जब कवनो लेखक अपना निजी अनुभव के ईयाद क के कवनो मनई, घटना, वस्तु चाहें क्रियाकलाप के बहाने लिखेला त उ सब पाठक के मन से जुड़ जाला। पाठक अपना देखल-सुनल-भोगल समय-काल में ओह चीजन के, बातन के, जोहे-बीने लागेला। संस्मरण एगो अइसनके विधा ह, जवना के पढ़ के पाठक लेखक के लेखनी से एकात्म हो के जुड़ जाला। उत्पत्ति के आधार पर देखल जाव त संस्मरण शब्द ‘स्मृ’ धातु में सम् उपसर्ग आ ल्युट् प्रत्यय के मिलला से बनल बा। एह तरे से एकर शाब्दिक अर्थ सम्यक् स्मरण होला।…
Read MoreTag: केशव मोहन पाण्डेय
वसंत अइले नियरा
हरसेला हहरत हियरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। मन में मदन, तन ले ला अंगड़ाई, अलसी के फूल देख आलस पराई, पीपर-पात लागल तेज सरसे, अमवा मोजरीया से मकरंद बरसे, पिहू-पिहू गावेला पपीहरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। मटरा के छिमिया के बढ़ल रखवारी, गेहूँआ के पाँव भइल बलीया से भारी, नखरा नजर आवे नजरी के कोर में, मन करे हमहूँ बन्हाई प्रेम-डोर में, जोहेला जोगिनीया जियरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। पिया से पिरितिया के रीतिया निभाएब, कवनो बिपत आयी तबो मुस्कुराएब, पोरे-पोर रंग लेब नेहिया के रंग में,…
Read Moreऑक्सीजन से भरपूर ‘पीपर के पतई’
कहल जाला कि प्रकृति सबके कुछ-ना-कुछ गुण देले आ जब ऊहे गुण धरम बन जाला त लोग खातिर आदर्श गढ़े लागेला। बात साहित्य के कइल जाव त ई धरम के बात अउरी साफ हो जाला। ‘स्वांतः सुखाय’ के अंतर में जबले साहित्यकार के साहित्य में लोक-कल्याण के भाव ना भरल रही, तबले ऊ साहित्य खाली कागज के गँठरी होला। बात ई बा कि अबहीने भोजपुरी कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के पहिलकी कविता के किताब ‘पीपर के पतई’ आइल ह। ई किताब कवि के पहिलकी प्रकाशित कृति बा बाकिर ऊहाँ…
Read Moreएगो त्रिवेणी ईहवों बा
मन में घुमे के उछाह, सुन्दरता के आकर्षण आ दू देशन के राजनैतिक सीमा के बतरस के त्रिवेणी में बहत ही हम त्रिवेणी जात रहनी। हमनी के छह संघतिया रहनी जा आ एगो जीप के ड्राईवर। हमरा के छोड़ के सभे एह प्रान्त से परिचित रहे। हमरा बेचैनी के एगो इहो कारन रहे की आजू ले हम त्रिवेणी स्थान के नाम इलाहबाद के संगम खातिर सुनले रहनी। ई त्रिवेणी कवन ह? उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर जिला मुख्यालय से लगभग नब्बे किलोमीटर उत्तर-पछिम के कोन में बा ई त्रिवेणी। पाहिले त गंडक…
Read Moreमांगलिक गीतन में प्रकृति-वर्णन
लोक-जीवन में आदमी के सगरो क्रिया-कलाप धार्मिकता से जुड़ल मिलेला। आदमी एह के कारन कुछू बुझेऽ। चाहे अपना पुरखा-पुरनिया के अशिक्षा आ चाहे आदमी के साथे प्रकृति के चमत्कारपूर्ण व्यवहार। भारतीय दर्शन के मानल जाव तऽ आदमी के जीवन में सोलह संस्कारन के बादो अनगिनत व्रत-त्योहार रोजो मनावल जाला। लोक-जीवन के ईऽ सगरो अनुष्ठान, संस्कार, व्रत, पूजा-पाठ, मंगल कामना से प्रेरित होला। ई सगरो मांगलिक काज अपना चुम्बकीय आकर्षण से नीरसो मन के अपना ओर खींच लेला। एह अवसर पर औरत लोग अपना कोकिल सुर-लहरी से अंतर मन के उछाह…
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