‘साहित्य आज तक’ के महोत्सव सम्पन्न

‘साहित्य आज तक’ के तीन दिन के समारोह बीत गइल।’साहित्य आज तक’, भा ‘आज तक’ भा इंडिया टूडे ग्रुप के ई बहुते सुखद आ सराहे जोग पहल रहल। शुरुवतिए से जवन टीका-टिप्पड़ी चले लगल रहल, तवन अभियो चल रहल बा। कुछ लोग रजनीगंधा के स्पानसरशिप के लेके कार्यक्रम के क्रिटिसाइज करत देखाइल आ कुछ लोग साहित्यकार चयन के लेके क्रिटिसाइज कर रहल बा। सभे के आपन-आपन तर्क बा, आपन-आपन विचार बा। जे घोड़ा पर चढ़ेला, ओकरे गिरे भा सँभरे के संभावना पर बात होले।

आज बाजारवाद के समय ह, जवन कुछ बेचे जोग बा लोग बेच रहल बा। सभे के आपन स्वाराथ बा। बाकि एगो सोचे जोग बात त बा कि साहित्य के स्पानसरशिप पर जवन लोग सवाल उठा रहल बा, का उ लोग कवनो दोसर विकल्प देवे के स्थिति में बा? आज कवनो साहित्य के कतना लोग पसन्न कर रहल बा? कतना लोग साहित्यिक किताब भा पत्र- पतरिकन के कीन के पढ़ रहल बा? भूइयाँ उतर के देखीं महाराज, स्थिति त नीमन नइखे।

एह कार्यक्रम में करीब 14 गो प्रकाशक लोगन के स्टाल लगल रहल । सभे नामचीन प्रकाशक रहल ह। सभे ले नया एगो सर्वभाषा प्रकाशन के स्टाल रहल। पहिल बेर एह तरह के कवनो कार्यक्रम में भागीदार बने के मोका मिलल। एको गो स्टाल से 3 दिन में 50 हजार के किताब ना बिकइनी। क्रिटिसाइज करे वाला लोगन के एह दिसाई जरूर कुछ सोचे आ करे के चाही। साहित्य आज तक लगातार हिन्दी के किताबन के समीक्षा आ पुस्तक चर्चा भर साल करत रहेला। ओह चैनल के व्यूवरशिप का बा ? सोचीं लोगिन। कतना लोग बा जे नवहा लोगन के मंच दे रहल बा ?

हम हिया से आभर व्यक्त कर रहल बानी  आदरणीय जे पी पाण्डेय जी, संजीव पालीवाल जी,राहिल अब्बास जी, सौरभ द्विवेदी जी का संगे सर्वभाषा प्रकाशन के, इहाँ सभे के आत्मीयता के, इहाँ सभे के संजीदगी के। उमेद बा कि आगे साहित्य खातिर कुछ आउर नीमन होखत रही ।

 

– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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