भोर हो गइल

खोल द दुआर, भोर हो गइल। किरिन उतर आइल, आ खिड़की के फाँक से धीरे से झाँक गइल, जइसे कुछ आँक गइल, भीतर से बन्द बा केंवाड़ी त बाहर के साँकल के पुरवाई झुन से बजा गइल, आँगन के हरसिंगार, दुउरा के महुआ जस, चू-चू के माटी पर अलपना सजा गइल, ललमुनियाँ चहक उठल, बंसी के तान थोर हो गइल।। रोज के उठवना जस, ऊठ, अब जाग त किरिन-किरिन जूड़ा में खोंस ल, झुनुक-झुनुक साँकल से पुरवाई बोलल जे, पायल में पोसल ; अँचरा से महुआ के गंध झरल हरसिंगार गंध…

Read More

भोर हो गइल

खोल द दुआर, भोर हो गइल। किरिन उतर आइल, आ खिड़की के फाँक से धीरे से झाँक गइल, जइसे कुछ आँक गइल, भीतर से बन्द बा केंवाड़ी त बाहर के साँकल के पुरवाई झुन से बजा गइल, आँगन के हरसिंगार, दुउरा के महुआ जस, चू-चू के माटी पर अलपना सजा गइल, ललमुनियाँ चहक उठल, बंसी के तान थोर हो गइल।। रोज के उठवना जस, ऊठ, अब जाग त किरिन-किरिन जूड़ा में खोंस ल, झुनुक-झुनुक साँकल से पुरवाई बोलल जे, पायल में पोस ल ; अँचरा से महुआ के गंध झरल हरसिंगार…

Read More