दू गो लघुकथा

१.बेटी के बियाह बेटी के बियाह खातिर चिन्तित महतारी अपना पतिदेव से कहली- एजी! रउरा बेटी के बियाह के कवनो चिन्ता बा की ना ? बेटी पढ़ि -लिख के पांच बरीस से नोकरीयो करऽ तिया, पैंतीस बरीस के उमीरो हो गईल। समय से शादी-बियाह कईल हमनीं के जिम्मेवारी बा बाकिर रउरा त कवनो फिकीरे नईखे। मेहरारू के बात सुनि के पतिदेव जी कहनीं- बेवकुफी मत करऽ। बबुआ इंजिनियरी पढऽ ता, दूसरा साल ह। अबहीं बियाह के बात टारऽ, काहां से आई हर महीना पच्चीस हजार रुपीया आ हमनीयों के आपन…

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शराबबंदी

प्रदेश में शराबबंदी बा, शराब खरीदल-बेचल आ पियल प्रतिबंधित बा। बाकिर, एहि बंदी के आड़ में नया रोजगार खूब फरत-फुलात बा। पड़ोसी प्रदेश से शराब के तस्करी शबाब पर बा, पूरा के पूरा एगो रैकेट लागल बा। काल्ह फजीरहीं एगो शराब से भरल ट्रक सीमावर्ती थाना में जब्त भईल रहे, दिनभर खूब गहमागहमी रहे। आज थानेदार के हवाले से अखबार में खबर छपल कि एक हजार शराब के बोतल बरामद भईल बा। अब चर्चा ईहो बा कि पड़ोसी प्रदेश के सीमावर्ती जिला में शराब व्यवसायी के सदमा लाग गईल बा,…

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सपना रोज सजाई ले

भौतिकता में डूबल असलियत से उबल आधुनिकता में अझुराई ले आ अपना के खूब भरमाई ले सपना रोज सजाई ले। ज्ञानविहीन दिशाविहीन दुबिधा में अपने के समझ ना पाई ले सपना रोज सजाई ले। कामकाज भले ना होखे आमद-खर्च नफा-नुकसान अंगुरी पर निपटाई ले सपना रोज सजाई ले। लमहर-लमहर जम्हाई लेके विकास-ह्रास के खाका रोज बनाईले आ मेटाई ले सपना रोज सजाई ले। दुनिया के चकाचौंध में डूबी ले उतराई ले आ अपने से बतीआई ले सपना रोज सजाई ले। कबो छा जाई ले आकाशे में राकेश बन कबो जमीने…

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