गजल

अपन लड़की सयान हो गइल , रात जागल बिहान हो गइल  ।   आज माई बेमार का भइल , सून घर कऽ दलान हो गइल ।   हमरे सीना  में लागल दरद, छुटकी लड़की हरान हो गइल ।   भाई -भाई में नाहीं पटल आध-आधा चुहान हो गइल ।   जब सहारा न कोई रहल, तब बुढा़ई जवान हो गइल ।   कान बेटा कऽ भरलस बहू , कुल कमाई जियान हो गइल ।   अपने चीनी कऽ सून के बखान गुड़ के छाती उतान हो गइल ।    …

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करियवा कोट

कचहरी में वोकील मिलेलन टरेन में टी टी चलेलन बरहों महीना कोट काहें पहिरेलन ? अगर नइखी जानत राज त जान जाईं आज। कोट पहिरला से खलित्तन के संख्या हो जाले जियादा राउर सुरक्षा अउर संरक्षा के पक्का वादा। जे केहु थाकल-हारल, मजबूरी के मारल धाकड़ भा बेचारा इनका भीरी आ जाला मुँह मांगल रकम थमा जाला समन्दर लेखा करियवा कोट में सभे कुछ … समा जाला।     मूल रचना- काली कोट मूल रचनाकार- मोहन द्विवेदी भोजपुरी भावानुवाद- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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