कुँवर सिंह के आखिरी रात

26 अप्रैल 1858 के रात कुँवर सिंह के आखिरी रात रहे. तीन दिन पहिले 23 अप्रैल के 80 बरिस के एह घायल शेर के कटल हाथ पर कपड़ा बन्हाइल, ओकरा ऊपर से चमड़ा के पट्टा से ढ़ाल के बान्हल गइल, तिलक लगावल गइल. फेर त ई राजपूती तलवार अंगरेजन के गाजर-मूली के तरह काटल शुरू कइलस.  ली ग्राण्ड के जान गइल आ बाकी बाँचल अंग्रेज सैनिक जान बचा के भगलन सन. जगदीशपुर आजाद हो गइल. यूनियन जैक के झंडा उतार के परमार वंश के भगवा पताका लहरावल गइल. लोग खुशी के मारे पागल रहे आ कुँवर सिंह भी. 23 तारीख के कुँवर बाबू के सबसे छोट भाई आ युद्ध में उनके सबसे मजबूत हाथ बनके तैनात रहल अमर सिंह के जगदीशपुर के जमींदारी सौंप दीहल गइल. अमर के बेटा रिपुभंजन के उत्तराधिकारी बनावल गइल. सभा समाप्त भइल. बाबू कुँवर सिंह महल के भीतरी गइलें त उनका कटल हाथ में होत असह्य दर्द के ध्यान आइल. अचानक उ लड़खड़इलें, भाई आ भतीजा उनके सम्हारल लोग आ ले जा के उनका बिछौना पर सुता दिहल लोग.

विजय दिवस से मृत्य दिवस के बीच एक-एक पल उ जिंदगी खातिर मौत से लड़त रहलें. जिनगी के बीतल पन्ना सिनेमा के रील के तरह पलटत रहलें. जब इंसान अपना जिनगी के सफर के अंतिम पड़ाव पर रहेला त ओकरा आपन हीत-मीत, मोखालिफ़, जानकार सभे इयाद आवेला. उनका आँखिन का सोझा उनकर बाबूजी साहबजादा सिंह, माई पंचरत्ना, पत्नी देवमूंगा, भाई अमर सिंह, साथी हरीकिशन सिंह, बंसुरिया बाबा, अंग्रेज अफसर विलियम टेलर, विन्सेंट आयर, डगलस आ ना जाने केतना लोग के तस्वीर नाचत रहे. ओही में सबसे तेजी से नाचत रहली धर्मन बाई.

त ई धर्मन बाई के रहली आ कुँवर सिंह से इनकर का नाता रहे? धर्मन बाई आरा शहर के एगो नर्तकी रहली; बहादुर स्त्री, अप्सरा लेखां सुंदर, मध जइसन गला वाली, नृत्य अउरी गीत गवनई में मँझल, वीरांगना आ कीचड़ के बीच रहे वाली कमल. बहुत लोग कहेला कि उ त नाचे वाली रहली बाकिर उ लोग ई ना जानेला कि उ माटी के रक्षा खातिर कुँवर सिंह के स्वतंत्रता अभियान में शामिल हो गइली आ अपना शरीर पर गोली, तलवार, भाला के घाव लेहली बाकिर पीछे ना हटली. धर्मन बाई अपना बहिन करमन के साथे रहत रहली आ नाच गाना उनकर पेशा रहे. उनके प्रसिद्धि पूरा शाहाबाद क्षेत्र में फइलल रहे.

उनके कुँवर सिंह से मुलाकात तब भइल जब एगो उत्सव में उ अपना बहिन के साथे प्रस्तुति देबे आइल रहली. उनके सुरीला कंठ से मार्मिक गीत अउरी भाव भरल नृत्य देखके बाबू साहेब काफी प्रभावित भइलें. बाबू साहब एगो कुशल शासक त रहबे कइलें, साथे गीत-संगीत के पारखी रहलें. कुँवर बाबू खुद गावे-बजावे में निपुण रहलें आ साल भर में फगुआ, चइता जइसन कवनो आयोजन ना छोड़ें जहां गीत-संगीत के उपासना होत होखे. उहाँ के नजर में हर एक कलाकार महादेव के रूप नटराज के उपासक रहे. एही से ओह कलाकार के कला के सराहना ईश्वर के उपासना से कम ना रहे. कुँवर बाबू धर्मन के एह प्रस्तुति खातिर खूबे बड़ाई कइलें. धर्मन कुँवर बाबू के बारे में सुनले रहली. आज उनका बात-विचार से बहुते प्रभावित भइली. इ दुनू जाना के पहिला मुलाकात रहे.

एक बार धर्मन आ करमन जंगल में घूमे गइल रहे लोग. उहवें एगो अंग्रेज दुनू बहिन से छेड़खानी करे के कोशिश कइलस. भाग्य से ओही जंगल में कुँवर सिंह अपना दल बल के साथे शिकार खेले गइल रहलें. उ समय पर आके दुनू बहिन के सम्मान आ प्राणरक्षा कइलें जवन धर्मन के मन में कुँवर सिंह के बहादुरी के प्रति अनुराग जगा देहलस. एकरा बाद कुँवर सिंह से उनके एक दू मौका पर अउरी भेंट भइल. धर्मन के नृत्य देखे कई गो अंग्रेज अफसर आवsसन आ उनका सामने मदिरा के नशा में बहुत कुछ अइसन बक द सन जवना गुप्त जानकारी होखे. धर्मन एगो सहृदय देशभक्त नारी रहली. उनका अंदर भी भारतीय लोग पर हो रहल अंग्रेजन के अत्याचार खातिर खीस रहे. जब उ कुँवर सिंह से मिलली त एह आक्रोश के आग के हवा मिलल. धर्मन कुँवर के अंग्रेजन के अत्याचार आ ओकनी के प्रपंच के जानकारी देबे लगली. कुँवर सिंह शुरुए से बागी रहलें, आ अपना सीना में कंपनी सरकार खातिर गुस्सा दबवले रहलें. उ धर्मन के एह राष्ट्रभक्ति से बड़ा खुश भइलें.

ओह समय कुँवर क्रांतिकारी नेता आ  जमींदारन के संपर्क में रहलें. सभे कंपनी सरकार के खदेड़े खातिर गोलबंदी करत रहे, योजना बनावत रहे, संसाधन जुटावत रहे. धर्मन धीरे-धीरे कुँवर के नजदीक होत गइली. कुँवर के आपन पारिवारिक जीवन बहुत उथल-पुथल अउरी नकारात्मकता से भरल रहे. कुँवर अक्सरहाँ एकांत में समय बितावे जितौरा जंगल के अपना शिकारगाह में आ जास. धर्मन सहृदय त रहबे कइली, जीवन दर्शन के बड़ा समझ रहे उनका. उहो अक्सरहा जितौरा चलि आवस. कुँवर बाबू के अंतरमन में बरिसन से लागल जाला साफ करे लागस. इंसान कई बार अपना उलझन के हल जानेला आ ओकरा से निकलहूँ के चाहेला बाकिर निकल ना पवेला. ओकरा एगो अकुंसी लगावे वाला के गरज होला जवन ओकरा माछी जइसन छटपटात मन के विचारन के मकड़जाल से बाँहि पकड़ के बाहर निकाले. धर्मन उहे अँकुसी रहली.

धर्मन त बाते बात में कुँवर बाबू के प्रति अपना अनुराग के प्रकट कs देहले रहली बाकिर कबो बदले में बाबू साहब से कवनो मोह आ माया के इच्छा ना कइली. ई निःस्वार्थ प्रेम ही रहे कि कुँवर बाबू हमेशा धर्मन के साथ देहलें. उनसे कबो बियाह ना कइलें बाकिर उनके ओसहीं सम्मान देहलें जइसे उ अपना परिवार के देत रहलें. कुँवर बाबू साहेब के चरित्र के ई बड़प्पन रहे कि सगरो समाज खातिर जे धर्मन बाई रहली, उनका खातिर उ धर्मन देवी रहली; उ धर्मन जे बाबू साहब के हर छोट-बड़ फैसला में सलाह देस, उ धर्मन जे बाबू साहब के देश खातिर लड़ाई में साथे साथे चलली, उ धर्मन जे कबो उनके पत्नी त ना बनली बाकिर कुँवर बाबू के रास्ता में आवे वाला बाधा के सामने खुद खड़ा होखे खातिर तैयार रहली.

साल 1857 के आखिरी में ग्वालियर के नजदीक काल्पी में अंग्रेजन से आमना-सामना के लड़ाई में धर्मन दुश्मन से खूब लोहा लेहली. एक ओर से कुँवर लड़त रहलें, एक ओर से उनके साथी लोग लड़त रहे. घमासान युद्ध मचल रहे. काल्पी के बगइचा लड़ाई के खून से पाटल मैदान हो गइल रहे. अचानक एगो अंग्रेज के गोली चलल आ सामने के तोप पर तैनात कुँवर के एगो सिपाही मर गइल. तोप से आग गरजल बंद भइल त अंग्रेजन के ओह साइड से कुँवर सिंह के बनावल चक्रव्यूह में घुसे के राह लउकल. तले धर्मन बिजली के रफ्तार से गोलियन के बीच से ओह तोप के लगे पहुँच गइली आ मोर्चा सम्हार लेहली. गोला पर गोला दगली आ अंग्रेजन के आगे ना बढ़े देहली. तले कुँवर सिंह अउरी उनके सेनापति आके अंग्रेजन के घेर लिहल लोग. अंग्रेज तीन ओर से घेरा गइलन सन अउरी उलटे पाँव भाग गइलन सन. तोप गरजल शांत भइल. धर्मन अपना जगहि से उठे के चहली बाकिर बेजान होके बइठ गइली. कुँवर बाबू दउड़ के अइलें, धर्मन के सर अपना गोदी में रखलें. उ धर्मन के जल्दी ठीक होखे के ढाँढ़स देत रहलें, उनका आँखी में लोर भरल रहे, सभे अकबकाइल रहे. धर्मन कहे चहली कि बाबू साहब अब हम जा तानी, माफ करब रउआ साथे अउरी दूर तक ना चल पवनी. बाकिर कहि ना पवली, कई गो गोली आ तीर के चलते उनके ढेर खून बही गइल रहे, देह में हूब ना रहे. हाथ उठवली, कुँवर बाबू के लहलहात गलमुछ छुअली, एक बार पीला पड़त चेहरा पर मुस्कुराहट लिअवली आ एगो सच्चा वीरांगना अउरी प्रेयसी के जइसन एह माटी अउरी कुँवर बाबू के आलिंगन में आपन प्राण छोड़ दिहली. कुँवर बाबू के आँख से झर झर लोर गिरत रहे.

बिस्तर पर सुतले-सुतल करवट बदललें कुँवर बाबू. बाबू साहब के आँख से लोर झर झर गिरत रहे जइसे अचानके सुखल झरना में पहाड़ से पानी आके झरे लागल होखे.

  • मनोज भावुक

( लेखक मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य और सिनेमा के जानकार हैं. )

 

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