गजल

जलल बा  हिया  में  अगन  धीरे धीरे मिलल जब  नयन से नयन  धीरे धीरे   जुड़ल  प्रीत  के  डोर जबसे  ह उनसे सजावे  लगल  मन  सपन  धीरे  धीरे   नशा प्रीत के  लग गइल बाटे अइसन रहत मन  ह  खुद  में  मगन धीरे धीरे   बहक जाला तन मन न धीरज धराला बुलावेलु   चुपके   सजन   धीरे   धीरे   अधर पे पड़ल जब  अधर बाटे तहरा बढ़ल तब  बदन  के  तपन  धीरे  धीरे   घटा बन के जिनगी पे अइसन बरसलू खिलल दिल के सउँसे  चमन धीरे धीरे   ग़ज़ल ‘राज‘…

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