देयाद

अलगाउज आँगना व्यथा औरी , मुंसुकी छाँटि व्यंग भर दौरी । मुँह बिजकल नियत बा खराब , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । देयाद देयादी जरी भईल भौंरी , हर बात में हरदम जोरा-जोरी । दाजाहिसी देखजरूआ भईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । ठेन बेसहेलन धूरी जेवर बरी , रेर हरदिन करे ढेरी बलजोरी । भोज- भवदी सभ छुट गईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । चाल-ढाल बात -बतकही गैरी , बुझल धधकावेले खोरी-खोरी । अपनउज भाईचारा सभ गईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । उमेश…

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धन पसु

बहेंंगवा-लफंदर बन घूमत रहन , ई त आहे प ढेला ढोवत रहन , अब त दिन – दूना रात – चौगना , बबुआ बड़हन नेता बनी बढ़न । पीठे पोछ फेंकी पिलकईलन , सभकर सलाह चुतरे दबईलन , सुमति टेरि कुमति के दाता भई , आग-पाछ विचारवा भुलईलन । नेत-धरम पीठिअउरा कईलन , सभके पछाड़ अगउरा भईलन , सभके एके लऊरी हंकलन , बनलो काम सभ बउरा कईलन । गोल बनाई गोलदार बनलन , सभके लूटि चौकीदार बनलन , सभकर त धन बाईसे पसेरी , कुबेर बन अवकातो थहलन। टटका…

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फागुन में नाचल

हंसि हंसि क बहार उतान भईल, अगराई के फाग जब फागुन में नाचल ।   फगुआ के जब आगुआन भईल, अबीर-गुलाल आपना सुघर भाग पे नाचल।   बबुआ-बुचिया के जब रंग रंगीन भईल , फिचकारी के संग उछल- कुद के नाचल ।   बुढा-जवान के भेद सभ भुल गईल , फागुन फगुआ के जब मधुर तान पर नाचल।   आपन-आन के सब ध्यान गईल , जब बैर तेज के सब केहु गले मीली नाचल।                उमेश कुमार राय ग्रा0+पो0- जमुआँव , जिला- भोजपुर (बिहार )

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भोजपुरी त पहेली बा

साँचो  में  रउआ सुन के भक फाट जाई। भोजपुरी एगो पहेली बन गइल बा ।नइहरे में बेआबरू भइल बेटी जइसन हाल एह घरी भोजपुरी साहित्य आ साहित्यकार लोगन के बा ।साहित्यकार कइगो मोटकी-मोटकी किताबन में माथा खापावेलन आ रात-दिन एक करके कलम-कागज के साथ मगजमारी (माथापची )करेलन तब जाके एगो रचना तइयार होला ।रचना एकजुट करेलन आ माल-पताई के जोगाड़ करके  भोजपुरी साहित्य  बनावेलन। ई भोजपुरी साहित्य के परेमवे नु बा । बाकी हद त तब होला कि सउसे छपल साहित्य भेट दे के सधावे के परेला। सउसे मेहनत फोकटे…

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