‘आखर-आखर गीत’ आ भोजपुरिहा तड़का

हमरा संगे रऊओं सब के मन खुश होई कि हमनी सब मिलि-जुलि के भोजपुरी भाषा के कवि जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के कविता संग्रह “आखर-आखर गीत” में डुबकी लगावे वाला बानीजा। साहित्य कवनों भाषा में होखे,ओह में रस होला। रस होई,त तनी-मनी त होई ना,साहित्य के रस के औकात कवनो नदी लेखा होला,आ सांच कहीं त समुन्दर लेखा होला। समुन्दर में डुबकी लगावल सहज होला? ना होला। तबो लोग लागल रहेला आ मोती-मानिक निकालत रहेला।

भोजपुरी में लिखला-पढ़ला के लेके खूब चर्चा होत आइल बा। बाकिर लोग तनी दबल-दबल लेखा बतियावेला। एकर रहस्य हमरा आजु ले ना बुझाइल। एतना रसदार आ गम्भीर भाषा बोले वाला लोगन का टांठ रहे के चाहीं। हम त डंका का चोट पर कहेनी,भोजपुरी के शब्द-सामर्थ्य का आगा,कमे लोग खाड़ा होई। भोजपुरिहा लोग दुनिया में खूब फइलल बा आ आपना दमखम पर आपन मुकाम बनवले बा। भोजपुरिहा लोग हिन्दी आ अंग्रेजियों भाषा में पढ़ि-लिखि के दुनिया का कोना-कोना में ललकारत बा। एकर मूल कारण दुनिया बुझि रहल बिया,भोजपुरिहा भाई लोग जहाँ रहेला जिम्मेवारी उठावेले,भरोसा ना तुरेले आ कम दरमाहा का बावजूद डटल रहेले।  हमनी भोजपुरिहा का पास बहुत गुन बा।  जे आदर-प्रेम से रही,भोजपुरिहा जान दे दिहें आ केहु आँखि देखाई त ओकरा दस बेरि सोचे के पड़ी।

डा० ब्रजभूषण मिश्र जी एह संग्रह के आपना भूमिका “आखर-आखर गीतः झलकत जग से प्रीत” में बहुत सुन्दर-सुन्दर बात लिखले बानी। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी समर्पित बानी भोजपुरी खातिर। साहित्यिक आंदोलन, संगठन,प्रकाशन,पत्रिका संपादन आ लगातार लेखन सब भोजपुरी खातिर, भोजपुरी भाषा में। बहुत कम लोग मिली अइसन समर्पित व्यक्तित्व वाला। ओइसहीं वाराणसी से डा० सुमन सिंह जी एह पुस्तक पर आपन जबरदस्त टिप्पणी कइले बानी। पटना से दिनेश पाण्डेय जी के विस्तृत समीक्षात्मक लेख छपल बा एह संग्रह में। डा० ऋचा सिंह(वाराणसी) आ डा० रजनी रंजन(घाटशिला) के टिप्पणी से एह संग्रह के महत्ता बुझाता। “आपन बात” में खुदे जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी आपना रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डलले बानी। विनम्रता पूर्वक कहत बानी,एतना ज्ञानी-गुनी भोजपुरिहा विद्वान लो के बाद हमरा लिखे लायक कुछु शेष नइखे।

‘आखर-आखर गीत’ संग्रह में द्विवेदी जी के लिखल कुल तिहत्तर गो गीतन में उहाँ के नाना तरह के भाव के मोती चमकत बा। द्विवेदी जी के रचना संसार सामयिक विषय से भरल-जुड़ल बा आ खूब प्रासंगिक बा। उहाँ के गीतन में भोजपुरी माटी के सब रंग बा, सब सुगंध बा आ सब तरह के विधा के दर्शन होता। भाषा के संस्कार बेजोड़ बा आ शैली भी खूब आकर्षित करे वाला बिया। उहाँ का भोजपुरिहा लोक धुन, भोजपुरी रस आ भोजपुरिहा भाव-विचार से खूब परिचित, जानकार बानी। सुखद बा, उहाँ का भोजपुरी के आपन “माई भाषा” मानि के लागल बानी।

संग्रह के शुरुआत ‘सरस्वती वंदना’ से भइल बा,आ ‘ए हो माई तोहरे अवनवाँ’,’देवी गीत’,’परसुराम जी क सुमिरन’,’सुना हो बजरंग बली’ जइसन भक्ति-भजन के गीत द्विवेदी जी के भीतर के प्रेम से भरल बा। हमनी के भोजपुरी माटी में सब देवता लो के गीत-भजन गावे के परम्परा बा। एह गीतन में जवन भाव उभरल बा, सबके मन मोहि ली,सबके हृदया में भक्ति जागि जाई आ देवी-दुर्गा,बजरंग बली प्रकट हो जइहें। भगवान परशुराम के द्विवेदी जी आपना तरीका से गवले बानी आ बखान कइले बानी।

द्विवेदी जी के व्यंग्य के धार आ मन के पीड़ा ‘अंग्रेजी बोल बोले सुगना’ में देखीं-

मेहर देख माई भुलाइल

बाप क अनही शामत आइल

रिस्तन के बुझे व्यापार हो

अंग्रेजी बोल बोले सुगना।

‘कुकुरा भइले कुलीन’,’घुमची के भइल बा गुमान’,’चोरवा मचावे बड़ा शोर’ आ ‘रउआ राजा बानी’ गीतन में उहाँ का  व्यंग्य आ तनी हास्य लिखले बानी। देखल जाव-

चोरिये में कटल जिनगी

हेरीं केकरा ईमान

आइहो दादा! घुमची के भइल बा गुमान।

आ इहो देखीं-

चोरवा मचावे बड़ा शोर हो

रोज भोरहीं दुआरे

उहो देखते भइल मुँहजोर हो

रोज भोरहीं दुआरे।

‘रउआ राजा बानी’ गीत पढ़ीं-

जरत जाँगर डहके जवानी

रउआ राजा बानी

करत फिरीं सगरों मनमानी

रउआ राजा बानी।

व्यंग्य के धार कवनो जरूरी नइखे,खूब चिल्लइले से देखाई दी,द्विवेदी जी संयत भाषा में आपन लकीर खींचि देले बानी। इ काम सब से ना हो सकेला। एकरा खातिर आलगा दृष्टि होखेला। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी में ओइसने दृष्टि बा।

विरह-भाव के कइगो कविता एह संग्रह में भरल बा। एकरा पीछे के सिद्धान्त इहे मानल जाला कि संयोग होई त वियोगो होइबे करी। संजोग सुख देला त वियोगो के आपन सुख होला। देखे में त दुख बुझाला बाकिर वियोग में प्रेम के अनुभूति खूब गहराई से महसूस होला। ‘हियरा,रहि-रहि के’ कविता के भाव देखीं—तड़पन सहले ना सहात,आफत कहले ना कहात,पिया बिन रहलो ना जात। नायिका के मन के भाव बा-हियरा रहि-रहि के फगुनात आ मन कचोटता, उनका बुझात नइखे कि फागुन आ गइल बा। द्विवेदी जी नायिका के मन के भाव के खूब उजागर कइले बानीं। ‘हिया दहकाय गइल ना’ में नायिका का खाली वियोगे नइखे बल्कि रोपनी करावे के बा आ सावन के झूलो बा। ओइसहीं पियवा वियोगे,फूले हो लागल ना,पिय के आस,कहवाँ लुकाइल बाड,झुलुवा कइसे झूलिहें धनिया,नेह के तलइया सुखाइल,मन भितरि समाइल आ भोरे-भोरे अइहें हो सुगना जइसन कवितन में नायिका वियोग के अनुभूति कइके उभकत-चुभकत बाड़ी। तनी एने चाहे ओने, नायिका के भीतर के दुख द्विवेदी जी खूब समझले बानीं। सबसे  बेजोड़ उहाँ के भाषा में भाव आ शब्द चयन बा।

दुनिया भर में कोरोना महामारी लोगन के तबाह कइ दिहलसि,कातना लो मरि गइल आ सब लोगन के जिनिगी में तूफान आ गइल। जे जहवाँ रहे,ओहिजा लाकडाउन में रहे के परल। ओह दौर में लेखक,रचनाकार लोग आपना-आपना भाव-विचार में खूब लेखन कइले आ आपन धरम निबहले। द्विवेदी जी ‘ई कोरोनवा हो’ कविता में बड़ा जीवन्त चित्रण कइले बानी-कई देहलस सबहीं के उदास,भरि लेहलस सबके बाहुपाश,बहुतन के करता उपास,सूझत नइखे जिनगी के आस आ लील गइल सगरी बिसवास। ओइसहीं कोरोनवा में पिया,कोरोनवा का डर,चहके कोरोनवा आ मरकिनौना कोरोना लेखा कइगो कविता लिखि के उहाँ का आपन पीड़ा आ विचार व्यक्त कइले बानी। द्विवेदी जी लोगन के ‘अँखिए से अँखियाँ’ कविता में आगाह करत बानी-मुँह-नाक तोपले भेटइहें लोग सगरो/अँखिए से अँखियाँ चिन्हल कर बबुआ। इहाँ भांति-भांति के लोग बा,सबके बुझे के पड़ी,बचि-बचि के मिले के पड़ी आ सभका साथे सोचि-सोचि के जीए के पड़ी। ‘अँगनइया में आई जा हो’ घर-परिवार में सुख-दुख से भरल गीत बा जवना में नन्हकी चिरइया चहक के आपना सजन के बोलावत बिया। वियोग में नायिका के विरह दुख के सुन्दर भाव उभरल बा ‘आँख मोरी सावन भइल’ कविता में। ‘कुसुमी’ शब्द भोजपुरिये में होला जवना के भाव बहुत व्यापक मानल जाला। एह कविता में  मरद आपना पत्नी से कुसुमी अँचरवा फहरावे खातिर आग्रह करत बाड़े। नायक एह कविता में खूब हिलोर लेत बाड़े आ नाना तरह से आपना धनिया से निहोरा करतारे। ‘अ ले बसंत दुलहा’ में दुनों सखि लोग बतियावत बा। बसंत ऋतु आवते सब कुछ बसंती होखे लागेला। बसंत के दुलहा मानि के उमंग,हुलास आ नाना तइयारी शुर हो गइल बा। द्विवेदी जी के रसिक मन खूब अनुभव से भरल बा।

‘आखर-आखर गीत’ कविता के नाम पर द्विवेदी जी एह संग्रह के नाम रखले बानी। एह में गूढ़ भाव भरल बा आ बिम्ब के माध्यम से अलगा तरह के विचार दिखाई देता-कन-कन में संगीत,सोनहुल भोर आ आखर-आखर गीत। ‘एथी आ अथुवा’ में तनी हास्य बा। लोग बतियावेला आ बीच-बीच में ‘एथी’ चाहे ‘अथुवा’ बोलेला। एकर कवनो खास मतलब ना होला,बस लोग बोलल करेला। एथी के प्रयोग जियादा बलिया में होला आ अथुवा बनारस में। द्विवेदी जी के सलाह बा,छोड़ ए सखि,चल बथुआ के हरियर साग खोंटि आइ जा। उहाँ का ‘कहवाँ मोर दलान’ में लोगन के पीड़ा लिखले बानी कि सब कुछ बा बाकिर दलान कहवा हेराइल बा। द्विवेदी  जी के कवितन में समाज में व्याप्त गरीबी,दुख,पीड़ा आ विसंगति के सटीक चित्रण भइल बा। उहाँ का पासे शब्दन के भरमार बा,भाषा ज्ञान बा आ शैली बेजोड़ बिया। दुरुह आ कठिन शब्द कहीं-कहीं व्यवधान लेखा लागता बाकिर प्रवाह बिगड़ल नइखे।

द्विवेदी जी मौसम के रंग-ढंग,फगुनी बयार,सावनी बहार आ सावन में फुहार के रस लेत खूब लिखले बानी। लोग होली में भाँग पियेला। प्रकृति में जोश आ उमंग भरल बा,तुलसी चउरा रँगाइल बा,सुगना बउराइल बा,छिछरी गड़हियो फफाइल बिया आ बुढ़वो मधुआइल बा। मधुरितु आई गइली ना,सावन में फुहार पड़े बलमू,सावनी बहार आ बहार तोरे अँगना जइसन रसगर कविता पढ़े-सुने वाला लो के कलेजा धड़का देत बा। नायिका के पीड़ा ‘तहार बतिया आ ‘तहार सुधिया’ में देखते बनता। उनका हर तरह से दुखे मिलता पतिदेव का बात से। तहार सुधिया में नायिका आपना विरह वेदना के हर रंग-रुप बतावत बाड़ी। ‘सुना हो बबुआ’ में संदेश बा कि कोरोना के प्रकोप बा,घरही में रह हे बबुआ। महँगाई के लेके पत्नी आपना साजन से कहतारी,अब कुछु कीने के मत सोच,घर बनावल संभव नइखे,हमार लुगवो तार-तार हो गइल बा,लइका के पढ़ाई छूटल आ बेटी खातिर दामाद कइसे खोजाइ। द्विवेदी जी महँगाई के चलते घर के दुर्दशा के यथार्थ चित्रण कइले बानी। ‘हलचल भइल’ अटल जी के समय पोखरन परीक्षण के इयाद में कविता  बा।

द्विवेदी जी खिचड़ी पर्व मनावे खातिर सखि लो के बातचीत लिखले बानी। मकर संक्रान्ति पर्व पूरा देश में अलग-अलग नाम से मनावल जाला। हमनी भोजपुरिया खिचड़ी बनावेनी जा। गुड़ तिल के दान होला। ‘खोज’ कविता में, समाज में भरल विसंगति के चर्चा भइल बा आ नीमन-नीमन लोग के खोज आ नीमन बात सिखावे के संदेश बा। गंगा मैया,राधा रनिया,शिवा नहीं खेल रही होरी भिन्न-भिन्न भाव-चिन्तन के रचना उहाँ का लिखले बानी। ‘मजूर हई भइया’ में मजदूर के संघर्ष आ दुर्दशा लिखाइल बा। कवि जी गाजियाबाद में रहेनी,लिखतानी-पहिरी के निकलब खादी/ठसक हम गाजियाबादी। हास्य आ व्यंग्य भरल बा एह कविता में, जिला के दुर्दशा बा, बाकिर उहाँ का-हँसिले देखी बरबादी। ‘बीरन अँगना’ भाई-बहन के बीच राखी बान्हे के लेके आत्मीय आ मार्मिक भाव के कविता बा। बहिन ससुराल से मायके भाई के राखी बान्हे जाएके तैयारी करत बाड़ी-

पहिरब हरियर चुड़िया पीयर कंगना,

बान्हे जाइब रखिया बीरन अँगना ।

‘बेइमान बरजोरी अँचरा उड़ावे’ वियोग में नायिका के दुःसह दुख के कविता बा। पछुआ पवन बेमौसम सतावता आ नायिका के अँचरा उड़ावत बा। कवि जय शकर प्रसाद द्विवेदी जी आपना संग्रह में रसिक-रुमानी भाव के बहुत कविता, गीत लिखले बानी। शरीर के पोर-पोर, अंग-अंग में मौसम के प्रभाव बा आ पिया उनका साथे नइखन। एगो-दुगो पंक्ति देखीं-ननदी के बतिया बेधेला मनवाँ/टह-टह अँजोरिया ताना सुनावे/बेइमान बरजोरी अँचरा उड़ावे। गाँव-घर में टोनहिन, मंथरा आ चुगली करे वाली कुछ औरत होली स, द्विवेदी जी के व्यंग्य बड़ा निमन लागता।

कवि,लेखक,संपादक जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी का अनुभव संसार बहुत व्यापक बा,रसज्ञ बाड़न,वियोग के चित्रण पर महारत हासिल बा आ खूब जमि के लिखे के क्षमता बा। भोजपुरी काव्य संसार उहाँ के लेखन से समृद्ध हो रहल बा। ‘सँवरी सुरतिया’ कविता में रजमतिया के भक्ति देखीं,द्विवेदी जी लिखतानी-सपना सजवलस/दियरी जरवलस/सोचि-सोचि मनवा पिरितिया बढ़वलस/उनुसे नेहिया क रीतिया निभाई हो लिहलस ना। कान्हा के मूर्ति मन में बसल बा। उनुके निनि सुते,उनुके निनि जागे,इहे ओकरा जिनिगी के नियम हो गइल बा,सब खाइल-पियल भुला गइल बिया आ कान्हा संग पिरितिया लगाई लेले बिया। मधुमास माने बसंत ऋतु में कवि के भाव-विचार देखीं-हे सखि! मधुमास आवते,केहु-केहु खास बनल जाता आ इ भँवरवा अदबद कोढ़िए,कलियन पर बइठता। मधुमास में प्रौढ़ा नायिका के इ भाव खूब मन से रचले बानी द्विवेदी जी। ‘गीत’ नामक कविता में कच्चा उमर के नायिका पर गँवे-गँवे सावन के खुमारी चढ़ल जाता,मने-मने मुस्कात बाड़ी,सपना में डोली चढ़त देखतारी आ खूब-खूब भाव से भरल बाड़ी। अइसन भाव चित्रण में माहिर बानी द्विवेदी जी। ‘गुजरिया लजा गइली हो’ कविता में नायिका के रंग-ढंग देखीं-सइयाँ पर अपने मोहा गइली/भोरहीं शरमा गइली। सइयाँ पर अपने लुटा गइली/भोरहीं शरमा गइली। द्विवेदी जी आसपास के नायिका लो के देखि-देखि के हर मौसम के हाव-भाव के साँच-साँच वर्णन कइले बानी।

भाव भाषा आ लोक शब्दन के जानकारी जेतना द्विवेदी जी के बा आ रस छन्द,अलंकार,मुहावरा के प्रयोग कइले बानी,उहाँ के काव्य में खूब गहराई आ रोचकता बा। ‘जँतसार’ गीत में लिखतानी,पिया जी के देखते बगिया गमकि जाला,जियरा सहकि जाला,मथवा से सड़िया सरकि जाला,मुखड़ा चमकि जाला,  हथवा के चुड़िया खनकि जाला,ओठवा के ललिया लहकि जाला आ बिछुवा बहकि जाला। पाठक लो डूबत-उतरात रहि जाई। ‘जतन करें’ आ ‘जरिये से जरे जर जरिये से’ कवितन में द्विवेदी जी कवनो भिन्न भाव-चिन्तन लिखले बानी। हमनी का समाज में अइसनो बहुरिया लो बा जे घर-परिवार के हिला के राखि देली। तनकि ठहरि जा,तनि डरता नजरिया,पियवा सिपहिया,बीनवा क तार आ देश के डहरिया अलगा-अलगा संगति-बिसंगति के दृश्यन के कविता बा। एह कवितन में यथार्थ बा देश-समाज के आ टकराव,दुराव-छिपाव बा। उहाँ का ‘धिया’ कविता में बेटी के लेके सुन्दर भाव-विचार लिखले बानी। ‘माई नेहिया क मोटरी’ आ ‘माथे के सिंगार बाबूजी’ कवितन  में माई-बाबूजी के बखान कइले बानी।

द्विवेदी जी समाज के नस-नस से परिचित बानी आ आपना साहित्य में भरि देले बानी। उहाँ का कवितन में जन-जीवन खूब रचल-बसल बा। धान के खेत में फसल के कटाई का बाद के खुशी ‘बलइया लेहु ना’ कविता में लिखले बानी-सोना अस फसल देखि  मन अगराइल हो/धरती मइया सभकर करेली भलइया/कि बलइया लेहु ना। उहाँ का कवितन में गीत गावे लायक भाव- संजोग बनल-छिपल रहेला। ई उहाँ के आपन विशेषता कहाई। ‘पहुना के अवनवाँ’ के बिम्ब देखीं-अँगना उचरेला काग हो/पहुना के अवनवाँ। पाहुन आवे वाला बाड़न,तैयारी होता। बहुत सुन्दर चित्रण भइल बा। ‘पगली कोइलिया’ में  वियोग आ संजोग के इच्छा के लेके सुन्दर भाव-सम्प्रेषण भइल बा-

पगली कोइलिया काढ़ि करेजा

पियउ के गोहरावेले,

छीजत राह निहारि कोइलिया

मिलन क आस जगावेले।

ओह स्थिति के कल्पना करीं जब नायिका प्रतीक्षा में बेचैन बाड़ी आ अचानक पिया दिखाई दे दिहले। ‘निरखेला मनवाँ विहान’ के भाव देखीं-अचके लउक गइले पिया परदेशिया/अब भइल नेहिया जवान/निरखेला मनवाँ विहान। ‘निसार मोर अँखिया भइल’ में नायिका के भिन्न-भिन्न बिम्ब के माध्यम से हाव-भाव,प्रतीक्षा,मिलन के उत्साह आ हृदय के कसकल लिखि के द्विवेदी जी हमनी खातिर परोसले बानी। एतना गहिरा दृष्टि,गहिरा भाव आ संवेदना कम लोगन में मिली। द्विवेदी जी के “आखर-आखर गीत” पढ़िके मन बसंती आलोक से भरि गइल बा। हम उहाँ के श्रद्धा पूर्वक बधाई देत बानी आ उम्मीद करत बानी उहाँ का अइसहीं खूब लिखत रहीं।

 

समीक्षित कृति       आखर आखर गीत(कविता संग्रह)

कवि/लेखक          जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

मूल्य                      रु 160/-

प्रकाशक               सर्व भाषा ट्र्स्ट,नई दिल्ली

  • विजय कुमार तिवारी

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