मजबूरी

कल्लूआ के उमर जब तीन साल के रहे तबे ओकरा बाबूजी के देहांत हो गईल। कल्लू के पूरा जिम्मेवारी अब ओकरा माई पर आ गईल। ओकर माई मेहनत-मजूरी क के पाले लगली, समय बीते लागल। कल्लूआ के एके गो काम रहे, खाईल-पीअल आ कसरत कईल। वक्त के साथे कल्लू एगो गबरू जवान के रूप में उभरल। अब ऊ इलाका के दबंग साधू के सीधे-सीधे टक्कर देबे लागल, जूर्म के बिरोथ करे लागल। साधू के दसो आदमी पर कल्लूआ अकेले भारी परे । साधू के आपन रूतबा खतम होखे के डर…

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