धरती अकास सब जरे लगल शोला बरसावल बन्द करऽ रोकऽ बिनास कऽ महायुद्ध अब आगि लगावल बन्द करऽ। अंखियन से लोहू टपक रहल बिलखे मानवता जार-जार हरियर फुलवारी दहक रहल धधकत बा मौसम खुशगवार अबहूं से आल्हर तितलिन कऽ तूं पांख जरावल बन्द करऽ । बनला में जेके बरिस लगल हो गइल निमिष में राख-राख भटकेलन बेबस बदहवास बेघर हो-होके लाख-लाख अबहीं कुछ जिनगी बांचल बा तूं जहर बुझावल बन्द करऽ। निकली न युद्ध से शांति पाठ ना हल होई कवनो सवाल धरती परती अस हो जाई भटकी ज़िनगी…
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