भउजी देह अंइठली अउरी फागुन आय गइल

फगुआ! आहा! चांद-तारा से सजल बिसुध रात छुई-मुई लेखां सिहरता. सोनहुला भोर मुसुकाता. प्रकृति चिरइन के बोली बोलऽतिया. कोयल कुहुक के विरहिनी के जिया में आग लगावऽतिया. खेत में लदरल जौ-गेहूं के बाल बनिहारिन के गाल चूमऽता. ठूंठो में कली फूटऽता. पेड़ पीयर पतई छोड़ हरियर चोली पहिर लेले बा. आम के मोजर भंवरन के पास बोलावऽता. कटहर टहनी प लटक गइल बा. मन महुआ के पेड़ आ तन पलाश के फूल बन गइल बा. हमरा साथे-साथ भउजी के छोटकी सिस्टर भी बउरा गइल बाड़ी. माधो काका भांग पीके अल्ल-बल्ल…

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