अबाटी बंटी

बंटी … ना ना अबाटी बंटी ओह मोहल्ला में अइला के मात्र साते आठ दिन बाद बंटी अपना करतूत से ऐही नांवें जानें जाये लगलन। केहू के जगला के सीसा चेका बीग के फोर देस, त केहू के दुआर पर पानी से भरल बल्टी में माटी घोर देस, इ आएदिन के बंटी के काम रहे। केहू पकड़ के मारे चलें त ओकरा मुंह पर खंखार बीग के भाग चलस । बंटी के माई ओरहन सुनत-सुनत हरान भ गइल रहली। एक दिन आफिस जाये से पहिलही अपना साइकिल के दुरदसा देख…

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बड़हन बानर हिरोइनची

ओह घरी पश्चिमी बिहार में हिरोइनचिअन के आंतक बहुत बेसी हो गइल रहुए, जदि भुला के बल्टी, तसला, रसरी, कुरसी, टेबुल भा सइकिल घर के बहरी भा बिना ओहारे अंगना में छूट जाए त दस पनरह रोपया खातिर मारल मारल फीरत हिरोइनचिअन के लाटरी लगले जइसन खुशी मिलत रहे। कसहूं चोरा के बेच खोच के दस पनरह रोपया में हीरोइन पी के रात भर टुन्न रह$सन।   एगो साहूकार आ बाबाजी पड़ोस में रहत रहुअन जा ,साहूकार के पांच गो छौड़ी आ बाबा जी के दू गौ छौड़ा रहे। साहूकार…

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बड़ा बेआबरू भइनी ऐ गोरिया तोहरे खातिर

छठ के चार दिन पहिले इंदरासना के विदा करा के उनकरा भैया ले अइले, मय लइकिन के हुजूम रामचनर काका के घर में भीड़वाड़ कइ देली सन, केहू उनकर हाल पूछत बा, केहू मीठा पानी ले आवता त छोटकी भउजी परात में पानी भर के उनकर गोड़ धोवे लगली त केहू ससुरा से आइल  छोरा छापी, खुरमी लड्डू टिकरी  रामचरन काकी से पूछ पूछ के जगहा प  सरिहावे लागल। अजब रिवाज होला गांव गिरान के , कवनो भेद ना कि के केकरा घरे कब जाइ कब ना जाइ कवनो टाइम…

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