हमहूं आजु दरिद्दर खेदब

हमहूँ आजु दलिद्दर खेदब, घुमि घुमि सूप बजाइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। सूप बजावत पुरखा लोगवा, बदहाली में मरि गइलैं, घुसुरल जवन दरिद्दर बइठल, हमरे माथे थरि गइलैं, पकरि के टेटा ओहि कुकुरे कै, गड़ही ले दउराइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। जेकर नाँव अकाशे दउरे, केतना सूप बजउले होई, कउने जोजन से ऊ अपने, भगिया के चमकउले होई, भगै दरिद्दर हमरे घर से , जुगुती उहै लगाइब हो।, कहियै कै सोवलि किस्मत बा, ओके आजु जगाइब हो।। लालबहादुर…

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