कहानी का सुनायीं

गांव के परिवेश के कहानी का सुनायीं सभे बा मतलबी केकरा के समझायीं घर के पड़ोसिया लगावे दरहीं कूड़ा कहले पे हमके दिखावे लमहर हुरा धमकी त देत बा कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……।   संस्कार घर-घर के स्वाहा भईल जाला ईर्ष्या के आग में सबे जरते देखाला सुनि के अनसुनी करे माने नाहीं बतिया अंखिया में धूल झोके संझिये के रतिया अइसने मतलबियन के कईसे समझायीं गांव के परिवेश के……..।   ऐश आ फिजूल में करेला सभे खरचा मुहवा से कब्भो नाहीं धरम के चरचा मतलब परेला त…

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सुखेला नयनवाँ

कईसे के जिहं माई तोर ई ललनवाँ सूखि जाले धरती सगरौ सुखेला नयनवाँ कईसे के जिहं माई…….। सुबहा के घाम लागे जेठ के दुपहरी कउनो नखतवा देखालै नाहीं बदरी तपते त बीत गईल ई अषाढ़, सवनवाँ कईसे के जिहं माई……..। झुरा अकाल साल सालै परि जाला चईति अगहनी के बीज जरि जाला छोड़ि गाँव चिरई,चुनमुन उड़ि गइलन बनवाँ कईसे के जिहं माई…….। कईसे के होई आगे पूतन के पढ़ाई कईसे करब माई बेटी के  विदाई कईदा तूँ माई मोर पूरा ई सपनवाँ कईसे के जिहं माई……..। बुधिया बीमार बनलि कपरा…

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