हम ई पहिलहीं स्वीकार कर लेत बानीं कि हमरा कुछ ना बुझाला, एह से हम जवन कहबि ओकर कवनो माने-मतलब मत निकालब स। ई त बस आजु एकदमे कुछ बुझात ना रहुए त कुछ बुझाए खातिर कुछ बूझ कह देत बानीं, बाकिर हमरा निअर आदमी से ई आशा मत करब कि हमरा कबो कुछ बुझाई।
भोजपुरी में(अउरियो जगे कम-बेसी इहे होत होई। ओइसे अउरी जगह वाली बात हम अंदाजने कहलीं हँ, आपन अनुभव कुछ खास नइखे।) एह घरी तीन तरह के रचनाकार पावल जा रहल बाड़े–
- तप्ततन अइँठल:एह कटगरी के रचनाकार जाने के त ढेर कड़ेर जानेलन बाकिर जवन जानेलन ओकरा के अपना रचना में सोगहगे उझील देलन। नूँ पकावेलन, नूँ सिंझावेलन, नूँ पसावेलन। अतना बमपिलाट लिखेलन कि उनकर लिखलका ऊ खुदे ना समुझ पावेलन त दोसर केहू का खाके समुझी? आ… जे नाक मूँद के आ दाँती लगा के एकाध पन्ना समुझत-समुझत समुझियो लिहल त ओकर कपार कम से कम एगारह दिन ले जरूर दुखाई। तारीफ ई कि उनका लिखलका में कवनो तरह के सम्बन्धन के निबाह कबो ना होला– नूँ पूर्वापर के नूँ ऊपर-झापर के। ऊ अपना पाठक लोग के महामूर्ख समुझेलन आ दना-दन जानकारी के घूनल राशन से बनल फुड-वुड से महाभोज के नेवता पहुँचावत नारद अस उचुक-उचुक के पूछत रहेलन, “कहल जाउ, जबर्जस्त बा नूँ? केकरा बेंवत बा अइसन लिखेके? बोन्चना-दरगोन्चना!”
अइसना रचनाकार लोगन के रचनन से चुन के एगो रचना के उदाहरण हम दे रहल बानीं। ई एगो कविता ह जेकर शीर्षक ह ‘एगो बाड़े कनस्तर जी’। एकरा में अनुप्रासन के गम्हिराह छटा देखते बनत बा–
कस्तक मस्त अलस्त हो पस्त
खसस्त बहस्त सदा नर नीरे।
माछ के नाच कराछ तराछ
पपाछ बियाछल काछ तरी रे।
घोंटत घोंट घघोटत घोंट
घोंटावत घोंट घोंटाहुल सी रे।
पावत पेट पटावत खेत
सटावत सेट पिआवत घी रे।।
ई रचनाकार लोग आपन आलोचना इचिको बरदास ना करे। देह से बरियार आ अकिल से घरियार ई लोग खिसिअइला पर लरिकँइयो के सँघतिआई के गोड़े खूँटा ठोके में नोहो भर उजुर ना करे।
- थेथरगाल सइँचल:एह कटगरी के साहित्यकारन के आवक एह घरी तनी कम हो गइल बा, बाकिर कुछ दिन पहिले तक, जवना घरी बरखा तताइ के भुसहुल धइले रही, इहन लोग के दादुर बेबान्ह डाँफत चलत रहे। एह साहित्य सँवारन लोग के चित्रांकन मनोज भावुक के एगो गजल सही-सही करत बिया। गजल के चंद अशआर सोझा बा, रउओ निरेखीं–
ऊनामीआदमिनके साजिशनबदनाम कइलन स
एहीतिकड़मसेसारे खूबनूचर्चामें अइलनस।
केहूपूछल नाओकनी के तएगोकामकइलन स
खुदेसंस्थाबनवलनसआ खुदही मेठ भइलनस।
बेचाराका करs सन, बम में दम त बा ना सिरिजन के
केहूकेखींचके टङरीऊ आपन कद बढ़इलन स।
बनादेलनससचकेझूठऊ अपना थेथरपन से
मगरसचसचरहेलाईनालबरा बूझ पइलन स।
कबोपनरोहसेपूछींजेजमकलपाँक के पिलुआ
दहइलनसननापानीसेत बाँसो से कोंचइलन स।
करींआभारएमुरुखनके, मनसेदींदुआ खूबे
एकनियेकेनूराउरमुफ़्तमें परचारकइलन स।
जोगाड़ूफूलमालामंच बैनरजयहो जय हो से
बिनाकुछकरनीधरनीके फलाने जी कहइलन स।
भलाअसमान परथुकलासे ओकर का होई ‘भावुक’
मगरबकलोल जिनगीभर बसईहेकाम कइलन स।
- ठोकच-ठाकच बइठल:रचनाकारन के ई विशेष प्रजाति ह, जइसे हम। एह कटगरी के लोग साहित्य के हर विधा में हाथ भाँजेला, आम का पाओ झटहो गँवावेला। दोहा लिखेला, बाकिर मात्रा ना जाने। गजल लिखेला, बाकिर बहर ना जाने। कुछुओ लिखेला नवगीते कहेला। कहानी कहनी से आगे ना बढ़े। उपन्यास में ताश के महल खूब उठावेला-गिरावेला लोग। ओइसे त अइसना साहित्यकारन के भाग्य में कवनो पुरस्कार ना होखे तबो कुछ लोग कबो-कबो ढेरे बढ़िया पा लेला। जानते बानीं सभे, दम से ना, पता ना कइसे? अबे एह रहस्य से परदा नइखे उठल। एह लोगन के पिनपिनइला के मारे ठोकच बइठ गइल रहेला तबो आँख गँड़ोरल ना छोड़े। वजन हरमेस साठ के.जी. से कम रहेला।(हमार वजन 59 के. जी. से 300 ग्राम बेसी बा।)
अइसना श्रेणी के साहित्यकारन के प्रतिनिधि का रूप में अबे तुरंते बनावल आपन एगो नवगीत परोसत हम विदा लेत बानीं–
हम रोज रात खानीं
अँचार खानीं
कुछ लोग गूर खाला
बाकिर हम ना खानीं।
ढेर लोग आम के खाला
हम अनार के खानीं
कुछ लोग खइला के बाद पानी पीएला
हम खइला के बाद अँचार खानीं।
- विष्णुदेव तिवारी