राजनीति बिख बोली

एकहुँ अवसर छोड़त नइखे कँउचावे के , बोल रहल बा बोली ; राजनीति बिख घोली । जइसे खेल भइल लइकन के , काट रहल बा चिउँटी । पुलु – लुलु अँउठा देखलावे अउरी झोंटा-झोंटी । जब – जब आपन मुँहवा खोली टुभुकत बोल कुबोली । राजनीति बिख घोली ।। पाथर जोड़ी बनल महल में रहत भइल जे पाथर । सत्ता सुख पावे भर नाता मन में बाटे ऑतर । जनता के खाली बा झोली , भरलस आपन खोली । राजनीति बिख घोली ।। खोट समाइल बा नीयत में समय आज…

Read More