आँखिन देखी —

गंवे गंवे भोजपुरी साहित्य के पठनीयता के मिथक टूट रहल बा,अइसन हम ना बजार कहि रहल बा। एकरा पाछे मुख्य कारण उपलब्धता आ विश्वसनीयता के मानल जा सकेला। डिजिटल युग एहमें अहम भूमिका निभा रहल बा। भोजपुरी के पुस्तक पहिलहूँ प्रकाशित होत रहनी स आ अजुवो प्रकाशित हो रहल बानी स। एह दिसाई साहित्यांगन आ सर्वभाषा प्रकाशन एगो मजगूत बड़ेर लेखा सोझा बाड़ें। पुस्तक मेला, जगह-जगह लागे वाला स्टाल भाषा के नेही-छोही लोगन के संगही दोसरो भाषा भासी लोगन के सोझा भोजपुरी के किताबन के उपलब्धता सुगमता से सुलभ करा…

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भोजपुरी साहित्य सरिता के संपादक जे पी द्विवेदी के भोजपुरी पत्रकारिता खातिर सम्मान मिलल।

16 दिसंबर | जमसेदपुर (झारखंड) में चल रहल  अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के 27 वें अधिवेसन में ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’ पत्रिका के संपादन का चलते ‘पाण्डेय नर्वदेशवर सहाय’ सम्मान पत्रिका के संपादक जे पी द्विवेदी के  मिलल।ई सम्मान मंच से भोजपुरी साहित्य सरिता के सहायक संपादक  डॉ रजनी रंजन जी के अभाभोसास के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ ब्रजभूषण मिश्र आ मुख्य अतिथि डॉ सरिता बुद्धू जी प्रदान कइनी। एह सम्मान के मिलला पर भोजपुरी साहित्य सरिता के संपादक जे पी द्विवेदी अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के प्रति आपन आभार…

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सतुआन के नवकी परिभाषा

का जमाना आ गयो भाया, ओह दिनवा जे भोपू पर नरेटी फार-फार के नरियात रहल, आजु काहें घिघ्घी बन्हा गइल बा। दुका-दुका दोहाई दिया रहल बा।समय के चकरी त चलते रहेले आ चलियो रहल बा। ओह चकरी के चकर-चकर में कई लो चौनिहा गइल बाड़ें।काहें भाय, अब का भइल ?अपना पर परल ह, त दरद होता, दोसरा के बेरा मजा आवेला। अब कापी राइट के संस्था के पता बतावे आ पूछे वाला लोग केने कुंडली मार के बइठल बाड़ें ? बिल के बहरा आईं महराज। का भइल,आजु अपना जात-बिरादर के…

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महेंदर मिसिर उपन्यास के बहाने उहाँ के व्यक्तिव पर एगो विमर्श

आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता  –   महेंद्र मिसिर के जनम 16 मार्च 1888, काहीं-मिश्रवालिया, सारण, बिहार  आ उहाँ के निधन 26 अक्टूबर 1946 । उहाँ विद्यालयी शिक्षा ना हासिल होखला का बादो संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, भोजपुरी , बांग्ला,अवधी, आ ब्रजभाषा के विशद गियान रहे। चबात रहीं।  महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली।  त कादों एही का चलते  गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर।  महेंदर मिसिर के एकलौता बेटा…

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भोजपुरी साहित्य में प्रेम अउर सद्भावना

लोक में रचल-बसल भोजपुरी भाषा आ ओह भोजपुरी भाषा के मधुरता आ मिठास, अपना जड़ से मजबूती से जुड़ल समाज आ ओह समाज में पसरल रीति-नीति के आपन अलग विशेषता बाटे। अपने एही विशेषता के संगे अलग- अलग सोपान गढ़त, ओके सजावत-सँवारत, ओकरे भीतरि के सुगंध के  अलग-अलग तरीका से अलग-अलग जगह बिखेरत भोजपुरी भाषा सदियन से गतिशील रहल बा आ अजुवो ले बा। अपना रसता में आवे वाला कवनो झंझावत से उपरियात, समय के मार के किनारे लगावत अपने भीतरि के ऊष्मा जस के तस अपने में समुआ के…

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आपन बात

साहित्य अपना में समाज का संगे सभे के हित समाहित राखेला आ हरमेसा बढ़न्ति का ओर गति बनवले राखे के उपक्रम विद्वान साहित्यकार लोग करत रहेलें। अइसने कुछ साहित्य जगत के मान्यतो ह। बाकि हर बेर ई सही ना होखे। कई बेर एकरा से उलट होत लउकेला। जान-बूझ के भा इरखा बस कवनो नीमन चीजु के अनदेखी कइल, उहो अइसन लोगन द्वारा जेकरा के हद तक मानक मानल जात होखे, ढेर बाउर लागेला। अइसन भइलका मन के गहिराह टीस दे जाला। कई बेर उ टीस मन के उचाट क देवेले।…

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सम्पादन टीम

संरक्षक रामप्रकाश मिश्रा, अकोला उपाध्यक्ष महाराष्ट्र प्रदेश, भाजपा (उत्तर भारतीय मोर्चा) अशोक श्रीवास्तव (गाजियाबाद) अनामिका वर्मा (भोपाल) प्रकाशक आ सम्पादक जे. पी. द्विवेदी (गाजियाबाद) कार्यकारी सम्पादक डाॅ. सुमन सिंह (वाराणसी) साहित्य सम्पादक केशव मोहन पाण्डेय (दिल्ली) सहायक सम्पादक डाॅ. ऋचा सिंह (वाराणसी), सुनील सिन्हा (गाजियाबाद), डाॅ. रजनी रंजन (झारखंड) सरोज त्यागी (गाजियाबाद) सलाहकार सम्पादक मोहन द्विवेदी (गाजियाबाद), कुलदीप श्रीवास्तव (मुंबई) तकनीकी – एडिटिंग – कम्पोजिंग सोनू प्रजापति (गाजियाबाद) छाया चित्र सहयोग आशीष पी मिश्रा (मुंबई) प्रकाशन: सर्व भाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली

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साहित्यकार के माने-मतलब

साहित्य एगो अइसन शब्द ह जवना के लिखित आ मौखिक रूप में बोले जाये वाली बतियन के देस आ समाज के हित खाति उपयोग कइल जाला। ई  कल्पना आ सोच-विचार के रचनात्मक भाव-भूमि देवेला। साहित्य सिरजे वाले लोगन के साहित्यकार कहल जाला आ समाज आ देस अइसन लोगन के बड़ सम्मान के दीठि से देखबो करेला। समय के संगे एहु में झोल-झाल लउके लागल बा। बाकि एह घरी कुछ साहित्यकार लो एगो फैसन के गिरफ्त में अझुरा गइल बाड़न। एह फैसन के असर साहित्यिक क्षेत्र में ढेर गहिराह बले भइल…

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