फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया के बहाने से :

पछिला कुछ बरिस में भोजपुरी में लेखन फेर से अँगड़ाई ले रहल बा। भोजपुरी में लेखन पहिलहूँ खूब भइल बा। हर विधा में थोर-ढेर किताब लिखाइल बाड़ी सन। चूँकि पठनीयता के अभाव आ कवनो सरकारी सहजोग के बेगर भोजपुरी के किताबन के उपलबद्धता के लेके सभे के सब कुछ पता बा। कारन इहे बा कि भोजपुरी के किताब लेखक लो अपना जेब से कटौती क के करावेला आ अजुवो कमोबेस हालत कवनो ढेर बदलल नइखे। बाकि परेसानी आ विश्वसनीयता के लेके सोचल जाव त अब बहुत कुछ बदल चुकल बा।  भोजपुरी के लेखक लोग धोखाधड़ी के ढेर शिकार  होत रहल बा, जवना का विषे में रउवा सभे के जरूर जाने सुने के भेंटाइल होखी। आजु  भोजपुरी में सर्वभाषा जइसन संस्था लोगन के चिंता कम कइले बाड़ी, बिसवास बढ़ल बा जवना का चलते किताबियन के संख्यो बढ़ल बा। प्रकाशन के गुणवत्ता में सुधारो लउकता । अब अक्सरहाँ ई सुने के मिले लागल बा कि अब भोजपुरी के किताबन के गुणवत्ता कवनो दोसर भासा के किताबियन से कम नइखे।पछिला डेढ़-दू बरिस में 85+ भोजपुरी के किताब सर्वभाषा से प्रकाशित हो चुकल बाड़ी सन आ देस के नामी गिरामी संस्थानन से सम्मानितो हो चुकल बाड़ी सन। मने लेखन के स्तर के बाउर त कहले ना जा सकेला। मने स्तरीय लेखन हो रहल बा। जे कबों खाली हिन्दी में लिखत रहे, अब अइसनो लोग भोजपुरी में लिखे के साहस  क रहल बा। अइसने एगो साहस के प्रतिफल ‘ फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ का रूप में हमनी के सोझा बा। डॉ रंजन विकास जी एह बाति के अपना कहानगी में सवीकारो कइले बानी।

संस्मरण लेखन कुल्हिए भासन में भइल बा आ होइयो रहल बा।आत्म संस्मरण भा आत्मकथा साहित्य के एगो प्रामाणिक विधा ह। जवना के बारे में ई कहल जाला कि लिखे वाला लो जवन जीयले भा भोगले होला, ओकरे के लिपि बद्ध करेला। मने कल्पना के जगह एह विधा में ना होला। बाकि आजु के समय में अइसन कहल साँच लिखे वालन का संगे न्याय ना होई । अगर अइसन बात ना रहित त ‘ फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ के भूमिका लिखत बेरा आदरणीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी एकर जिकिर ना करतें। मने घालमेल भा कल्पना के खेला पहिलहूँ  चलत रहल बा आ अजुवो चलते होखी। आत्म संस्मरण भा आत्मकथा में कतना साँच बा आ कतना बनावट-बुनावट बा इहो कुल्हि  विज्ञ साहित्यकार लो देख-पढ़ के बुझिए जाला।जिनगी के तोपल-ढांकल साँच के सबके सोझा बेगर कवनो लाग-लपेट के परोसल बड़ जिगरा के बाति ह, एह किताबि में डॉ रंजन विकास जी बड़ जिगरा का संगे उपस्थित देखात बाड़न। जवना के पहिल झलक ‘पचरूखी में हमार बचपन’ में सभे के सोझा व्यक्तिगत घटना भा बेमारी का रूप में आइल बा। लेखक डॉ रंजन विकास सहज होके साहस का संगे ओके उकेरले बाड़न। एकरा स्मृति कथा भा स्मृति आख्यान कहल जा सकेला। एह खातिर आपन खुद के विश्लेषण करे के पड़ेला। अपना कथानक के खातिर ईमानदार  बनल जरूरी होखेला। नाही त आत्म संस्मरण आत्म मुग्धता के शिकार हो जाला। लेखक के जिनगी के पन्ना पर नजर डलले पर ई बुझाला कि इहाँ के आत्म मुग्धता के शिकार नइखे भइल। ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ एही कलेवर में रचाइल किताब बाटे। एह किताबि में कुल 17 गो अध्याय 224 पेजन में समेंटल गइल बा।

किताबि ‘फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ पर कुछ चरचा करे से पहिले पचरूखी भा पचरुखिया के जानत आगु बढ़ल जाव, त बाति के समुझे-बुझे में असानी होई। ई जगहा बिहार के सिवान जिला के एगो छोट गो कसबा बाटे, जहवाँ लेखक के हाईस्कूल तक के पढ़ाई-लिखाई भइल बाटे। इहे जगह लेखक के बाबूजी के करमस्थली बाटे, जहवाँ उहाँ शिक्षक का संगे हिन्दी आ भोजपुरी के साहित्य साधना कइले बानी।लेखक पचरुखिया के सामाजिक जिनगी के तफसील का संगे रेखाचित्र खींचले बानी । जवना से गुजरत बेर साठ बरिस पहिला उहाँ के नियरा के गाँवन के स्थिति-परिस्थिति क सहज बोध हो रहल बा। लेखक अपने हिताई-नताई के बहाने शीतलपुर, शीतलपुर बजार आ सादिकपुर का संगही अपना गाँव गौरी के आत्मीयता के संगे चरचा कइले बाड़न। अगर एही बाति के दोसरा ढंग से कहल जाव, त ई किताबि एगो आत्म संसमरने भर नइखे बलुक ई एगो समाज के बदलत आर्थिक-सामाजिक-धार्मिक-शैक्षणिक परिवेश के गाथा हवे। एगो अउर खास बाति, लेखक सहज रूप से कई गो पुरान साहित्यकार लोगन का विषय में विस्तार से जानकारियो देहले बाड़ें, जवन ढेर लोगन खातिर काम के चीजु बा।

‘ फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ किताबि लेखक के लइकाई  के ईयादन के पिटारा बा। अब पिटारा खुलल बा, त ढेर कुछ भेंटाई। साठ-सत्तर के दसक से लेके अब तलक के बीच के शिक्षा, समाज आ देस में भइल बदलाव के सामयिक रेखाचित्र  बा, लोगन के रहन-सहन के लेखा-जोखा बा,नेह-नाता के रसियाव  के संगे  अइसन बहुत कुछ बा जवन पढ़निहार लो खातिर जाने-समुझे जोग बा । लेखक डॉ विकास रंजन जी के लेखनी कवनो चित्र चाहे उ गाँव-जवार के होखे भा कवनो व्यक्ति के  उकेरत बेर अतना सहज रूप से चलल बा कि कवनो पढ़निहार अपना के ओकर भाग माने से ना बच पाई। गाँव-जवार, समय-समाज के जीवंत तसवीर उभारे में लेखक डॉ रंजन विकास कवनो कोताही नइखे कइले। एह किताबि के हम बड़ तफसील का संगे पढ़ चुकल बानी, एही से हमरा बिस्वास बा कि ई किताबि  ‘ फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया’ फेरु से ढेर लेखक लोगन के आत्म संस्मरण लिखे खातिर प्रेरित करी। हमेसा के तरे सर्वभाषा प्रकाशन आपन सर्वोत्तम देवे के परयास कइले बा। एकरा ला सर्वभाषा प्रकाशन अउर  केशव मोहन पाण्डेय जी के बहुत बहुत साधुवाद बा। लेखक डॉ रंजन विकास जी के अनघा बधाई आ शुभकामना ।

 

 

पुस्तक – फेर ना भेंटाई ऊ पचरुखिया

लेखक- डॉ रंजन विकास

विधा- संस्मरण

पृष्ठ- 224

मूल्य- 250/- अजिल्द/ 400/- सजिल्द

प्रकाशन वर्ष-2022

प्रकाशक- सार्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली-57

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

 

 

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