बदल रहल सामाजिक मूल्यन के बीच बेकतीगत महत्वाकांक्षा खातिर संघर्ष के आईना:”जुगेसर”

‘जुगेसर’ जइसन कि उपन्यास के नाम बा,युग+ईश्वर =योगेश्वर के आम बोलचाल में भोजपुरी के सब्द के अर्थ स्पष्ट कर रहल बा यानी युगेश्वर ‘जुगेसर’ के रूप में भोजपुरी में स्वीकृत आ प्रयुक्त सब्द बा। ई कहे में हमरा इचको ना संकोच हो रहल बाटे कि उपन्यासकार श्री हरेंद्र कुमार ‘जुगेसर ‘सब्द के चुनाव कर के कहीं-न-कहीं समाज में आगे चलेवाला जुग प्रवर्तक के रूप में बदल रहल जनजीवन आउर सोच-विचार के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उदाहरण के रूप में धरातल पर ले आ के रखे के अक्षुण्ण प्रयास बा।एह नाम से…

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एगो पौराणिक उपन्यास ‘तारक’

            सद्य प्रकाशित आदरणीय अग्रज ‘मार्कन्डेय शारदेय’ जी के पौराणिक उपन्यास सर्वभाषा प्रकाशन से भोजपुरी साहित्य जगत के सोझा आइल ह। ई कृति शारदेय जी के जीवंत लेखनी से प्रत्याभूत त बड़ले बा, संगही उहाँ के एह कृति के भोजपुरी के पुरोधा पाण्डेय कपिल जी के समर्पित कइले बानी। जब कवनों पौराणिक कथा कहानी के उपन्यास विधा में पिरोवल जाला, त उ सोभाविक विस्तार लेत कबों यथार्थ के धरातल आ कबों काल्पनिक धरातल पर समभाव से आगु बढ़त देखाला। एह घरी के हिन्दू समाज के सभेले कमजोर नस मने ‘अपने…

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‘आखर-आखर गीत’ आ भोजपुरिहा तड़का

हमरा संगे रऊओं सब के मन खुश होई कि हमनी सब मिलि-जुलि के भोजपुरी भाषा के कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के कविता संग्रह “आखर-आखर गीत” में डुबकी लगावे वाला बानीजा। साहित्य कवनों भाषा में होखे,ओह में रस होला। रस होई,त तनी-मनी त होई ना,साहित्य के रस के औकात कवनो नदी लेखा होला,आ सांच कहीं त समुन्दर लेखा होला। समुन्दर में डुबकी लगावल सहज होला? ना होला। तबो लोग लागल रहेला आ मोती-मानिक निकालत रहेला। भोजपुरी में लिखला-पढ़ला के लेके खूब चर्चा होत आइल बा। बाकिर लोग तनी दबल-दबल लेखा बतियावेला।…

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सचहूँ; ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’

संस्मरण हिन्दी साहित्य के एगो अइसन गद्य बिधा ह जवन अपनी स्मृति प आधारित ह। कई बेर ई अत्यंत व्यक्तिगत भी होला आ सामाजिक चाहे राष्ट्र से जुडल भी। बाकिर केतनो व्यक्तिगत संस्मरण होखे, ई गद्य साहित्य के बिधा कहाला। जदि देखल जा त हिन्दी के संस्मरण लेखक लोग के एतना नाँव बा जे लिखल जा त एगो बड़हन सूची तैयार हो जाई। बाकिर भोजपुरी के ई पहिला संस्मरण से हमार भेंट भइल ह ‘भोजपुरी साहित्यांगन’ पर। ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ किताब के ई शीर्षक अपनी ओर आकर्षित करता।…

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फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया के बहाने से :

पछिला कुछ बरिस में भोजपुरी में लेखन फेर से अँगड़ाई ले रहल बा। भोजपुरी में लेखन पहिलहूँ खूब भइल बा। हर विधा में थोर-ढेर किताब लिखाइल बाड़ी सन। चूँकि पठनीयता के अभाव आ कवनो सरकारी सहजोग के बेगर भोजपुरी के किताबन के उपलबद्धता के लेके सभे के सब कुछ पता बा। कारन इहे बा कि भोजपुरी के किताब लेखक लो अपना जेब से कटौती क के करावेला आ अजुवो कमोबेस हालत कवनो ढेर बदलल नइखे। बाकि परेसानी आ विश्वसनीयता के लेके सोचल जाव त अब बहुत कुछ बदल चुकल बा। …

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“बनचरी”: भाव भरल प्रेम कथा के बहाने मानव मूल्य के कृति

आपन भाषा, आपन बोली भोजपुरी के संगे-संगे, अपना माती के सोन्हपने से भरल-पूरल कवि डॉ अशोक द्विवेदी के लेखनी से सिरजित भइल ‘बनचरी’ एगो अइसन कथा विन्यास ह, जवन पढ़निहार के अपना कथारस अउर रंग में सउन के पात्रन के संगे लिया के ठाढ़ क देवेला। एह उपन्यास के लिखनिहार के दीठि एह कृति के नाँवे से बुझाये लागत बा। जवन लेखक के भाषा शिल्प, गियान अउर लेखन के सुघरई से पढ़निहार लोग से सोझे मिलवा रहल बा। लालित्य से भरल सरल भाषा, जगह-जगह उकेरल गइल बिम्ब मन के मोहे…

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गँवई जिनगी का शब्द चित्र – काठ के रिश्ता

जब कवनों उठत अंगुरी के जबाव बनिके किताब सभका सोझा आवेलीं सन,त ओकरा से सहज में नेह-छोह जुड़िये जाला। मन-बेमन से कुछ लोग सोवागत करेला, ढेर लोग ओहसे दूरी बनावे के कोसिसो करत भेंटाला। भोजपुरी भाषा के किताबन के संगे घटे वाली अइसन घटना के सामान्य घटना मानल जाला। अंगुरी उठावे वाला लोग अफनाये लागेलन। उनुकर उठलकी अंगुरिया ढेर-थोर पीसात बुझाये लागेले। भोजपुरी में गद्य लेखकन के कमी त बा बाकि सुखाड़ नइखे। ‘काठ के रिश्ता ‘ के रिस्तन के  अइसने कुछ सवालन के जबाव लेके सोझा आइल बाटे। भोजपुरी…

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लोकजीवन मे रचल-बसल अघोर पंथ के मरम- रमता जोगी

लोकजीवन आउर लोक संस्कृति के कतौ जब बात होखे लागेला, त चाहे-अनचाहे लोककवि लोगन के भुलाइल संभव ना हो पवेला।भोजपुरिया जगत मे अनगिनत लोककवि भइल बाड़ें, जेकर कहल-सुनल गीत-कविता लोककंठ मे रचल-बसल बाटे। पीढ़ी दर पीढ़ी चलल आवत संस्कार गीत एही के उदाहरण बाड़ी सन। भोजपुरिया समाज मे एह घरी लोककवि के बात करल जाव त कुछ नाँव तेजी से सोझा उपरि आवेलन। अइसने एगो नाँव पं. हरिराम द्विवेदी जी के बाटे। आजु के समय के जीयत-जागत, बोलत-बतियावत,सबके दुख से दुखी आउर दोसरा के सुख मे आपन सुख महसूसे वाला…

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सोझ, सपाट आ सरल भाषा के कहानी संग्रह- अकथ प्रेम

अपने माई भाषा भोजपुरी में आजु कहानी के सिरजना करे वाली महिला लेखिका लो अंगुरी पर गिने भर बाड़ी। त अइसना में डॉ रजनी रंजन के बारे में ई  कहल कि उ भोजपुरी साहित्य जगत में पहिचान के मोहताज नइखी, अतिशयोक्ति ना कहाई। डॉ रजनी रंजन भोजपुरी कि साहित्यिक मासिक पत्रिका भोजपुरी साहित्य सरिता के खोज बाड़ी आ उनुका लेखन के बीरवा एही पत्रिका संगही फरत फुलात आगु बढ़ल। एह कहानी संग्रह के सगरी पहिले से लोक में बाड़ी सन, काहें से कि कुल्हि पतरिकन में प्रकाशित हो चुकल बाड़ी…

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सुनीं ना अरज मोरे भइया हो

भोजपुरी कविता प जब बात होई त भोजपुर के भोजपुरी कविता प जरूर बात होई भा होखे के चाहीं। भोजपुर के जमीन भोजपुरी कविता खातिर काफी उपज के जमीन ह। भोजपुर के भोजपुरी कविता के एगो महत्वपूर्ण पक्ष ह ओकर जनधर्मी मिजाज। सत्ता से असहमति आ जन आ जन आंदोलन से सीधा संवाद। रमाकांत द्विवेदी रमता, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी एही जमीन के खास कवि हवें। कृष्ण कुमार निर्मोही के नांव भी एह जमीन से जुड़ल बा। एह बीचे जितेंद्र कुमार के भी कविता सोसल मीडिया प लगातार पढ़े के…

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