कजरी

असों बरखा ना भईल बरसात में , दिन चाहे रात में ना ।। बितल सूखले आषाढ़, घाम होखता प्रगाढ़ अगिया लागि गइल बा कूल्हिए जजात में दिन चाहे रात में ना।। बरिसल तनिको नाहीं अदरा , भींजल एको दिन ना चदरा जिनिगी आके फँसल बिया झंझावात में … दिन चाहे रात में ना ।। बिया धान कऽ सुखाइल , खेत इचिको ना रोपाइल सभे रहऽता किसानन संगे घात में.. ।। सुखले बीतत बाटे सावन , लागत बाटे भकसावन पनिया फेर दिहलस कूल्हि जज़्बात में …. जिनिगी कइसे अब ढोआई ,…

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