गाँव-गिरांव के मड़ई से आध्यात्म के शिखर का अनूठा कवि- अनिरुद्ध

पुरूबी बेयार से रसगर भइल गँवई सुघरई के सँवारत, ओकरे छटा के उज्जर अंजोरिया में छींटत-बिदहत कविवर अनिरुद्ध के गीत आ कवितई अपना तेज धार में सभे पाठक आ श्रोता लोगन के बहा ले जाये के कूबत राखेले। अनिरुद्ध जी के गीत आ कवितई अपना स्पर्श मात्र से पथरो पर दूब उगावे लागेले। फेर कतनों नीरस मनई काहें ना होखों, ओकरा के सरस होखे में देर ना लागे।जवने घरी भोजपुरी गीत भा कविता मंच पर ले जाइल, उपहास करावत रहे, ओही घरी अनिरुद्ध जी अपने गीतन से हिन्दी काव्य मंचन…

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पंछी उड़त गगन छिछिआए

पंछी उड़त गगन छिछिआये।   अइसन उठल बवण्डर-अंधर जाना कहाँ,कहाँ चलि जाय। पंछी उड़त गगन छिछिआये॥   तनिक हवा के दया न आइल टूट-टूट खोंता उधिआइल टूटल डाढ़ बसेरा उजड़ल ना निशान कुछ जगह चिन्हाए पंछी उड़त गगन छिछिआये॥   नीड़ गिरल कुछ नदी नीर में ताल-तलइया नहर-झील में भुंइ भूखे कुछ मरे डूब जल पर बिनु बचवन उड़ ना पाये। पंछी उड़त गगन छिछिआये॥   छींटल दाना जाल बिछल बा का उतरे चिड़िमार छिपल बा बिमल सोत लउके ना कतहूँ का पंछी ऊ प्यास मिटाये। पंछी उड़त गगन छिछिआये॥…

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