बात करेला। भोजपुरिया समाज ‘ मैं ‘ ना जाने।, हम जानेला, लोक जियला, , समष्टि बुझेला। भगवती प्रसाद द्विवेदी लोक…
Read Moreस्मृति में बसल गाँव के कहानी के बहाने लोक-संस्कृति आ जिनिगी के बयान
दो पल अतीत के ( मेरा भी एक गाँव है) हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के हिन्दी में सद्य प्रकाशित पुस्तक जब हाथे आइल त ई जान के खुशी भइल कि एह संस्मरणात्मक कथेतर गद्य के माध्यम से एगो विद्वान भोजपुरिया आ उनुकर गाँव के नजदीक से समझे बूझे के मिली।दू दिन में किताब एक लगातार पढ़ गइला के बाद ई देखे के मिलल कि किताब भले ई हिन्दी में बा बाकिर पन्ना – पन्ना में भोजपुरी के सुगंध बिखरल बा।ई किताब अगर भोजपुरी में रहित त भोजपुरी साहित्य खातिर…
Read Moreदू बून लोर बा आ हम बानी
‘सजग शब्द के रंग’ हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’ के 94 गो कविता आ गीत-ग़ज़ल के संग्रह हs । एह संग्रह के पढ़त-गावत-गुनगुनावत हमनी के देख सकीला जा कि एकरा में जीवन, समाज, प्रकृति-संस्कृति के विविधवर्णी छवि के उरेहल गइल बा । चेतन जी के कविताई के अगर असली हुनर आ कमाल देखे के होखे तs एह कृति के ज़रूर पढ़े के चाहीं । सांच कहल जाय त ऊ एह कृति में आपन करेज काढ़ि के राखि देले बाड़न । उन्हुकर काव्य साधना आ सिद्धि के सबरंग के एह एगुड़े शाहकार कृति…
Read More‘आपन आरा’ के बहाने एगो खास दौर के शैक्षिक आ साहित्यिक पड़ताल:
घर परिवार से दूर, शहर के जिनगी में अपना के समायोजित करत कुछ बने के जद्दो-जेहाद आ ओह दौर में संपर्क में आइल साहित्यिक बिभूतियन के परिचय का संगे उनुका से ढेर कुछ सीखे-जाने के अरमान मन में जोगवले एगो युवा मन के दस्तावेज़ ह ‘आपन आरा’।’आपन आरा’ में लेखक अपने जीवन के एगो महत्वपूर्ण कालखंड जेवन उ आरा कस्बा में विद्यार्थी जीवन के दौरान गुजरले बा — जुलाई १९७७ से जुलाई १९८७ के दौरान क खट-मीठ अनुभवन के बहुत बिस्तार से उकेरे क परयास कइले बाड़ें। ई समय लेखक…
Read Moreबदल रहल सामाजिक मूल्यन के बीच बेकतीगत महत्वाकांक्षा खातिर संघर्ष के आईना:”जुगेसर”
‘जुगेसर’ जइसन कि उपन्यास के नाम बा,युग+ईश्वर =योगेश्वर के आम बोलचाल में भोजपुरी के सब्द के अर्थ स्पष्ट कर रहल बा यानी युगेश्वर ‘जुगेसर’ के रूप में भोजपुरी में स्वीकृत आ प्रयुक्त सब्द बा। ई कहे में हमरा इचको ना संकोच हो रहल बाटे कि उपन्यासकार श्री हरेंद्र कुमार ‘जुगेसर ‘सब्द के चुनाव कर के कहीं-न-कहीं समाज में आगे चलेवाला जुग प्रवर्तक के रूप में बदल रहल जनजीवन आउर सोच-विचार के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उदाहरण के रूप में धरातल पर ले आ के रखे के अक्षुण्ण प्रयास बा।एह नाम से…
Read Moreएगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’
सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी। जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने…
Read More‘आखर-आखर गीत’ आ भोजपुरिहा तड़का
हमरा संगे रऊओं सब के मन खुश होई कि हमनी सब मिलि-जुलि के भोजपुरी भाषा के कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के कविता संग्रह “आखर-आखर गीत” में डुबकी लगावे वाला बानीजा। साहित्य कवनों भाषा में होखे,ओह में रस होला। रस होई,त तनी-मनी त होई ना,साहित्य के रस के औकात कवनो नदी लेखा होला,आ सांच कहीं त समुन्दर लेखा होला। समुन्दर में डुबकी लगावल सहज होला? ना होला। तबो लोग लागल रहेला आ मोती-मानिक निकालत रहेला। भोजपुरी में लिखला-पढ़ला के लेके खूब चर्चा होत आइल बा। बाकिर लोग तनी दबल-दबल लेखा बतियावेला।…
Read Moreसचहूँ; ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’
संस्मरण हिन्दी साहित्य के एगो अइसन गद्य बिधा ह जवन अपनी स्मृति प आधारित ह। कई बेर ई अत्यंत व्यक्तिगत भी होला आ सामाजिक चाहे राष्ट्र से जुडल भी। बाकिर केतनो व्यक्तिगत संस्मरण होखे, ई गद्य साहित्य के बिधा कहाला। जदि देखल जा त हिन्दी के संस्मरण लेखक लोग के एतना नाँव बा जे लिखल जा त एगो बड़हन सूची तैयार हो जाई। बाकिर भोजपुरी के ई पहिला संस्मरण से हमार भेंट भइल ह ‘भोजपुरी साहित्यांगन’ पर। ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ किताब के ई शीर्षक अपनी ओर आकर्षित करता।…
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