सावन मास पावन आ मनभावन

सावन शिव के मास ह।पूरा लोक शिवमय हो जाला सावन में। चहुंओर बोल-बम, हर-हर महादेव के गूंज वातावरण में गूंजत रहेला। प्रकृति पार्थिव शिव पर जलाभिषेक करे खातिर बारिश के रूप में बरिसत रहेला।सावन चढ़ते हवा आपन रूख बदल देला। धूप आपन ताप प्रभाव कम कर देला। वातावरण में धूल उड़ल बंद हो जाला।सूखल जलाशय पनिया – पनिया हो जाला।धरती के पियास बुझा जाला। चहुंओर हरियरी दिखाई पड़े लागला। जंगल मनोहारी हो जाला। मोर नाचे लागेला।मनई के मन ई देख कइसे नियंत्रित रहित।सावन आवते झूम उठेला। कहीं कजरी सुनाला त कहीं श्रम गीत रोपनी गीत सुनाला।सावन मनभावन होला किसान के, प्रेमी युगल के।भावेला रचनाकार के। भावेला भगवान के तब त निफिकिर हो सावन चढ़ते चिरनिंद्रा में चल जालन।बाकिर सबके ना भावे सावन, कुछ लोगिन के डाहेला।तब त विरहिणी सावन के बैरी सावन कह कोसेलीं सं। गरीबों के ना भावे जब पलानी से चूअत पानी राति में एगो कोनो बाकी ना रखे माथ छुपावे खातिर। एहनिये के दुख देखि महेंद्र शास्त्री जी के लिखकला का इयाद पड़ जाला –

दिन रात टिप – टिप चूए पलानी

घर  भर  रोगी  लागल  बा पानी।

अइसना में सावन केहू के कइसे भाई। ओकरो ना भावे जेकर गांव – घर बाढ़ में डूबे के अंदेशा रहेला, दरकत पहाड़ के माथ पर आ बइठे के डर होखेला। दुख – सुख, मिलन – विरह साथे चलेला ई प्रकृति के नियम ह। फेर सावन एकरा से कइसे अलग रहित बाकिर कुल मिलाके सावन मनभावन ह, पावन त हइये ह। जइसे चइत के झकोर केहू ना देल चाहे ओसहीं सावन के फुहार के आनंद केहू ना देल चाहे। सावन के इहे आनंद,कजरी, झूला देख विश्वनाथ प्रसाद ‘ शैदा ‘ जी के कहे के पड़ल ‘ झूला झूलत रहीं बुनिया फुहार में, सावन के बहार में ना…’।

कृषि पोषित संस्कृति ह भोजपुरिया समाज 

भोजपुरिया संस्कृति कृषि पोषित संस्कृति ह। खेत,बधार,बाग, बगइचा, ताल – तलैया, पशुधन के अलग कर देला पर भोजपुरी संस्कृति में कुछ ना बांची। ओसहीं सावन के ना रहला पर खेत,बधार,.. पशुधन कुछ ना बांची। कृषि विधान आ किसान के जान ह सावन।सावन मुरझाइल त कृषि आ किसान मुरझाइल। बरसा ऋतु के शुरुआत सावन में होला। बरसा ऋतु किसान खातिर वरदान ह। किसान के पत्नी पति से कवनो जिद करेले त पति ओकरा के खेतिये के बल पर पूरा करे के बात करेला।” हमके सावन में झुलनी गढ़ा द पिया ना ” के जबाब मिलेला ” धीरज तनी धर ए मोर धनिया अगहन में गढ़ाइब”। अगहन के आस सावन पर टिकल रहेला। महेंद्र शास्त्री जी के एगो कविता में देखीं एह स्थिति के –

खेत कटाता

रास  लागी रहे आस, धोखा दे दिहलस अकास

गाछी पर से गीरल मन, एह साल ना भइल अन

धान नइखे करम कुटाता।

किसान एगो संस्कृति के नांव ह। किसान व्यष्टि के ना समिष्ट के नांव ह। लोक आ देश के प्राण  ह किसान।सावन चहकेला त किसान महकेला। अगहन के आस जागेला, धरती के पियास बुझाला, देश के भाग जागेला।सावन के खेतन में पसरल हरियरी अगहन में बधार के स्वर्णिम बना देला तब जाके किसान के खरिहाने सोना आवेला। किसान खुशहाल त देश खुशहाल,सभकर तरक्की। किसान ‘ हम ‘ पढ़ले बा ‘ मैं ‘ ना, प्रेम पढ़ले बा धृणा ना। भारत किसान के देश ह तब त स्यंदन सुमन के कहनाम बा कि ‘ खतिये में देशवा के जान बा ‘।इहो कहाई त कुछ गलत ना होई कि सावन खेती के मुस्कान ह।खेती – किसानी मुस्काई तबे देश मुसकाई।’ जय जवान जय किसान ‘ के देश के किसान के सावन से अलग ना कइल जा सके। एगो नायिका खातिर सावन लखटकिया होला त किसान खातिर अनमोल।

किसान संस्कृति श्रम के पूजा करे वाला ह।सावन के किसान करम में रोपनी – सोहनी के विशेष महत्व होला। सावन में चहुंओर रोपनी गीत गावत नजर आवेलीं से। रोपनी-सोहनी के गीत खेतिहर मजदूर स्त्रियन के श्रम गीत ह। रोपनी-सोहनी करत घरी ओहनी के सामूहिक रूप में ई गीत  गावेलीं स।एह गीतन में पारिवारिक नोंक-झोंक के बड़ा बढ़िया चित्रण देखे के मिलेला। किसान कवि बलभद्र के एगो कविता में एकर बड़ी बढ़िया रूप मरद मेहरारू के बीच नोंक के रूप में रखल गइल बा। ओह कविता में रामकिसुन आ रामकिसुन ब के रोपत घरी के संवाद आ करनी से बढ़िया परितोख नोंक – झोक के कहाँ भेंटाई? – अँटिया बन्हले बाड़ऽ / कि अपना बहिनिया के जूड़ा- सुनते रामकिसुन के अपना मेहरारू देने घुमाके के छपाक दे बिचड़ा के आँटी फेंक छिटिका उछालल उन्हिन के प्रेम के साथे मजूरन के जिनिगी जिये के आ आपन दुख भुलाये के तरीका बता रहल बा हँसी – मजाक के बहाने।

एह श्रम गीतन में प्रिय से बिछुड़ला के पीड़ा देखल जाए – ‘ननदी झगरवा कइली, पिया परदेश गइले। किया हो रामा, भउजी रोवेली छतिया फाटेला हो राम।’ पर्यावरण संरक्षण,जल संरक्षण के बात एह गीतन में खूब आवेला – कहीं बाबा के बाग लगावे के त कहीं राजा के पोखरा खोनावे के। प्रकाश उदय के एगो प्रेम गीत के बेजोड़ नमूना बा – ‘ आहो आहो, रोपनी के रऊँदल देहिया……’, जेकरा में एगो रोपनी कर थाकल आ पारिवारिक बोझ तले दबल मरद – मेहरारू के एक दूसरा से निहोरा करत प्रेम प्रदर्शित कइल गइल बा।

सावन, झुलुआ आ कजरी 

अइसे त सावन के मनभावन महीना में पूरा भारत देशे धूप, बारिश आ बादल के आंख मिचौली  के बीच हर तरफ बिखरल हरियाली के आनंद लेला बाकिर भोजपुरिया क्षेत्र में एकर एगो अलगे रंग आ रूप दिखाई पड़ेला। कजरी ,श्रम गीत के साथे दूसरो लोकगीतन के गूंज सावन में एगो अलगे मनभावन रूप बनावे में सहायक होला।पूरा महीना एगो त्यौहार के रूप ले लेला। प्रकृति में आ मनई के मन में एगो अलगे उल्लास दिखाई पड़ेला। लइकिन आ नवविवाहिता के पेड़ पर लटकत झूला झुलत कजरी के बोल के साथे आकाश छुए खातिर उंच उड़ान लेत दिखाई पड़ेला।सावन के कजरी आ श्रम गीतन में मिलन आ विरह रस के गीतन के भरमार रहेला। सावन में सुहागिन अपना साजन के साहचर्य चाहेलीं से।  सावन का महीना ओहनी के अपना प्रिय के बिना अच्छा ना लागे, मन कुहकेला, सेज काटे दउरेला तब त मुंह से फुटेला..’’ हमके ना भावे हो सावन बिना सजनवा हो ननदी’’, ‘‘घीरि घीरि आइल बदरिया कारी कारी सखी’’।सावन में कजरी के स्वर लहरी गांव में घुसते कान में आपन मधुर उपस्थिति दर्ज कर देला।इयाद पड़ेला सावन में झींसी शुरू होते केकरो कोठापर,केकरो दलान में, केकरो ओसारा में नारी स्वर में कजरी के मधुर स्वर लहरी गूंज जात रहे। कजरी में वर्णित नारी के प्रेम आ बिरह के गहराई नापे के प्रयास कइल जाला बाकिर ऊ कहाँ संभव हो पावेला।साँच पूछीं त नारी हृदय के रसवंती प्रीत के शाश्वत संवाहिका कजरी ह।छंद आ लय के मिश्रण से सृजित कजरी में बड़ा सम्मोहित करे वाला गेयता रहेला,ऊ जब नारी के कंठ से फुटेला त वातावरण में प्रेममय बिरह उछाल मारे लागेला। झूला गीत, बिरहा,सोहर , ज्यौनार के गीत कजरी के रूप में गावल जाला। कजरी में आज खाली प्रेम आ बिरह नइखे रह गइल,वीर रस, राष्ट्र जागरण के ललकार, जीवन के आंतरिक संघर्ष के कथा, प्राकृतिक वर्णन,बधाई गीत,भजन सब अपना में समाहित कइले बा।सावन आ कजरी के संबंध पर आचार्य हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ जी कहत बानीं कि ‘ जब सावन मक्खन अस चीक्कन,गोर हाथन्ह से इयाद के डाकिया अइसन कजरी के चिट्ठी लेके आवेला आ पतई- पतई के नेह से सहलावे- नहलावे लागेला आ जब फुनुगी – फुनुगी मुसुकाये लागेली सँ तब प्राण के छंद में कजरी उतरि जाले- माटी के सोन्हाई आ लता,बेलि फूलन्ह के गरमाहट लेके। कजरी प्रकृति के हाव हऽ‌’। उहां के एगो कजरी एकर प्रमाण बा।

परे लागल झींसी पचीसी ना भावे सेजरिया के मीत आइल ना।।

उमर उनीसी परल जाले फीसी सेजरिया के मीत आइल ना।

हँसि – हँसि बदरा फुहार गिरावे,

सन्- सन्  पवन  चले  पुलकावे,

भींजल अँखिया जगावे पिरीतिया सेजरिया के मीत आइल ना।।

हरियर  पतिया  सुमन खिले लाख- लाख

घर बिहि चिठिया लिखींले श्रीं ताख- ताख

कँटवा गुलाब के करेजवा के बीन्हें सेजरिया के मीत आइल ना।

आज के  भागदौड़ आ बदलत समय में एकर लोप हो रहल बा बाकिर भोजपुरिया क्षेत्र के गाँवन में आजुवो कुछ हद तक ई परंपरा जिंदा लउकत बा।

जीव के शिव बनावे के पावन मास 

हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन ‘ जी के कहल ह कि ‘ भोजपुरी समाज के आँगन के मन ना जंगल में भटकेला आ ना रेगिस्तान के सपाटा करेला। ओकरा अंदरुनी निसछल भाव के वेग – आवेग आ जिनिगी के हुलास अपना गाँव में, अपना आँगन में व्रतन के गमकउवा तुलसी के विरवा रोपेला’। चतुर्मास के शुरुआत सावन से होला। चतुर्मास में व्रत के क्रम ना टूटे बाकिर सावन आ कार्तिक महीना ओह में आपन विशेष महत्व खाखेला।सावन में धरती के कण – कण शिव मय हो जाला, मनई के मन शिवे जस बउरा जाला। हरेराम त्रिपाठी ‘ चेतन ‘ के अनुसार भोजपुरिया क्षेत्र के भौगोलिक चौहद्दी के चहुंओर शिव किरपा के अंजोर आलोकित होत बा। उत्तर में पशुपतिनाथ, दखिन में गुप्तेश्वरनाथ, पूरब में वैद्यनाथ आ पछिम में विश्वनाथ।एहिजा के लोगिन के बेपरवाही आ आध्यात्मिक ऊर्जा शिवे पूजा में मिलेला आ ज्ञान – पिपासा शिवे सानिध्य में मिटेला। दू चार गो बेल-पत्र आ एक लोटा जल से खुश होखे वाला भगवान दोसर के भेंटाई। कर्मयोगी भोजपुरिया के फुरसत कहाँ बा तप करके इष्ट के मनावे के एही से ऊ जीव के शिव बनावे के डोरी बसहा सवार बउरहे के सौंपि देलस आपन आत्म काल्याण खातिर आ भर पावन मास आपन करम करत जीव के शिव बनावे के जुगाड़ में शिव – शिव करत शिवमय हो जाला।

सावन, कजरी का होला बाबूजी ?

आज के पीढ़ी ई सवाल पूछ रहल बा। काहे ? ई विचारणीय बा। दोषी अकेले ई पीढ़ी नइखे। दोषी हमनी के बानीं जा कि आज के पीढ़ी के आपन संस्कृति से दूर रखनीं जा। आपन संस्कार ना दे पवनीं जा। लोक से दूर होत बानीं जा।ई हाल रही त सावन ना लोप होखी तबो सावन के संस्कृति लोप हो जाई।सावन अनमोल ह। मनमोहक सावन के मोल एह से समझीं कि-

एगो नायिका कह रहल बिया कि –

सावन ना लखटकिया ए सखी, सावन बड़ी अनमोल

हमरा के मंगबू अपना के दिहब, सावन ना सखी देब।

एगो किसान कहत बा कि –

सावन ह अगहन के आस, मन के मिठास

सावन त हवे मधुमास आ सांस के सुहास।

एगो शिव भक्त कहत बा कि –

पावन  मास  सुहावन बड़ी मनभावन हो शिव

जीव के बनाइब शिव,तोहरे शरणिया हो शिव।

देश के संस्कृति में रचल – बसल बा पावन अउर मनभावन सावन आ जिंदा रखे के बा सावन संस्कृति के लोक में हमनी के।

 

  • कनक किशोर

राँची, (झारखंड)

चलभाष – 9102246536

 

Related posts

Leave a Comment