नेपाली आजी के दुख !

चइत क घाम में साईकिल चलावत शिखा स्कूल से घरे चहुँपल त, पियास क मारे मुँह झुरा गइल रहे। तेज हवा रहे त बाकिर लूह लेखा गरम ना रहे, लेकिन हवा के बिपरीत साईकिल खिंचल एतना आसान न होखे। साईकिल दुआरी पर ठाड़ा करके जल्दी से घर मे घुसल त दुगो नया परानी के देख ठिठक गईल।

तनी देर गौर से देखला क बाद ओकरा जोर के झटका लागल अरे बाप रे, ई त ‘नेपाली आजी’ हई। बाकिर ई सँगवा एगो मुस्टंडा बा, ई के ह?  नेपाली आजी से कबो बहुत नेह-छोह क रिस्ता ना रहे, बाकिर ऊ बाबा क साथे जवन कईली ओकरा बाद त देखsहूँ खातिर ऊ गोड़ ना छुवलस। बड़की बहिन एकगरी ले जा के बतवली कि ईहे साधु बाबा हवन जिनका साथे आजी घर-दुआर छोड़ के तीरथ प चल गइल रहली। एतना सुनते शिखवा क भूख-पियास उड़ गईल आ बे कुछ सोचले-समझले बहरा निकल गइलस।

दिमाग में सनसनाहट  रहे कि बाबा के छोड़ के चल गईल रहली त अब काहें खातिर आइल बाड़ी। महीना भर से बेसी खटिया पर पड़ल बाबा क कपार में पिलुआ पड़ गईल रहलन स। शिखवा जब गाँवे जाए त चाचा के सङ्गे-सङ्गे उनुकर दवाई आ मलहम-पट्टी करे में मदत करे। एकदम रिष्ट-पुष्ट बाबा बुढापा में हीन हो गईलन। जवन बाबा क कान्ही प शिखवा आ ओकर भाई रामलीला देखे जा सन,ओहि बाबा क ई दुर्दसा?

आहि  रे! बिधाता कवन दिन देखावे लन। ईहे बाबा रहलन कि अपना जवानी में साँड़ के पटखनी दे देस। लाठी ले अपना सफाचट मूड़ पर गमछा क फेटा बान्ह के निकलस त बड़-बड़ बदमास डहरी छोड़ लुका जाए लो। अपना घर क त छोड़ द, उनुके चीन्हे वाली बेटी-पतोह भी आँचर कपार पर ओढ़ के एक ओरी हो जाये लो। घर के मवेसी चरावल, बगईचा अगोरल, लड़कन-बचवन के सबेरे इस्कूल चहुँपावल, दुपहरिया में टिफिन ले गईल; ई कुल्हि काम बाबा क जिम्मे रहे।

नेपाली बाबा शिखवा के आपन बाबा ने रहलन। उ छोटे उमर में कहीं से भुलाईल-भटकल आ गईल रहलन आ ओकरे घरे रह गईलन। नेपाल के कवनो गाँव से रहलन बाकी उनुकर बाबा से दोस्ती हो गइल आ उ एहि घर के हो के रह गईलन।

शिखवा के आपन नेपाली बाबा से बेसी मोह रहे, एहीसे अब जब आजी लवट के आवल ह त ओकरा बर्दास्त ना होत रहल ह। काहें गईली आजी बाबा के छोड़ के। ओकरा खूब इयाद बा कि जब तब ई किस्सा सुने मिल जाये कि नेपाली बाबा क बियाह खातिर आजी सोनपुर क मेला से खरीद के आइल रहली। आ सबका मन मे ई बात रहे कि अइसन मेहरारू कबो केहू खातिर ईमानदार ना होखे ली सन। छोटे उमर में बियाह क बाद आखिर अइसन का हो गईल कि आजी सन्यासी बने घर छोड़ निकल गईली।

ज गो मुँह, त गो बात। सुन-सुन के आजी खातिर मन मे अउरी घृणा हो गइल रहे शिखवा के। तनी देर बाद जब खीस पर भूख भारी पड़ल त ऊ घरे लवट गईल। बड़की बहिन रोटी, तरकारी, भात दाल आ अचार क साथे दुनों बेकत के खाना परोस देहली। शिखा चुपचाप एक ओर बईठल कुल तमासा देखत बिया। खाना खइला के बाद ओहि जगह चटाई पर साधु बाबा ओठंग भइलन आ आजी उनुकर गोड़ दबावे लगली। गोड़ दबावत आजी क हाथ तनी धीरे भईल त साधू बाबा आजी के गोड़वे से ठुनकिया देस- ” जोर से दबाव”। जब ईहे करेके रहल ह त बाबा क साथे रहला में का दिक्कत रहल ह! शिखा क दिमाग मे एक-एक गो बात फिलिम जईसन घूमल जाता।

तीन दशक बाद शिखा के ना जाने काहें आजी इयाद पड़ गईली ह। आज बुझाता कि बाबा आजी के कबो आपन पत्नी ना स्वीकार कइलन। बाँझ क ताना अउरी बाबा क बेरुखी आजी के चिड़चिड़ा कर देले रहे। बाबा खातिर पूरा दुनिया रहे लेकिन आजी खातिर उनुकर दुनिया खाली बाबा रहलन। तब ना समझ मे आवे कि उपेक्षा केहू के एतना तोड़ देवे ला कि ऊ आपन जीवन क उत्तरार्ध में केहू के देखावल सब्ज़बाग में फंस जाला।

आज आजी क दुख, शिखा के समझ मे आवता, लेकिन ओह समाज के कब समझ मे आई जे आजी के तकलीफ़ देवे क ओतने जिम्मेदार बा जेतना बाबा रहलन।

शालिनी कपूर

सुपरटेक केपटाउन सोसायटी

टावर सीएस – 3

फ्लैट संख्या 806

गौतमबुद्ध नगर

सेक्टर -74, नोएडा (उ.प्र.)

201301

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