सिकुरत सिकुरत बचला मुट्ठी भर
अब ना जगबा, त ओरा जइबा।
पुरबुजन के नाँव हँसा जइबा॥
जे जे कांपत रहल नाँव से
ओहन से अब कांपत हउवा।
बीपत जब सोझा घहराइल
भागत भागत हांफत हउवा॥
कतों बिलइला आ भाग परइला
साँच बाति के कब पतिअइबा॥ अब …
कवन डर पइसल बा भीतरी
जवना से घबराइल हउवा।
लालच के लत लागल तहरा
बेगर बाति क घाहिल हउवा।
जहाँ धरइला आ उहें छंटइला
केकरा सोझा दुखड़ा गइबा॥ अब…
ईरान क, का हाल छिपल बा
अफगानिस्तान पुरा सफाया।
दहाई में से बचल इकाई
तबो नइखे लाज आ हाया।
जात–पाँत के फंसि-फंसि फेरा में
अबहिन केतने बार बँटइबा॥ अब …
बांग्लादेश सोझा ह तहरा
के हौ जात भगावल बहरा ।
पहिचाना इहाँ भेदियन के
जनि खेला बनि उनुका मोहरा।
भरS हुंकार शिवा, पृथ्वी के,
जेपी के कब ले बहकइबा ॥ अब …
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
10/08/2024