माटसाहेब

माट साहेब के आवे से पहिले लइका सब इस्कूल गेट पर भीड़ लगा देत रहलन। माट साहेब आवते हाथ में बाल्टी उठा लेस।उनका पीछे सब बच्चा सब सफाई में लाग जात रहले। तनिके देर में इस्कूल के काया कलप हो जात रहे। फेर सब लइकन के सथहीं बइठा के ककहरा, पहाड़ा, कविता आ खेल सब करवावस।लइकन के साथहीं खाना खाये बइठस। छुट्टी होते अपना फटफटिया पर छुटल छाटल लइकन के साथे भी ले जास।

ई माट साहेब के गाँव के कुछ लइका,जवन कि ओही इस्कूल से पढ़ के काॅलेज पढत रहलन, झाड़ू मार मास्टर कहिके रोजे हँसैं। ऊ इस्कुल में पढेवालन बचवन के भी चिढावैं। कभी कभी तो कवनो लइका अपना बाबूजी के इहो कहते देकर गइल कि हम उहां‌ ना पढब ना त झाड़ू मार विद्यार्थी भइया लोग कही। बचवन के मानसिक तनाव के माट साहेब के कथा कहानी गतिविधि ई कुल कब बिसरा देत रहे कि बिगड़ल बबुआ लोग कुछ खास कभो बिगाड़ ना पवले।

एक दिन जिला प्रशासन से बोलाहट भइल। समाज में खुसुर फुसुर शुरू हो गइल। सभे माटसाहेब के चरित्तर में खोंट गिनावे शुरु कर देहलन। कभो रट्टा त कबो झाड़ू  के कहानी त कबो लइकन के संगे जीमला खातिर।

एकबार सचिव, शिक्षा विभाग के दौरा अचानक एक इस्कूल में हो गइल। माट साहेब शिक्षा सचिव के त ना चिन्हलन बाकिर हाथ जोड़ के परनाम करत आवे के कारण पूछनी।उहां के कहनी-ना, हम कबो इहें बगल वाला गली में रहत रहीं आ पढत रहीं। आज गुजरत रहीं त कदम खुदे रुक गइल। माट्साब बीचे में बात काट देहनी-“शंकर….!एगो कुर्सी ले आव।बइठीं आ चाहे घूमीं रउरे इस्कुल आजुओ बा,”कहते काम पर लग गइलन।उहे दिनचर्या फेर शुरू।बीच-बीच में अतिथि के सत्कार भी धेयान में रहल। अतिथि माटसाहेब के जीवट मन देख के खुश हो गइलन।खाये घड़ी आज अतिथियो के साथे खात उ अतिथि चकरा गइलन जब माटसाहेब के छोट लइकन सभ के साथ से खियावत देखलन। उनकर मन खुश हो गइल। जाये घड़ी कहनी कि हम भले रउरा कहला से रूक गइनी, बड़ी अच्छा लागल ह इहां।आज इ सनेह आ खेयाल के साथे लइकन के ज्ञान बाँटल देख के हम बहुत खुश बानी।

कुछ दिन बाद राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के घोषणा भइल। ढेर नाम में माटसाहेब के भी नाम रहे।उनकरा क्षेत्र में ई घोषणा माटसाहेब के कोसे खातिर बड़का बम बन के आइल रहे। माटसाहेब खातिर ई एगो संशय आ भय के काल रहे।

दिल्ली जाये घड़ी जब राजधानी ट्रेन पर चढ़े खातिर गइलन तो उहे अतिथि स्टेशन पर खड़ा रहनी।माटसाहेब देखते हाथ जोड़ले अतिथि के लगे पहुँच गइलन। वाह का संयोग बा! सपनवो में ना सोचले रहीं कि रउरा से एतना जल्दी मुलाकात होई। का हाल बा? इहाँ कइसे?

रउरे के दिल्ली भेजे के बा।उनका कहते- आयऽऽ? रउरा कइसे पता कि हमरा दिल्ली जाये के बा। अतिथि मुस्कुरा देहनी। बीचे में एगो आफिसर कहे लगलन-ए माटसाहेब चिन्हत नइखीं का? एतना बात हो गइल आ इहां के के हईं,ई रउरा जानते नइखीं ंं! आश्चर्ज होता।

इहां के शिक्षा सचिव बानी। हेंऽऽ? तनी लजात आ तनी भरम से फेर माटसाहेब अतिथि के तरफ देखत हाथ जोड़ देहलन।

अतिथि मुस्कुरात टरेन पर चढ़े खातिर इशारा कइलन।

माटसाहेब अतिथि के प्रति आभार आ सनेह बरसावत टरेन पर चढ़ गइलन। आज उनका आपन दैनन्दिन पर भरपूर तोष के अनुभव भइल।

 

डॉ रजनी रंजन

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