कईसन होला गाँव ?

हम त भूलाइये गइनी कईसन होला केहूँ गाँव जब से पसरल शहर में गड्ढा में गईलन सगरे गाँव   न दिखेला पाकुड़ के पेड़ न चबूतरा, न खेत के मेड़ न बाहर लागल ईया के खाट न रौनक बचल मंगलवारी हाट   न अब लईकन के कोई खेल बचपन ले गइल मोबाइल के रेल न गुल्ली, न डंडा, न पिट्ठों, न गोटी गाँव गईलन शहर में खोजत रोटी   कईसे बाची बाग-बगीचा फुलवारी रखे के तनी सलीका हाय-हेलो में मरल त जाला गोड़ लागे के सब तौर-तरीक़ा   कईसे न…

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