लोकतन्त्र के लास जरी

जब मनई मनई के आस जरी

बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी।

 

गली गली भरमावल जाई

उलटबासी  पढ़ावल जाई

आइल फिर चुनाव के मउसम

फुटही ढ़ोल मढ़ावल जाई।

कवनो बहेंगा, फिरो गरे परी ।

बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी।

 

लागत हौ दिन बदलल बाटे

एही से अब लउकल बाटे

जनता के हौ जनलस नाही

उनुके बेना हउकत बाटे।

अब घरे घरे जाई, गोड़ परी।

बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी।

 

जात क लासा धरम क लासा

गढ़ि गढ़ि के नवकी परिभाषा

केहु क गारी केहु क गुन्नर

देहल जाई सभके झाँसा।

इहाँ जीति के जाई, देस चरी।

बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी।

 

बूथ दिखे समसाने लेखा

आपुस में बा लमहर रेखा

हार जीत चौसर के खेला

तनल इहाँ बा तेवरी देखा

फिर चोरी करी,आपन घर भरी।

बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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