बरगद गाछ

बरगद गाछ के तरे बइठल शिवशंकर  के आपन बाबूजी इयाद पड़ गइनी। बाबूजियो तऽ बरगदवे अइसन रहनी।केतना लोग के ऊपर आपन हाथ रखनीं। सगरी गाँव उनहीं जमीन पर राज करत बा। बाकिर हमरा पता ना रहे कि उ  खोख बरगद रहन। जेकरा  में दीमक नियन भीतरे भीतरे गोतिया दायाद आ बेटवन लोग बाँटत काटत छाँटत उनकर अंत करा देहलन।

आदमी आ ई गाछ बिरिछ में इहे त फरक देखल जाला कि  गाछ बिरिछ में आदमी लोगन से जादा धीरज आ सहनशक्ति होला। आदमी तऽ मायाजाल के फाँसल मनई।इचिको  बात से मन दुखाइल आदमी टूट जाला।

केतना इज्जत रहे बाबूजी के।साँझ सबेरे लोग बइठकी लगा के बाबूजी के उपकार के गुणगान करे।खूब सेवा करे। उनकर उपकार में बुड़ल गाँव के लोग उनका बचवन के खूब दुलार मिलल जेकर परिणाम ई भइल कि आठ बचवन में शिवशंकरे एगो बाबूजी के गुन, अपना में धारन कइले। लइकिन सभ त अपना अपना संसार में बेअस्त भ गइली। बाकिर चार गो बेटा त सभ करम करके बाप के अंतगति करा देहलन।

लइकन के खराब बेवहार बाबूजी के साँचल इज्जत के बाट लगा देहलस। बाहर के ढीठई घरो में घुस गइल। मारा काटी, गारी, खोबसन, अपमान ई सब बाबूजी के मन के बेरि बेरि ओरहन सुन के तार तार कर देवे। गाँव के लोग के बइठका अब उनुका लगे उनकरे लइकन के बरजोरला के कथा सुनावे खातिर बइठे लगलें।

एगो समय रहे जब लोग बाबूजी के गोर लागत रहलन पर आज बाबूजी के अपना अभागा लइकन के दुर्बेवहार खातिर सभका आगे हाथ जोड़े के पड़त रहे। थाकल शरीर , मोटका चशमा आ लाठी के सहारे चलेवाला बाबूजी एतना कमजोर भ गइनी कि आपन जीवन से हाथ धो देहनी।।

बरगद गाछ के लगहीं एगो ऊसर जमीन रहे।ओही पर एगो मचान बनल रहे जवना पर खेतिहर लोग चढ के अनाज के अगोरस।ई मचान ई गाँव के एतना बड़हन मचान रहे कि कभो कभो त बइठ के गवनई बजनईयो होखे। ई मचनवो बाबूजी के बनवावल रहे।बाद में गउवें के लोग मिलजुल के ओकर रख-रखवारी करे लगलन।हरदम ई मचान चकाचक रहत रहे।सभके मनसाएन आ दुख बाँचे के ईहे सबसे सुन्दर जगह रहे।

शिवशंकर अचके से मचनवे पर चढ गइलन। सगरी गाँव ओह मचान से लउकत रहे। एतना बड़हन गाँव देख के शिवशंकर के आपन बाबूजी ओतने बड़ लउके लगनीं। हड़ हड़ धार के संघे बहत लगहीं नदी में बाबूजी के लोर के बहाव बुझाइल। हरियर पीयर पात के संघे डोलत गाछ गाँव के बसवैया अइसन लगलेजेमें जवान आ बुजुर्ग लोग रहलन। फुलाइल फरहरी, गाँव के लइकन सभे जे निफिकिर होके डार से लगले डोलत रहलन। ओहिमें लगहीं कटैया गाछ में आपन चारो बिगड़ैल भाई लउके लगलन आ मन कसइल हो गइल। लाल सुरुजदेव पछिमाह भ गइल रहलें। एतना देर से उ उहवें काल बिता देले बुझइबे ना कइल। जात बेरिया सुरुजदेव के गोर लगलन आ मने मन गोहरवले- हे देव! हमरा मउआर के रक्षा करब।सभ अब रउरे लोग के हाथ में बा।

एने चारो भाई के उत्पात से गाँव के लोग पहिलहीं से बिलबिलाइल रहलें आ बाबूजी के मरला के बाद तऽ इ चारोजन के कयबार गाँव के लोग पहिले समझवले आ जब ऊ लोग ना मनलन तऽ अब बात हाथापाई तक पहुँच गइल। शिवशंकर त्ऽ अपना घर परिवार आ डिऊटी के बाद घरहीं में सिमट गइलन।कभीकभार भाई सभ मिलके उनका केखूब सुनावस काहे कि ऊ ओह लोग के साथे गाँव के लोगन के ऊपर जोर जबरदस्ती ना करस। धीरे धीरे चारो भाई त गाँव के गरीब गुरबा आ कमजोर लोग के जमीन जबरदस्ती छीने लगलें बाकिर बाद में ऊ लोग बरियार बसिन्दन से भी बजरे लगलन।

एकर परिणाम ई भइल गाँव दू भाग में बँट गक्षइल। चारो भाई संघे गाँव के चोर,चपलूस आ गुण्डा सभ भ गइले तऽ दूसर ओर गाँव के भुक्तभोगी रहनिहार लोग।

कहल जाला कि साँच के आँच कइसन,साँच कबहूँ ना हारेला ,से अब सभ गाँव के लोग बाबूजी के उपकार के भुला के अब ई बिगड़ैल बचवन  से बदला लेवे के ठान लेहलन।

एक दिन खूब मारा-मारी भइल। शिवशंकर दउड़ल अइले।  नरेशवा आगे बढ के कहलस- शिवशंकर बाबा के लाज रहल एह से ई लोग जीयत लउकता।ना तऽ एह लोगन के ऊपरे पहुँचा देतीं सन। हाथ जोर के गाँव वालन से माफी मंगलन। आ सभ भाइयन के घरे भेजववलन।

एहु काज के बदले भइयन से खोबसन सुने के मिलल कि अब शिवशंकर गाँव वालन से मिल के अकेलहीं राज करे चाहतारन।

शिवशंकर के दुख कहे लायक भी ना रहे।एकदिन  ऊ भोरे सबेरे उठ के चारो भइयन के साथे गाँव में एगो बइठका बोलवलन। उहवां तऽ सबसे पहिले आपन बेटा के बैंक में चाकरी लगला के खबर देहलन। चारो भयाद तऽ आउरो जर गइलन। मुँह बनाके मझिला कहलस- त ई कहे खातिर बइठका बोलावे के जरूरत ना रहे। आपन शान बघारताड़े- छोटका कहलस। शिवशंकर कहलन- ना हो! ई त हम अइसहीं बता देहनी ह। हमार मतलब त इहे कहे  के रहे- गाँव के लोगन के जमीन बाबूजी देहले रहनी एह से ई लोग के जमीन तू लोग ना ले सकेलऽऽ। आ अगहूं ई सब मत करीह लोग। काल्ह पुलिस आइल रहे। ई सभ गँवई बिरादर पुलिस में रिपोट कइले बारन। हम बीच बचउवल क के रोक लगवा देहले बानी।हम आपन सब हिस्सा तहरा लोग के देत बानी। हमार बेटी के बिआह अगिला महीना तय भ गइल बा।ओकरा बिआह के बाद हम अपना बेटा लगे गाँव छोड़ के चल जाएब।

शिवशंकर के बात दुनो पाटी के मुँह बंद करा देहलस।

ओकरा बाद गाँव ठहरल पानी नियन शांत हो गइल। बाकिर शिवशंकर के मन के हलचल ना बंद भइल रहे।

बेटी के बिआह भी धूमधाम से निबह गइल। शिवशंकर के अब गाँव छोड़े के रहे।एही से गाँव के आज निरेखत मन के हजारो फाड़ होत रहे, गाँव के सभे फूल,पात,घर,खेत,बघार सभ में बाबूजी लउकत रहीं। जइसे शिवशंकर गाँव ना छोड़े चाहत रहलन । उनकर बाबूजी कभो बयार बन के पतई रुप ध के गोर से लिपट जायं जइसे  कहत बारन- मत जा। चल जइबऽ त गाँव आ सहोदर के के सँभारी!

शिवशंकर के कंठ बन्हा गइल , आँख में लोर भर आइल आ सब धुन्ध जइसन लउके लागल। बाबूजी के बात आ अपना भाईलोगन के बेवहार शिवशंकर के मन के झुलुआ नियन डोलावे।ऊ बिचलित हो उठले। तनिका देर बाद उठले आ ओकील से मिले खातिर चल देले। सब कागज पत्तर के सरियवा दिहले। आपन पइसा लगा के कागज पक्का करा के जेकर जेकर रहे ओकरा के दे दिहले। आपन भाइयन के भी समझवले आ बाबूजी के मन के मुराद पूरा कइले कि सभका के समझा बुझा के गाँव के सुख शांति के माहौल बनावे के भी कोशिश कइले।

कुछ समय बाद बेटी के बिआह खूब धूमधाम से हो गइल। सभ काज पूरन भइला पर शिवशंकर बेटा के लग जाये खतिरा तइयार भइलन। बरगद गाछ के गोर लागे खातिर जब गइलन तऽ देखलन कि लगहीं एगो आउर बरगद उग आइल बा।उनकर मन बड़ सुख पइलस ।अइसन लागल कि बाबूजी आपन लगे छाँव उनका के दे दिहनी।गोर लाग के शहर ओरी शिवशंकर के परिवार चल गइल।।

 

डॉ रजनी रंजन

घाटशिला, झारखंड

Related posts

Leave a Comment